छन्नु लाल - अरे भागवान !
क्या बात करती हो ,सामने जवान
बेटा बैठा है। मेरे बारे में क्या सोचेगा !
मंथरा - अरे ! सोचे, उसे जो सोचना है मैं चुप थोड़े बैठूँगी।
छन्नु लाल - अच्छा छोड़ो ये सब ! सब बेकार की बातें हैं। तुम बताओ
जो बता रही थी। आखिर चोट कैसे लगी इस नामुराद को ?मंथरा-अरे होना क्या था ,मियाँ हज़रतगंज गए थे लड़कियों के कालेज और वहाँ लड़कियों को अपना स्टंट दिखा रहे थे बाईक पर। फिर क्या था ! आगे से एक लारी आ रही थी ,उसी की चपेट में आ गए। अरे भला हो ! उस नयनसुख का, जो इन्हें घर तक ले आया। नहीं तो नगर निगम वाले कूड़ा समझ कर उठा ले जाते तुम्हारे इस कूड़े बेटे को। हमारी तो क़िस्मत ही फूटी है ,भगवान ऐसी औलाद किसी को न दे ! छन्नु लाल - क्यूँ रे ! दुकान में बैठने को कहो तो आनाकानी करता है और घूम-घूम कर गली -गली लड़कियाँ देखता है। हँसमुख - क्या बापू ! आप भी तो अपने जवानी के दिनों में ऐसे ही रहे होगे।
( और आगे ....)
"लोकतंत्र" संवाद मंच
आपका हार्दिक स्वागत करता है।
हमारे आज के रचनाकार :
- आदरणीय अरुण रॉय
- आदरणीया शैल सिंह
- आदरणीया रेणु बाला
- आदरणीया आशा सक्सेना
- आदरणीय विश्वमोहन जी
- आदरणीया अभिलाषा जी
- आदरणीय हर्षवर्धन जोग
चलिए ! उतरते हैं आज के मंच पर
राजपथ से
जब भी निकलती है
तोपें
थपुवा,नरिया,खपड़ा,मड़ई,टाठी
गोईंठा,कंडा,इन्हन,चिपरी,छान्हीं
ये मन कितना अकेला था
एकाकीपन में खोया था
सागर का जल खारा
पर वह इससे भी न हारा
सरकी परते धरती की
फटी माटी परती की
और भूचाल न हो।
फिर! बवाल न हो?
बहुत दिमाग घुमाया
सर चकराया
गुस्सा भी आया,
न्यूज़ीलैण्ड के साउथ आइलैंड
का नाम माओरी भाषा में ते वाइपोनामु है.
इस द्वीप में झीलें बहुत हैं. छोटी झील, बड़ी झील,
चौड़ी झील, लम्बी झील, गहरी झील जिसमें छोटे जहाज़
भी चल जाएं. याने पानी ज्यादा और जमीन कम! बहारहाल
जमीन पर सड़कें अच्छी हैं और रख रखाव भी अच्छा है.
आज के हमारे ''पाठकों की पसंद''
की इस कड़ी की पाठिका हैं। आदरणीया रेणु बाला जी
कहते हैं प्रतिभा इस संसार में प्रत्येक स्थान पर मौज़ूद है !
आवश्यकता है उन्हें पहचानने और तराशने की। और रेणु जी में
यह ख़ूबी विद्यमान है। "लोकतंत्र" संवाद मंच रेणु जी की इस प्रतिभा को नमन करता है।
"लोकतंत्र" संवाद मंच
'शब्द नगरी' के इन 'दिग्गज़ों' का स्वागत करता है।
'शब्द नगरी' के दिग्गज़ रचनाकार :
- आदरणीय मनोज कुमार खँसली "अन्वेष"
- आदरणीय एस. कमलवंशी
- आदरणीय महातम मिश्रा
तोड़ लूँ,...
उस नक्षत्र को जिस ओर कोई इंगित करे,
मुझे वो उड़ान चाहिए,
हाँ - हाँ मुझे चाँद चाहिए |
सितारे सिमट आए थे, दमके वफा के दामन में,
शब्ब-ए-शमा अल्फ़ाज़ थे, बरसे वफा के आँगन में ।
याद आती पाठशाला पटरी को पढ़ते कर गई।
चाक जब होते मधुर थे डगरी को हँसते कर गई।
आज्ञा दें !
सभी छायाचित्र : साभार गूगल
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