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बुधवार, 25 मार्च 2020

८१.. इस माह की चुनी गईं नौ श्रेष्ठ रचनाएं



स माह की चुनी गईं नौ श्रेष्ठ रचनाएं आप सभी के समक्ष वाचन हेतु प्रस्तुत हैं। अगले सप्ताह इन नौ रचनाओं में से सर्वश्रेष्ठ तीन रचनाएं पाठकों द्वारा भेजी गयी टिप्पणी और हमारे निर्णायक मंडल के निर्णय के आधार पर चुनी जायेंगी जिसे हम अगले बुधवारीय अंक में प्रकाशित करेंगे। हम आपसभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों से यह अपेक्षा करते हैं कि आप इन रचनाओं पर अपने स्वतंत्र विचार रखें!


लोकतंत्र संवाद मंच आप सभी पाठकों का स्वागत करता है। 


तीन अंको से नौ श्रेष्ठ रचनाएं अपने लिंकों के साथ पुनः आपके समक्ष वाचन हेतु प्रस्तुत हैं।  

 क. स्वतंत्र निर्णायक मंडल द्वारा चयनित रचना(लेखक की पसंद ) 




ख.  लोकतंत्र संवाद के समीक्षक मंडल द्वारा चयनित रचना (आलोचकों की पसंद ) 
  




ग.  पाठकों की टिप्पणियाँ / समीक्षाएँ (लोकप्रिय रचना के लिये)

१. हायकु /सुधा देवरानी  ( अंक-१ ) 




उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
व्यक्ति यदि  हमारे विचारों से निजी तौर पर 
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए। 
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु 
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
 है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है । 
धन्यवाद। 
  
 टीपें
 अब 'लोकतंत्र'  संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार '
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



आज्ञा दें!





आप सभी गणमान्य पाठकजन  पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर  साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा। रचनाओं  के क्रम  सुविधानुसार लगाये गए हैं। 
                                                                                              
                                                                                             सभी छायाचित्र : साभार  गूगल

बुधवार, 18 मार्च 2020

८०. अरे आजकल हम भी दोहा लिखना सीख रहे हैं!





दोहा दुन-दुन दुइ गुना, भया न रसिया कोय। 
धरम-धरम के चौखड़ी, बेच के घोड़ा सोय।।

धरम-धरम के नाम पर , कलुआ खाये घास। 
कक्का चादर तानके, जनमत पर विश्वास।।

देशभक्ति अब हो चली भारत की पहचान। 
चपला बारे मुफ़त में, यही देश की शान।।

साहित्य है गजभर रो रहा, कहते अपने-आप। 
कक्का का विश्वास है, नेता हमरे साथ।।

धरम-धरम में बोर के, ख़ूब चलाये मंच। 
कल तक थे जो मंत्री, बन बैठे अब रंक।।

हम तो नित्य लगायेंगे, अपनी रचना पास। 
उखाड़ सको सो उखाड़ लो, हम भी तोहरे बाप।।

लोकतंत्र की आड़ में, कबीरा खाये मात।  
कक्का करें हैं चाकरी, कलुआ खाये भात।।  

कलुआ ससुर मुँहफट्ट, कहता रस्सी तान। 
घोर-फेर के चक्कर में, कक्का खाये लात।।

( बदमाश कलुआ की क़लम से )

का रे ससुर कलुआ! ई का कर रहा है। तोहका कउनो काम-धाम नाही है का। जब देखो अनाप-सनाप लिखने बैठ जाता है। अरे कोई ढंग का साहित्य लिख। अरे कक्का! जब भी बोलिहो टेमफुस्स! अरे आजकल हम भी दोहा लिखना सीख रहे हैं। जैसे- छप्पन छुरी बहत्तर चाकू, हिन्दू ख़तरे में है , राष्ट्रभक्त, टी. ए. ए. चार तलाक़, आठ तलाक़, मंदिर ख़तरे में है, मस्जिद ख़तरे में है, अउर तो अउर ससुर अपनी ज़मात ही पूरी ख़तरे में है।  कक्का- पर तू तो साहित्यकार है इनसे तुझे क्या लेना-देना ? अरे कक्का तुम भी रहोगे पूरे धूम-धड़का! अरे  भई! मुझे देना तो कछु नहीं है परन्तु लेना बहुत कुछ है। औरे ऊ का? अरे कक्का थोबड़े की क़िताब और ब्लॉग पर साहित्य के नाम पर धंधा चलाने की फीस! उहे नेताजी देंगे जब उनकी पार्टी सत्ता में होगी! बाक़ी सब ठीक है।                       

