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सोमवार, 29 जनवरी 2018

३० .."लोकतंत्र" संवाद मंच का प्रायोगिक साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक

प्रयोग, मानव जीवन के 
विकास का आधार है। नए प्रजातियों 
की उत्पत्ति, प्रकृति के अनुपम प्रयोगों का ही परिणाम 
रहा है। नित-नए प्रयोग हमारे जीवन को एक मजबूत आधार 
प्रदान करते हैं। विकास की बात पूर्णतः इस पर निर्भर है कि आप किस दिशा में अपना प्रयोग निरंतर प्रवाहमय रखना चाहते हैं। सकारात्मक अथवा नकारात्मक ! ब्लॉग जगत में भी नित-नए प्रयोग होने आवश्यक हैं, जिसके लिए आपका "लोकतंत्र" संवाद मंच सदैव प्रयासरत रहेगा ! 
तो चलिए !  
"लोकतंत्र" संवाद मंच 
के इस प्रायोगिक साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। 


 इस प्रायोगिक साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक के रचनाकार :

  • आदरणीय रविंद्र सिंह यादव 
  • आदरणीया रश्मि प्रभा 
  • आदरणीया शालिनी रस्तोगी 
  • आदरणीया अनिता जी 
  • आदरणीया मीना शर्मा 
  • आदरणीया रेणु बाला 
  • आदरणीया किरण मिश्रा 
  • आदरणीय ओंकार जी 
  • आदरणीया शुभा मेहता 
  • आदरणीय शांतनु सान्याल 
  • आदरणीया अपर्णा त्रिपाठी 
  • आदरणीया आशा सक्सेना 
  • आदरणीय राकेश कुमार श्रीवास्तव 'राही' 
  • आदरणीय हर्षवर्धन जोग
 स्वागत है ! आपका 
"लोकतंत्र" संवाद मंच 
के प्रथम साप्ताहिक 'सोमवारी' अंक में 

 भारी   गट्ठर    लादे
शहरों-कस्बों   की  गलियों  में  दीखता   था।

दुर्भाग्य प्रबल था
जब काली अंधेरी रात में
 कृष्ण को लेकर

संहारक और संरक्षक 
वैरागी और सांसारिक 

 भूमंडल पर देश सैकड़ों
भारत की है बात निराली,
जैसे चन्द्र चमकता नभ में

 ना उसके ओंठ हिलते थे,
ना कोई राग बहता था,
मगर रंगीन पंखों को,

 खिले फूल की रसिया तु -
रस चूसें और उड़ जाए ,
ढूंढ ले फिर से पुष्प नया इक 

 किसी अनजाने गाँव में
अनजाने घर की कभी न कभी
सांकल खटकती ही है

 तुम्हारे प्रेमपत्र सहेज के रखे हैं मैंने,
सालों से उन्हीं को पढता हूँ बार-बार,

 जो है हम सबका पालनहार
  करता खून पसीना एक
   खेतों को लहराने में

  काश, सजल अहसासों का - -
कोई मरूद्वीप होता
अंतरतम के अंदर,
तो शायद 


 बैठता हूँ तो घर पुराना याद हमको आ रहा हैं
अहसास हो रहा कि बुढापा पास मेरे आ रहा है 

 -इन्द्रधनुषी
सात रगों से सजी
सृष्टी हमारी

बारिश के पानी में,
 कागज़ की नाव चलाना,
खुले मैदान में तब,

कुदरत का एक करिश्मा हैं. बड़े बड़े गोल मटोल
 फुटबॉल की तरह बीच पर फैले हुए अजीब से ही लगते हैं.
 कुछ छोटे, कुछ बड़े, कुछ रेत में आधे दबे हुए और कुछ टुकड़े टुकड़े होकर बिखरे हुए.

बावरी ख्वाहिश का क्या ? 

  कागज की कश्ती में
दरिया को कोई,
पार करे भी तो कैसे ?






 टीपें 
 अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे। 

 
आदरणीय 'रविंद्र' सिंह यादव द्वारा रचित एवं उनकी ही आवाज में
प्रस्तुत एक प्यारी रचना

आज्ञा दें !



