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गुरुवार, 25 जनवरी 2018

२८ ....विज्ञान की कक्षा में हमारे गुरु जी पढ़ाया करते थे

बचपन में विज्ञान की 
कक्षा में हमारे गुरु जी पढ़ाया
 करते थे कि समुन्दर में तैरना आसान 
होता है बहती नदी की तुलना में। मैं सोच 
में पड़ जाया करता था उनकी अच्चम्भित कर 
देने वाली बातों से। सत्य था ! क्योंकि इसके पीछे 
वैज्ञानिकी तथ्य छिपा है। परन्तु क्या यह नियम हमारे दैनिक 
जीवन में लागू होती है ? हम जीवन जीते जाते हैं बिना किसी दुविधा के ,एक समय आता है ! ये सरल जीवन ही कठिन लगने लगता है। 
महसूस होता है, काश ! यह हमारा जीवन कठिनाईयों 
भरा होता तो कुछ और बात होती। तब हम जीवन 
में संघर्ष की इच्छा रखते हैं परन्तु तब तक 
हमारा जीवन दूसरों के हाथ की 
कठपुतली बन चुका होता है। 
और इशारों पर नृत्य करना हमारा परम कर्तव्य !
( ये मेरे मौलिक विचार हैं। )
"लोकतंत्र" संवाद 
आप सबका स्वागत करता है। 


आज के रचनाकार :
  • आदरणीय  एम. वर्मा 
  • आदरणीय शिवकुमार मिश्र
  • आदरणीया रंजू भाटिया 
  • आदरणीया हरकीरत 'हीर'
  • आदरणीय हर्षवर्धन जोग 
  • आदरणीया साधना वैद  


जिंदगी की तलाश में
वह बैठा रहता है
शहंशाही अंदाज़ लिए 

  दुर्योधन की डायरी
 बड़ी बमचक मची है 
कि कवि और साहित्यकार साहित्य 
अकादमी टाइप संस्थाओं से मिले पुरस्कार लौटा रहे हैं
. लोग अपने-अपने विचार प्रकट कर रहे हैं. दूसरों के विचार काट 
रहे हैं. तर्क, वितर्क और कुतर्क किये जा रहे हैं. कुछ लोग बता रहे हैं

 बोल तुम्हारे ज़िन्दगी 
 सुनो ज़िन्दगी ... 
तुम जो कहना चाहती हो
बिना कहे ही सुन लिया है मैंने

 बदमाश औरत 

औरतें बदमाश होती हैं
जो उठाती हैं आवाज़ अन्याय के खिलाफ़
उठा लेती हैं हथियार शब्दों का
चढ़ पड़ती हैं छाती पर

   स्वभाव 
 ऑपरेशन थिएटर ले 
जाते हुए तीन चार मिनट लगे
 होंगे परन्तु इस दौरान चंद्रा साब के
 आँखों के आगे अपने जीवन का सारा
 विडियो घूम गया. बचपन, जवानी और उसके बाद 
का समय. चंद्रा साब कब बूढ़े हुए ? अभी तो जवान 
ही हैं और ये ऑपरेशन तो बस छोटा सा ही तो है, फिर

 ज़िंदगी का फलसफा 
 बोलो तो ज़रा   
किसने सुझाई थी तुम्हें ये राह
किसने दिखाई थी ये मंज़िल

आज्ञा दें !


"एकलव्य" 


सभी छायाचित्र : साभार गूगल 

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