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रविवार, 21 जनवरी 2018

२४..........अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कुछ खास मायने

'अभिव्यक्ति' की स्वतंत्रता 
के कुछ खास मायने हैं। हम 
अपने-पराये के छदम्ब से उठकर 
न्यायपरक बातों पर अपना सम्पूर्ण ध्यान 
आकृष्ट करते हैं। भेद-भाव की दहलीज़ लाँगते 
हुए पूरी कर्मनिष्ठा से अपने गंतव्य की ओर बिना किसी 
लागलपेट के प्रस्थान करते हैं।अंततः हमें उस सत्य का ज्ञान 
होता है, जिसकी खोज में प्रत्येक प्राणिमात्र निरंतर गतिमान है। यही परमसत्य है ! और इस परमसत्य का साक्षात्कार आपसे करवाने हेतु  "लोकतंत्र" संवाद मंच सदैव तत्पर है। 

( तो आइये ! चलते हैं इसी परमसत्य की खोज में )
  
इस स्वतंत्र 'अभिव्यक्ति' अंक में 
आपसबका हार्दिक स्वागत है। 

हमारे आज के रचनाकार :

  • आदरणीय दिगम्बर नासवा साहब 
  • आदरणीया राधा तिवारी 
  • आदरणीया श्वेता सिन्हा 
  • प्रिय कुलदीप कुमार ( 'नन्हे' कवि )
  • आदरणीया 'रेवा' जी  
  • आदरणीय टी. एस. दराल   
  • आदरणीया साधना वैद 




झांकती तो थी मेरे आँगन  
पर मैं समझ न सका
वो प्यार की आंख-मिचोली है

 याद आने लगे वो हमें चुपके चुपके 
दिल को लुभाने लगे  चुपके चुपके 

 स्वर्ण मुकुट सुरभित वन उपवन रंगों की फूटे पिचकारी।
ओढ़़ के मुख पर पीली चुनरी इतराये सरसों की क्यारी।।


 वहाँ के फल हम खाएंगे | 
नए - नए जगह हम घूमेंगे,

जितना अमृता को पढ़ती हूँ 
उन्हें और 


 दुनिया की रीति है कि बच्चों से ही घर बनता है ,
तिनका तिनका जोड़कर बस इक घर बनता है।

 क्यों ढूँढते हो मुझमें
राधा सी परिपक्वता
सीता सा समर्पण
यशोधरा सा धैर्य


आज्ञा दें !

 

सभी छायाचित्र : साभार गूगल 

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