छायाचित्र स्रोत : साभार गूगल एवं कुछ रचनाकारों के निजी

शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

29... 69वें गणतंत्र दिवस की शुभकामनाऐं


                         69वें गणतंत्र दिवस की शुभकामनाऐं 


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चित्र साभार : गूगल 
                पिछला गणतंत्र दिवस हम नोटबंदी के ज़ख़्मों के साथ मना रहे थे और मौजूदा गणतंत्र दिवस पर जीएसटी की टीस चुभ रही है फिर भी हम ख़ुश हैं अपने गणतंत्र के लगातार फलने-फूलने पर। राजपथ पर शानदार परेड देशवासियों की रग-रग में जोश भरती हुई देशभक्ति का पावन जज़्बा जगाती है। 
               ऐसे में हमें समग्र विकास के मॉडल की चर्चा ज़रूर छेड़नी चाहिए जब एक चर्चा ज़ोरों पर है कि 73 प्रतिशत सम्पत्ति के मालिक केवल  1 प्रतिशत लोग हो गये  हैं।  कमाल का आंकड़ा है 99 प्रतिशत जनता के लिए केवल  27 प्रतिशत ......! तसल्ली से  विचार कीजिये कैसा और किसके लिए गणतंत्र बना रहे हैं हम। 

                                       "लोकतंत्र" संवाद                                                                 आप सबका स्वागत करता है। 





    आज के रचनाकार :


    *आदरणीया नीतू ठाकुर


    *आदरणीय विश्व मोहन जी 


    *आदरणीय आचार्य बलवंत जी 

                                *आदरणीया कविता रावत जी 

                             *आदरणीय अंशु माली रस्तोगी  जी 



    गणतंत्र दिवस मनाएंगे ... नीतू ठाकुर


    इस पतित पावनी भूमि पर दुश्मन भी जिस दिन आएगा, 

    नफरत का मंत्र भूलाकर वो इस मिटटी का हो जायेगा,


    हम आज भुलाकर बैर सभी खुशियों को गले लगाएंगे, 


    कोई नफरत की डोर न हो हम ऐसा देश बनाएंगे, 


    इस देश का पवन पर्व है ये गणतंत्र दिवस मनाएंगे.


    जा पिया! (सुहागन का समर घोष).....विश्व मोहन 

    My photo


    जा पिया , तु जा समर में,

    संतति ये रक्तबीज के,

    काल-चंडी को नचा दे.

    छोड़, मेरे आंसूओं मे क्या रखा है?







                         सरकारी आयोजन मात्र नहीं हैं राष्ट्रीय त्यौहार


     राष्ट्रीय त्यौहार हमें जाति, धर्म, भाषा, भौगोलिक परिस्थितियों से परे 

    एक सूत्र में बांधने में सहायक हैं। सामूहिक स्तर पर प्रेमभाव से इन्हें 

    मनाने से राष्ट्रीय स्तर पर भावनात्मक एकता को विशेष प्रेरणा और बल

     मिलता रहे 




    मैं यह मानता हूं कि सेंसेक्स की कामयाबी देश की अर्थव्यवस्था का 

    सकारात्मक पहलू है। दुनिया बहुत उम्मीदों के साथ हमारी ओर देख 

    रही 

    है। चहूं ओर अपने देश का डंका बज रहा है। ऐसे में सेंसेक्स की 

    जिम्मेदारी डबल हो जाती है कि वो अपने आशावाद पर यों ही बना रहे।
    आज्ञा दें !
    सूचना - अब "लोकतंत्र संवाद" पर चुनिंदा रचनाऐं आपको प्रति सोमवार वाचन हेतु उपलब्ध होंगीं। अनुभव के आधार पर दैनिक प्रस्तुति पुनः प्रारम्भ की जायेगी। 
    धन्यवाद। 

