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शनिवार, 20 जनवरी 2018

२३...... ज़र्रे को उड़ते देखा है !

कहते हैं !
चाहते हो अगर नाम 
बदनाम तो जगज़ाहिर है 
सिर से पाँव तलक 
उन गलियों में !
फिर भी, एक तसल्ली है 
अरे ! ओ दुनियाँ वालों 
ले तो रहे हो नाम। 
क़ब्रिस्तान में ही सही 
रोज़ आकर 
मेरी क़ब्र पर 
ज़रा एक फूल तो रख दो !
तुम्हारा क्या चला जाता है ?
एक रुपये तो ख़र्च किए हैं 
तुमने !
अपनी शिद्दत दिखाने में। 

( "एकलव्य" की क़लम से )


"लोकतंत्र" 
संवाद मंच आज आपका 
परिचय करवाता है उस शख़्स 
से जिसे हिंदी ब्लॉग जगत में ख़ास 
परिचय की आवश्यकता नहीं। क्योंकि 
उनकी लेखनी से निकले एक -एक शब्द उनके परिचय 
का साक्षी है। हम बात कर रहे हैं आदरणीय'रविंद्र' सिंह यादव जी की। जो एक सशक्त रचनाकार ,समीक्षक और प्रगतिवादी व्यक्तित्व के धनी हैं। इनके अनमोल विचारों का संकलन इनकी पुस्तक "प्रिज़्म से निकले रंग" के माध्यम से आप तक पहुँचे "लोकतंत्र" संवाद मंच यही कामना करता है ! और इन्हें इस अथक प्रयास हेतु हार्दिक बधाई देता है। 

"लोकतंत्र" संवाद मंच 
आपका हार्दिक स्वागत करता है। 

हमारे आज के रचनाकार :

  • आदरणीय राजीव जोशी 
  • आदरणीया पम्मी सिंह 
  • आदरणीया रेणु बाला जी 
  • आदरणीया मीना शर्मा 


तो चलिए ! चलते हैं 
मज़िल की ओर 

 हमसे भी कुछ बात हमारी किया करो
सोच समझकर दुनियादारी किया करो।



 सुर्खियों में बवाल भी बिकते हैं
जो इघर रुख करें..
तो दिखाए बवाल इनकी..

दिन के प्रत्येक पहर
 का अपना सौन्दर्य होता है | 
जहाँ भोर प्रकृतिवादी कवियों के लिए
 सदैव ही नवजीवन की प्रेरणा का प्रतीक रही है 
वहीँ प्रेमातुर व्यक्तियों और प्रेमवादी विचारधारा के कवियों व 
साहित्यकारों के लिए रात्रि के प्रत्येक पल का अपना महत्व माना  है | 



 वीणावादिनी ! वरदहस्त तुम
मेरे सिर पर धर देना...
अपनी कृपा के सुमनों से माँ,
आँचल मेरा भर देना !


ज़र्रे को उड़ते देखा है 
आसमानों में, बिन पंखों के !
आदरणीय रविंद्र सिंह यादव 


पुस्तक के बारे में 

 जीवन में  भावात्मक -सौन्दर्य 
या  यथार्थ  की कुरूपता कहीं न कहीं  
हमसे टकराती रहती है।  जो बातें  बार-बार  
मन-मस्तिष्क को  खंगालती  रहती हैं , अनेक  प्रकार  
की काल्पनिक चित्रावली उभरती  रहती है ,मन -बुद्धि-संस्कार के विराट  आयाम  स्वस्फूर्त  प्रेरणा  बनकर वर्तमान  में पुस्तकों  का पुराना  स्वरुप  बदलती तकनीक ने  हाशिये  पर  ला दिया  है  फिर भी  मुद्रित  पुस्तक से  जुड़े  सुखद  साहित्यिक  अनुभव अपना  असर  बनाये  हुए  हैं। नई  पीढ़ी  में  साहित्य  के प्रति  उदासीनता  भूमंडलीकरण  का दुष्प्रभाव  है जिसने  बाज़ारवाद  को हमारे जीवन  में आक्रामक  रूप  से स्थापित  कर दिया है।

और अंत में आदरणीय राकेश कुमार श्रीवास्तव 'राही' जी द्वारा प्रस्तुत उनकी आवाज में उनके द्वारा रचित 'रचना' "तुम्हारा साथ - 2" का पाठ 


आज्ञा दें !



सभी छायाचित्र : साभार गूगल 

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