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बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

७६. हम कश्मीर का गए तू तो फिर से अपना न्यूज़ चैनल शुरु कर दिया!




का रे कलुआ! हम कश्मीर का गए तू तो फिर से अपना न्यूज़ चैनल शुरु कर दिया! टैम्फोस तोका औरे कउनो काम नाही रहा का? 
अरे कक्का, आप भी ना! समझे नाही, अरे हमने अपनी दुकान इसलिये बढ़ाई थी कि ऊ दुकानदार सच्चा साहित्य परोसेगा परन्तु ऊ तो पुराने वाले हलुवाई का बाप निकला! मंचों पर देवी-देवताओं की फोटू लगाकर साहित्य और दर्शन की बातें करता है। गेंद अपने पाले में रखने ख़ातिर सबसे पहले अपना ही अफ़ीम सुबह-सुबह लोगों को चटा रहा है! औरे ई हम नाही होने देंगे! अभी हम ज़िंदा हैं। हम भी अब तनहा जी बनायेंगे! आगे समझ लें औरे मंदिर और मस्जिद में बैठकर साहित्य की बातें तो अब हम होने नाही देंगे। चाहे हमें अपनी क़लम ही क्यों ना  तोड़नी पड़े!
लंबे समय बाद लोकतंत्र संवाद मंच का पुनः आरम्भ करते हुए मुझे अपार हर्ष एवं दुःख दोनों का समान रूप से  अनुभव हो रहा है। इसे आप समय और साहित्य दोनों की माँग कह सकते हैं जहाँ अधिकांश ब्लॉगर और लेख़क आज किसी न किसी प्रभावशाली शख़्सियत का ग़ुलाम है। लोकतंत्र संवाद मंच इस ग़ुलामी का प्रखर विरोध करता है और सदैव करता रहेगा जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण केवल पाँच माह में लगभग पचास हज़ार दर्शकों और पाठकों द्वारा इस मंच का वाचन किया जाना रहा है। अतः पुनः
 लोकतंत्र संवाद मंच आप सभी पाठकों का स्वागत करता है। 

आइए चलते हैं इस सप्ताह की कुछ स्तरीय रचनाओं की ओर  
 मुद्दतों बाद उसके हक् में फैसला आया
जिसके इंतज़ार मे साँसें ठहर गयी उसकी।

 ''दीदी अपने घर से बहुत दूर है 
और इस समय इन्हें पैसे की सख्त जरूरत 
होगी आप यह उन्हें अपनी ओर से दे दो और मेरा ज़िक्र 
भी मत करना कहीं उनके आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचे''।

 पत्र लेखन से व्यक्ति के स्वभाव में आने वाले कुछ सकारात्मक 
लक्षणों को निम्नलिखित रूप से सूचीबद्ध किया जा सकता हैः
·         विचारशीलता बढना
·         धैर्यशील होना
·         भाषा का ज्ञान बढना
·         सकारात्मकता
·         चिन्तनशील
·         रचनात्मकता
·         याददाश्त बढना
·         अधिक संवेदनशील होना


 नाता तेरे शहर से पुराना  हैं 
उस बरगद का अफसाना आज का फ़साना सा हैं। 

 वेदना की राह पर
बेचैन मैं हर पल घड़ी ,
तुम सदा थे साथ फिर
क्यों आज मैं एकल खड़ी !

 ताऊ कौन है ?
आजकल फेसबुक पर फिर 
से ताऊ अवतरित हुए हैं । ये ताऊ 
साल भर अंतर्ध्यान रहते हैं लेकिन 
जब जब होली आती है, ये ताऊ फेसबुक की 
ओर अग्रसर हो लेते हैं। वैसे तो हरियाणा का एक एक बंदा ताऊ 
ही होता है। लेकिन ये ताऊ स्पेशल है। क्योंकि ये हरियाणवी ताऊ से भी ज्यादा ताऊ हैं ।

 कल तक जिन आँखों में
 उदासी थी, आक्रोश भी उन्हीं 
आँखों से फूट पड़ता था, झुंझलाकर 
पति-पत्नी दोनों ही कह उठते थे कि नहीं 
अब बेटे से आस नहीं रखनी, वह पराया हो गया है! 

 भावों की सरिता में बहते ,
बहते भावों को उनमें देखा ।

 दीवार उठती है
बाँटती है
आचार-विचार
रहन-सहन
दशा-दिशा

 एक छोटी-सी टिकिया
जो वहीं कहीं कोने में फेंक दी जाती है
और नंगे पाँव ही निकल पड़ती है पोखर की ओर
हुर्र... हुर्र....हुर्र....

और अंत में आदरणीया आँचल पांडेय जी द्वारा रचित एवं उनके ही स्वर में उनकी एक रचना 

उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
व्यक्ति यदि  हमारे विचारों से निजी तौर पर 
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए। 
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु 
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
 है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है । 
धन्यवाद। 

 टीपें
 अब 'लोकतंत्र'  संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार '
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

आज्ञा दें  !