 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ 


त्यंत हर्ष हो रहा है आपको यह सूचित करते हुए कि 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तकों को पढ़ने हेतु अपने पाठकों और लेखकों को प्रोत्साहित करने का एक छोटा-सा प्रयास करने जा रहा है। इस प्रयास का मूल उद्देश्य साहित्यिक पुस्तकों के प्रति पाठकों के रुचि को पुनः स्थापित करना और उनके प्रति युवा वर्ग के आकर्षण को बढ़ाना है। इस साहित्यिक प्रयास के अंर्तगत माह के तीन बुधवारीय अंक में सम्मिलित की गई सभी श्रेष्ठ रचनाओं में से पाठकों की पसंद और 'लोकतंत्र संवाद' मंच की टीम के सदस्यों द्वारा अनुमोदित तीन सर्वश्रेष्ठ रचनाओं को हम पुरस्कार स्वरूप साहित्यिक पुस्तकें साधारण डाक द्वारा प्रेषित करेंगे। हमारा यह प्रयास ब्लॉगरों में साहित्यिक पुस्तकों के प्रति आकर्षण को बढ़ावा देना एवं साहित्य के मर्म को समझाना है जिससे ब्लॉगजगत केवल इसी मायावी डिजिटल भ्रम में न फँसा रह जाय बल्कि पुस्तकों के पढ़ने की यह पवित्र परंपरा निरंतर चलती रहे। आप विश्वास रखें! इस मंच पर किसी भी लेखक विशेष की रचनाओं के साथ किसी भी प्रकार का कोई भी पक्षपात नहीं किया जायेगा। निर्णय पूर्णतः रचनाओं की श्रेष्ठता और उसके साहित्यिक योगदान पर निर्भर करेगा।
रचनाएं सीधे लेखक के ब्लॉग से लिंक की जायेंगी और माह के अंतिम बुधवारीय अंक में चयनित रचनाओं के लिंक भी आपसभी के समक्ष प्रस्तुत किये जायेंगे।
यह कार्यक्रम दिनांक ०४/०३/२०२० ( बुधवारीय अंक ) से प्रभावी है।
विधा: हिंदी साहित्य की कोई भी विधा मान्य है। 
योग्यता: ब्लॉगजगत के सभी सक्रिय रचनाकार ( ब्लॉगर ) 

 रचनाओं की चयन प्रक्रिया 

लोकतंत्र संवाद पर प्रकाशित रचनाओं की प्रति तीन सप्ताह उपरांत समीक्षा की जाएगी। इस प्रक्रिया में श्रेष्ठ रचनाओं के चयन का आधार होगा-

1. पाठकों की टिप्पणियाँ / समीक्षाएँ (लोकप्रिय रचना के लिये)

2. लोकतंत्र संवाद के समीक्षक मंडल द्वारा चयनित रचना (आलोचकों की पसंद )  

3. स्वतंत्र निर्णायक मंडल द्वारा चयनित रचना(लेखक की पसंद ) 

निर्णायक मंडल की निर्णायक प्रक्रिया संबंधी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाएगी।        

तो आइये! हम एक ऐसे बेहतर साहित्यसमाज का निर्माण करें जो पूर्णतः राजनीतिक,धार्मिक एवं संप्रदाय विशेष की कुंठा से मुक्त हो! इसमें आपसभी पाठकों एवं लेखकों का सहयोग अपेक्षित है। अतः सभी पाठकों एवं रचनाकारों से निवेदन है कि बिना किसी दबाव और पक्षपात के रचनाओं की उत्कृष्ठता पर अपने स्वतंत्र विचार रखें ताकि हम रचनाओं का सही मूल्याङ्कन कर सकें। 
सादर

हम आपके ब्लॉग तक निर्बाध पहुँच सकें और आपकी रचनाएं लिंक कर सकें इसलिए आपसभी रचनाकारों से निवेदन है कि आपसभी  लोकतंत्र संवाद मंच ब्लॉग का अनुसरण करें !
'एकलव्य'
लोकतंत्र संवाद मंच आप सभी पाठकों का स्वागत करता है। 

आइए चलते हैं इस सप्ताह की कुछ स्तरीय रचनाओं की ओर  


 जनता की आवाज़ सुनाई दे कैसे
शोर बहुत है सत्ता के गलियारों में


  बस कि वतन में वतनी जहन पैदा हो
बस कि आइंदा से लहू में घुसे
लौहे को सोने का तगमा ना मिले।