    गुरुवार, 25 जनवरी 2018

    २८ ....विज्ञान की कक्षा में हमारे गुरु जी पढ़ाया करते थे

    बचपन में विज्ञान की 
    कक्षा में हमारे गुरु जी पढ़ाया
     करते थे कि समुन्दर में तैरना आसान 
    होता है बहती नदी की तुलना में। मैं सोच 
    में पड़ जाया करता था उनकी अच्चम्भित कर 
    देने वाली बातों से। सत्य था ! क्योंकि इसके पीछे 
    वैज्ञानिकी तथ्य छिपा है। परन्तु क्या यह नियम हमारे दैनिक 
    जीवन में लागू होती है ? हम जीवन जीते जाते हैं बिना किसी दुविधा के ,एक समय आता है ! ये सरल जीवन ही कठिन लगने लगता है। 
    महसूस होता है, काश ! यह हमारा जीवन कठिनाईयों 
    भरा होता तो कुछ और बात होती। तब हम जीवन 
    में संघर्ष की इच्छा रखते हैं परन्तु तब तक 
    हमारा जीवन दूसरों के हाथ की 
    कठपुतली बन चुका होता है। 
    और इशारों पर नृत्य करना हमारा परम कर्तव्य !
    ( ये मेरे मौलिक विचार हैं। )
    "लोकतंत्र" संवाद 
    आप सबका स्वागत करता है। 


    आज के रचनाकार :
    • आदरणीय  एम. वर्मा 
    • आदरणीय शिवकुमार मिश्र
    • आदरणीया रंजू भाटिया 
    • आदरणीया हरकीरत 'हीर'
    • आदरणीय हर्षवर्धन जोग 
    • आदरणीया साधना वैद  


    जिंदगी की तलाश में
    वह बैठा रहता है
    शहंशाही अंदाज़ लिए 

      दुर्योधन की डायरी
     बड़ी बमचक मची है 
    कि कवि और साहित्यकार साहित्य 
    अकादमी टाइप संस्थाओं से मिले पुरस्कार लौटा रहे हैं
    . लोग अपने-अपने विचार प्रकट कर रहे हैं. दूसरों के विचार काट 
    रहे हैं. तर्क, वितर्क और कुतर्क किये जा रहे हैं. कुछ लोग बता रहे हैं

     बोल तुम्हारे ज़िन्दगी 
     सुनो ज़िन्दगी ... 
    तुम जो कहना चाहती हो
    बिना कहे ही सुन लिया है मैंने

     बदमाश औरत 

    औरतें बदमाश होती हैं
    जो उठाती हैं आवाज़ अन्याय के खिलाफ़
    उठा लेती हैं हथियार शब्दों का
    चढ़ पड़ती हैं छाती पर

       स्वभाव 
     ऑपरेशन थिएटर ले 
    जाते हुए तीन चार मिनट लगे
     होंगे परन्तु इस दौरान चंद्रा साब के
     आँखों के आगे अपने जीवन का सारा
     विडियो घूम गया. बचपन, जवानी और उसके बाद 
    का समय. चंद्रा साब कब बूढ़े हुए ? अभी तो जवान 
    ही हैं और ये ऑपरेशन तो बस छोटा सा ही तो है, फिर

     ज़िंदगी का फलसफा 
     बोलो तो ज़रा   
    किसने सुझाई थी तुम्हें ये राह
    किसने दिखाई थी ये मंज़िल

    आज्ञा दें !


    "एकलव्य" 


    सभी छायाचित्र : साभार गूगल 

    बुधवार, 24 जनवरी 2018

    २७.......'देशवाली' जी पकौड़े लाये हैं !

    बहुत हो गईं देशभक्ति की बातें। 
    कल से फिर ऑफिस जाना है ,दिनभर काम 
    करना है शाम को आराम करना है। भोजन करना है पेटभर ! 
    पत्नी के साथ सास -बहू  का सीरियल देखना है। और काम ही क्या है। क्यों दूसरों के फटे में टांग अड़ाऊँ ! मेरा क्या जाता है। 'देशवाली' जी पकौड़े लाये हैं ,बड़ा मज़ेदार था।  पार्ट-टाइम में कविता लिख लूँगा। आप भी लिखिए ,लिखते रहिए !
    "लोकतंत्र" संवाद मंच  
    आप सभी का स्वागत करता है। 

    हमारे आज के रचनाकार :

    • आदरणीय देशवाली जी 
    • आदरणीया जयश्री वर्मा 
    • आदरणीया रश्मि शर्मा 
    • आदरणीया शालिनी रस्तोगी 
    • आदरणीया अनिता जी 


