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बुधवार, 24 जनवरी 2018

२७.......'देशवाली' जी पकौड़े लाये हैं !

बहुत हो गईं देशभक्ति की बातें। 
कल से फिर ऑफिस जाना है ,दिनभर काम 
करना है शाम को आराम करना है। भोजन करना है पेटभर ! 
पत्नी के साथ सास -बहू  का सीरियल देखना है। और काम ही क्या है। क्यों दूसरों के फटे में टांग अड़ाऊँ ! मेरा क्या जाता है। 'देशवाली' जी पकौड़े लाये हैं ,बड़ा मज़ेदार था।  पार्ट-टाइम में कविता लिख लूँगा। आप भी लिखिए ,लिखते रहिए !
"लोकतंत्र" संवाद मंच  
आप सभी का स्वागत करता है। 

हमारे आज के रचनाकार :

  • आदरणीय देशवाली जी 
  • आदरणीया जयश्री वर्मा 
  • आदरणीया रश्मि शर्मा 
  • आदरणीया शालिनी रस्तोगी 
  • आदरणीया अनिता जी 


 उससे लगता है जल्द ही पकोड़े बेचना भी 
"राष्ट्रीय रोजगार योजना" में शामिल हो जायेगा 
शायद कानून भी बन जाये आखिर मसला रोजगार का है 

जो बीत गया सो वो जाने दो ,
जो आ रहा वो स्वीकार करो ,
ये वर्तमान जो अब हाथ में है,


प्रकृति का उत्सव है बसंत। 
मौसम का यौवन है बसंत।



अभिमन्यु बनता जा रहा 
आज का युवा 



पलकों में मोती पलते
नयनों में दीप संवरते,


आज्ञा दें ! 


 सभी छायाचित्र : साभार गूगल 

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