   हमने बात की है 
गोताखोरी की 


 पडोसी पार्क में बुलाते रहे पकौड़े खाने को,
डरे सहमे लोग अपने अपने घरों से ही नहीं हिले।


 पूछो न रोज़ रोज़ के आख़िर में क्या हूँ मैं
सोचो तो सारे मर्ज़ की वैसे दवा हूँ मैं


 फिर उबलते पानी के साथ
देती हूँ कुछ रंग कुछ स्वाद
प्यालियाँ भरकर।


  मेढक सब मज़े उड़ाएँगे ,
मलाई खाएँगे और माल बनाएँगे । 
और हम ? हम इधर बस लार टपकाएँगे ,टापते 
रह जाएँगे।नहीं ,नहीं यह नहीं हो सकता । और उसी दिन से 
अलाना पार्टी वाले ,फ़लाना पार्टी वालों को गिराने की जुगत में भिड़ गए।

आदरणीय शैल चतुर्वेदी

उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
व्यक्ति यदि  हमारे विचारों से निजी तौर पर 
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए। 
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु 
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
 है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है । 
धन्यवाद। 
 टीपें
 अब 'लोकतंत्र'  संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार '
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित

होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



आज्ञा दें  !





आप सभी गणमान्य पाठकजन  पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर  साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा। रचनाओं  के क्रम  सुविधानुसार लगाये गए हैं। 
                                                                                              
                                                                                             सभी छायाचित्र : साभार  गूगल

गुरुवार, 12 मार्च 2020

७९.. लच्छेदार रचना ज़रा छौंक लगाके लिख ( विलंब हेतु क्षमाप्रार्थी हैं। )





का कक्का! आजकल आप तो अपने मंचों पर स्थान ही नाही देते। का कउनो चूक हो गई का हमसे। नाही तो! अरे तुमका तो ख़ाली वही सिटपिटिया लेखक ही दिखता है हम तो जैसे कछु हैं ही नाही! अरे नाही रे कलुआ! तेरी रचना साहित्य के मापदंडों पर खरी नाही उतरती तो इम्मा हमरा कौन दोष! अरे उहे छक्कन गजोधर को देख कैसी ठुमकेदार रचना लिखता है! तुम भी कउनो लच्छेदार रचना ज़रा छौंक लगाके लिख और फिर देख कैसे झमाझम स्थान मिलता है तोरी स्तरीय रचनाओं को दसों मंचों पर। फिर देख पर्चा मंच अउरो तोहरे लिंकों का आनंद वाले सभई ज्ञानी तुझे कैसे झूला झुलाते हैं। बाक़ी सब ठीक है। 
      'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ 


त्यंत हर्ष हो रहा है आपको यह सूचित करते हुए कि 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तकों को पढ़ने हेतु अपने पाठकों और लेखकों को प्रोत्साहित करने का एक छोटा-सा प्रयास करने जा रहा है। इस प्रयास का मूल उद्देश्य साहित्यिक पुस्तकों के प्रति पाठकों के रुचि को पुनः स्थापित करना और उनके प्रति युवा वर्ग के आकर्षण को बढ़ाना है। इस साहित्यिक प्रयास के अंर्तगत माह के तीन बुधवारीय अंक में सम्मिलित की गई सभी श्रेष्ठ रचनाओं में से पाठकों की पसंद और 'लोकतंत्र संवाद' मंच की टीम के सदस्यों द्वारा अनुमोदित तीन सर्वश्रेष्ठ रचनाओं को हम पुरस्कार स्वरूप साहित्यिक पुस्तकें साधारण डाक द्वारा प्रेषित करेंगे। हमारा यह प्रयास ब्लॉगरों में साहित्यिक पुस्तकों के प्रति आकर्षण को बढ़ावा देना एवं साहित्य के मर्म को समझाना है जिससे ब्लॉगजगत केवल इसी मायावी डिजिटल भ्रम में न फँसा रह जाय बल्कि पुस्तकों के पढ़ने की यह पवित्र परंपरा निरंतर चलती रहे। आप विश्वास रखें! इस मंच पर किसी भी लेखक विशेष की रचनाओं के साथ किसी भी प्रकार का कोई भी पक्षपात नहीं किया जायेगा। निर्णय पूर्णतः रचनाओं की श्रेष्ठता और उसके साहित्यिक योगदान पर निर्भर करेगा।
रचनाएं सीधे लेखक के ब्लॉग से लिंक की जायेंगी और माह के अंतिम बुधवारीय अंक में चयनित रचनाओं के लिंक भी आपसभी के समक्ष प्रस्तुत किये जायेंगे।
यह कार्यक्रम दिनांक ०४/०३/२०२० ( बुधवारीय अंक ) से प्रभावी है।
विधा: हिंदी साहित्य की कोई भी विधा मान्य है। 
योग्यता: ब्लॉगजगत के सभी सक्रिय रचनाकार ( ब्लॉगर ) 