     उससे लगता है जल्द ही पकोड़े बेचना भी 
    "राष्ट्रीय रोजगार योजना" में शामिल हो जायेगा 
    शायद कानून भी बन जाये आखिर मसला रोजगार का है 

    जो बीत गया सो वो जाने दो ,
    जो आ रहा वो स्वीकार करो ,
    ये वर्तमान जो अब हाथ में है,


    प्रकृति का उत्सव है बसंत। 
    मौसम का यौवन है बसंत।



    अभिमन्यु बनता जा रहा 
    आज का युवा 



    पलकों में मोती पलते
    नयनों में दीप संवरते,


    आज्ञा दें ! 


     सभी छायाचित्र : साभार गूगल 

    मंगलवार, 23 जनवरी 2018

    २६.... मानवता की इस कड़ी में "लोकतंत्र" संवाद मंच

    काश इस दुनिया 
    में कोई बोलती भाषा न
     होती ! हम सब सांकेतिक भाषा का 
    अनुसरण करते। सब एक ही तरह दिखते।
     मानव -मानव में कोई अंतर न होता। देशों की कोई सीमा 
    न होती ! क्या भारत ! क्या पाकिस्तान और अमेरिका कौन ? 
    चीन भी मैं होता। सारा विश्व एकता के बहुरंगी रंग में रंग जाता। हर तरफ 
    खुशहाली का माहौल। न कोई जात और न धर्म ! केवल एक ही प्रतीक की 
    उपासना होती। ऊर्जा ! जो हमारे इस धरा के उत्पत्ति का मूल है। न कोई ख़ुदा न ही ईश्वर ! हम एक सुन्दर दुनिया का निर्माण करते बिना रुके, बिना थके। बस चलते जाते अनंत विकास के पथ पर मानव जाति के विकास की मशाल लिए। 
    काश ऐसा होता ! 

    और कहते हैं 
    क्रांति कभी नही मरती,छोड़ जाती है पीछे केवल 
    चिंगारियाँ !

    महान क्रांतिकारी 'नेताजी' सुभाष चंद्र बोस
    ( २३ जनवरी  १८९७ ) 

    भारत के इस महापुरुष को "लोकतंत्र" संवाद मंच 
    कोटि-कोटि नमन करता है। 

    विकास की ओर अग्रसर, मानवता की इस कड़ी में 
    "लोकतंत्र" संवाद मंच आपका हार्दिक स्वागत करता है।


    हमारे आज के रचनाकार :
    • आदरणीय रविंद्र सिंह यादव 
    • आदरणीय ज्योति खरे 
    • आदरणीय सुशील कुमार जोशी 
    • आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा 
    • आदरणीया शालिनी कौशिक 
    • आदरणीया 'रेवा' जी 

    तो चलिए ! 
    इस मानव श्रृंखला की मशाल 
    आगे बढ़ायें और नमन करें इस भारत के 
    वीर सपूत को आदरणीय ''रविंद्र'' सिंह यादव की इस रचना के साथ 

     नेताजी सुभाष चंद्र बोस 

     हमारे  दिलों  पर  राज़  करते   हैं  सुभाष,
    समय  की  प्रेरणा   बनकर,
    भाव-विह्वल   है   हमारा  दिल,
    तुम्हें  याद  करके   आँखों  का  दरिया,
    बह   चला  है  आँसू  बनकर।

    बसंत के आने की आहट 
     सफर से लौटकर 
    आने की आहटों से
    चोंक गए
    बरगद, नीम, आम

    कभी 
    अखबार 
    में छपे 
    समाचार 
    को देखते हैं 

    क्या है ये जीवन...?
    कुछ आती जाती साँसों का आश्वासन!
    कुछ बीती बातों का विश्लेषण!

     एक सामान्य सोच है 
    कि यदि हिन्दू विधवा ने 
    पुनर्विवाह कर लिया है तो वह अपने पूर्व 
    पति की संपत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं 
    कर सकती है किन्तु हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम कहता है

     हॉस्पिटल 

    ये शब्द सुनते ही 
    जहन में एक डर 
    पैदा होता है 



    आज्ञा दें !



    सभी छायाचित्र : साभार गूगल