'एकलव्य' 


आप सभी गणमान्य पाठकजन  पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर  साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा।
                                                                                              
                                                                                             सभी छायाचित्र : साभार  गूगल

27 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर संयोजन । आदरणीय एकलव्य जी, ऐसे किसी भी पहल का हृदय से स्वागत है जो साहित्य व साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा दे। आपका यह कदम इसी दिशा में एक मील के पत्थर की तरह है। हमारी असीम शुभकामनाएं व हमारा प्रणाम ।

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    1. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर   

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  2. . इतने अंतराल के बाद दोबारा लोकतंत्र संवाद को जीवित अवस्था में देखने का एक अलग ही रोमांच महसूस कर रही हूं.. पुनः एक बार स्वागत आपका...।
    भूमिका तो बहुत ही दमदार लिखी है आपने आशा करती हूं इन्हीं विचारों को आगे रखते हुए आप फिर से लोकतंत्र संवाद ब्लॉग को अपनी मुकाम तक पहुंचा दीजिएगा... मेरी रचना को भी शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और आंचल को मैंने यूट्यूब में सुना तो बस उसकी मधुर आवाज में खो गई बहुत ही अच्छा किया जो आप आंचल को यहां लेकर आए...।
    बहुत-बहुत धन्यवाद ध्रुव जी

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    1. आदरणीया दीदी जी सादर प्रणाम 🙏
      .....आपके इस नेह का आभार कैसे व्यक्त करूँ?☺

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    2. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर   

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  3. सत्य भले तंद्रिल हो जाये, संज्ञाहीन नहीं होता। भले प्रताड़ित हो जाये, पराजित नहीं होता। लोकतंत्र भी भले मूक हो जाये संवादहीन नहीं होता। 'लोकतंत्र संवाद' शाश्वत और जीवंत रहे, सभी धाराओं को अपना समतल ढूंढने की स्वतंत्रता हो और सभी तार्किक और विवेकपूर्ण ढंग से अपनी सहमति और असहमति खुल कर रखें। शुभकामनायें और विजयी भव!

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    1. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर   

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  4. आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
    प्रथम तो 'लोकतंत्र संवाद' के इस शानदार और जानदार वापसी की आपको ढेरों बधाई और शुभकामनाएँ। साथ ही मेरी साधारण सी रचना को इस अनूठे मंच पर स्थान देने योग्य समझने हेतु आपका हार्दिक आभार।सभी चयनित रचनाएँ भी लाजवाब हैं।
    कलूआ की बात से तो हम भी सहमत हैं कि मंदिर और मस्जिद में बैठकर साहित्य की बात केवल साहित्य का पतन करेगी। और साहित्य का पतन समाज का पतन है। अपने -अपने धर्म,समुदाय के आंगन में खड़े साहित्यकार केवल अपनी दुकान ही चला रहे हैं और इसके चलते समाज की विचारधारा में जो उलटफेर हो रहा है उसका पूरा फ़ायदा कुर्सी पर बैठे लोग उठा रहे हैं। आदरणीय सर ' लोकतंत्र संवाद ' मंच के माध्यम से साहित्य के उत्थान हेतु आप जो सार्थक प्रयास कर रहे हैं वह अतुलनीय है। आपने उचित ही कहा कि यह समय की माँग है। आज समय यही चाह रहा है कि साहित्यिकार अपने इन आँगनों से बाहर आए और वास्तविकता से साक्षात्कार करते हुए समाज का दर्पण बने।
    ....... नारायण से यही प्रर्थना है कि यह मंच साहित्य और समाज के उत्थान हेतु सार्थक संवाद करते हुए निरंतर आगे बढ़े और ना केवल खुद को अपितु हिंदी साहित्य को भी एक नया आयाम दे। पुनः ढेरों शुभकामनाओं संग सादर प्रणाम।

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    1. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर   

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  5. अरे कक्का जी को कश्मीर जाने की अनुमति कैसे मिली? वहां तो अभी भाड़े के विदेशी मेहमानों को बुलाकर दिखाया जा रहा है। इस बीच कलुआ का न्यूज़ चैनल तो चल निकला। बधाई हो लोकतंत्र संवाद को पुनः सक्रिय करने के लिये। हर्ष और दुःख का साम्य जीवन को गतिमान रखता है।

    आजकल जहाँ सामूहिक ब्लॉग पटल से अदृश्य हो रहे हैं वहीं आपकी ओर से लोकतंत्र संवाद को पुनः सक्रिय किया जाना सराहनीय पहल है।

    भारत की धर्मभीरु जनता की आस्था और विश्वास यदि कर्मकांडों में निहित है तो यह आलोचना का विषय नहीं है बल्कि ज्ञान की एक सीढ़ी मात्र है जिससे लोगों को अपनी तर्क शक्ति और वैज्ञानिक सोच से आगे की सीढ़ियों को देखने और उन्हें पार करने के लिये ज्ञान की परिष्कृत प्रणालियों को अपनाना होगा।

    बहरहाल जब विचार भिन्नता के आयाम सिकुड़ रहे हों तब लोकतंत्र संवाद पर वैचारिक मंथन की सहज पहल प्रशंसनीय है।

    सभी रचनाएँ सराहनीय हैं। रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    मेरी रचना को लोकतंत्र संवाद की आज की प्रस्तुति में सम्मिलित करने हेतु बहुत-बहुत आभार।

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    1. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर   

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    1. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर   

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  7. लोकतंत्र संवाद को पुनर्प्रप्रकाशित देखकर अत्यंत प्रसन्नता हुई ..ध्रुव जी । ढेरों शुभकामनाएँँ आपको । सभी रचनाएँ लाजवाब हैं .

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    1. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर   

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  8. लोकतंत्र संवाद मंच की शानदार वापसी पर अशेष शुभकामनाएँ ।
    दमदार भूमिका के साथ अनेक विधाओं से सजा सुंदर संकलन। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार ।
    सादर।

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    1. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर   

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  9. प्रिय ध्रुव , अपने सामूहिक ब्लॉग को पुनः सक्रिय करने के लिए बहुत- बहुत बधाई और शुभकामनाएं
    | मारक व्यंग के साथ भूमिका , कई विकलता भरे सवाल सहजता से प्रस्तुत करती है |
    और धर्म का अर्थ हमेशा मानवता विरोधी नहीं होता |पर ये नितांत निजी है इसे ढाल बनाकर कुत्सित विचारधाराओं
    को आगे बढ़ाना देश हित और समाजहित में कतई नहीं है | उन सभी रचनाकारों को नमन जिन्हें आजके अंक में शामिल किया गया है
    | सभी को बधाई | आशा है लोकतंत्र संवाद में निष्पक्षता के साथ भले कम लेकिनं उम्दा और पठनीय लिंक दिए जायेंगे | इस प्रयास पर मेरी सस्नेह शुभकामनाएं |आँचल का काव्यपाठ लाजवाब है |

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  10. प्रिय ध्रुव , अपने सामूहिक ब्लॉग को पुनः सक्रिय करने के लिए बहुत- बहुत बधाई और शुभकामनाएं
    | मारक व्यंग के साथ भूमिका , कई विकलता भरे सवाल सहजता से प्रस्तुत करती है |
    और धर्म का अर्थ हमेशा मानवता विरोधी नहीं होता |पर ये नितांत निजी है इसे ढाल बनाकर कुत्सित विचारधाराओं
    को आगे बढ़ाना देश हित और समाजहित में कतई नहीं है | उन सभी रचनाकारों को नमन जिन्हें आजके अंक में शामिल किया गया है
    | सभी को बधाई | आशा है लोकतंत्र संवाद में निष्पक्षता के साथ भले कम लेकिनं उम्दा और पठनीय लिंक दिए जायेंगे | इस प्रयास पर मेरी सस्नेह शुभकामनाएं |आँचल का काव्यपाठ लाजवाब है |

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    1. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर   

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  11. बहुत दिनों के बाद लोकतंत्र संवाद के इस अंक की आहाट सुनाई दी है ! बहुत प्रसन्नता हुई ! विलम्ब से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ! मैं बाहर गयी हुई थी ! लौटने के बाद आज ही इस सूचना को देख पाई ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार एकलव्य जी ! सादर वन्दे !

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  12. "प्रत्येक ब्लॉगर और लेख़क आज किसी न किसी प्रभावशाली शख़्सियत का ग़ुलाम है।"
    मैं नहीं हूँ ध्रुव जी। यहाँ *प्रत्येक ब्लॉगर* से हटाकर अधिकतर ब्लॉगर कीजिए।
    लोकतंत्र संवाद का बंद होना अखरा था। बहुत अच्छा लगा कि फिर से शुरू हो गया। शुभकामनाएँ। सादर।

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    1. मैंने लेख में 'लगभग' शब्द का समुचित प्रयोग किया था।आभार मीना जी!  सादर  

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    2. प्रिय ध्रुव , मैं भी मीना जी की बात से सहमत हूँ | प्रत्येक ब्लॉगर नहीं बल्कि यहाँ अधिकतर कहना उचित होगा |सस्नेह --

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    3. हाँ, मैंने देखा। 'लगभग प्रत्येक' कहा है आपने।
      क्षमा कीजिए। फिर भी यह कहना चाहूँगी कि आज भी ऐसे ब्लॉगर हैं जो बिना किसी नाम और प्रतिष्ठा की चाह के, स्वान्तसुखाय वाला लेखन कर रहे हैं। उम्मीद है कि लोकतंत्र संवाद उन्हें प्रोत्साहित करेगा और चूहादौड़ तथा भेड़चाल को ब्लॉगिंग से खत्म करने में अहम भूमिका निभाएगा।

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    4. अवश्य मीना जी! मैं आपकी बात से सहमत हूँ अतः  मैंने अब वहाँ 'अधिकांश' कर दिया है ताकि आगे ये कोई चर्चा का मुद्दा न बने। सही सुझाव हेतु आपका बहुत-बहुत आभार। आपके सुझाव का हृदय से स्वागत है। सादर   

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आप सभी गणमान्य पाठकों व रचनाकारों के स्वतंत्र विचारों का ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग स्वागत करता है। आपके विचार अनमोल हैं। धन्यवाद