 रचनाओं की चयन प्रक्रिया 

लोकतंत्र संवाद पर प्रकाशित रचनाओं की प्रति तीन सप्ताह उपरांत समीक्षा की जाएगी। इस प्रक्रिया में श्रेष्ठ रचनाओं के चयन का आधार होगा-

1. पाठकों की टिप्पणियाँ / समीक्षाएँ (लोकप्रिय रचना के लिये)

2. लोकतंत्र संवाद के समीक्षक मंडल द्वारा चयनित रचना (आलोचकों की पसंद )  

3. स्वतंत्र निर्णायक मंडल द्वारा चयनित रचना(लेखक की पसंद ) 

निर्णायक मंडल की निर्णायक प्रक्रिया संबंधी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाएगी।        

तो आइये! हम एक ऐसे बेहतर साहित्यसमाज का निर्माण करें जो पूर्णतः राजनीतिक,धार्मिक एवं संप्रदाय विशेष की कुंठा से मुक्त हो! इसमें आपसभी पाठकों एवं लेखकों का सहयोग अपेक्षित है। अतः सभी पाठकों एवं रचनाकारों से निवेदन है कि बिना किसी दबाव और पक्षपात के रचनाओं की उत्कृष्ठता पर अपने स्वतंत्र विचार रखें ताकि हम रचनाओं का सही मूल्याङ्कन कर सकें। 
सादर

हम आपके ब्लॉग तक निर्बाध पहुँच सकें और आपकी रचनाएं लिंक कर सकें इसलिए आपसभी रचनाकारों से निवेदन है कि आपसभी  लोकतंत्र संवाद मंच ब्लॉग का अनुसरण करें !
'एकलव्य' 


आइए चलते हैं इस सप्ताह की कुछ स्तरीय रचनाओं की ओर  


 ये वहीं है 
जो घरों से बाहर 
निकलते ही
तारते है तुम्हारे
उरोज, नितंब
और मुस्कराते है...


 अपनों में कौन बेगाना है 
कोई तो पूछ बताये हमें 


 सतारूढ़ दल के राजनेता 
काम बोलता है का जुमला उछाले 
हुये थे,तो विपक्ष ने इन्हीं कथित विकास कार्यों 
पर घेराबंदी कर रखी थी, पर वोटर ख़ामोश थे, 
क्योंकि जनता को किसी ने भी फीलगुड का एहसास नहीं करवाया था ।


 काश मैं चुपके से 
जेब की तस्वीर बदल पाती
उसकी वो तलाश मुकम्मल हो जाती..


 प्रेम की इक धार बनकर 
मन अगर खुद से मिलेगा, 
सोंधी सी फुहार छुए  
जो अभी तक जल रहा है !


 अपने हृदय के एकांत में
सर्वाधिकार सौंपकर
होना चाहती है
निश्चिंत


 कितना भी लिखूँ 
स्त्रियों को
क़लम के दायरे से
उफ़नकर
बह ही जाती हैं।


क्तबीज-सी उगूँ
और कण-कण में बिखेर दूँ,
खिलखिलाहट का बीज 


   चिराग़-ए-मुहब्बत बुझा तो रही हो
मगर याद मेरी मिटाओगी  कैसे ?


श्वेत -श्याम एक हुए 
 ना  ऊंच- नीच का भेद रहा 
 रंग एक रंगे  सभी  देखो 
 एक दूजे के  संग -संग गलियों में 
टेसू  फूले ,गुलाब महके . 
उडी भीनी पुष्पगंध गलियों में !!
    
आदरणीय अशोक चक्रधर जी 


उद्घोषणा 
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विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
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स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए। 
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु 
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
 है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है । 
धन्यवाद। 

 टीपें
 अब 'लोकतंत्र'  संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार '
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
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                                                                                             सभी छायाचित्र : साभार  गूगल

बुधवार, 4 मार्च 2020

७८. सोच रहा हूँ सोशल मीडिया से सन्यास ही ले लूँ!





सोच रहा हूँ सोशल मीडिया से सन्यास ही ले लूँ! मन दुखता है इन बातों से। का हुआ कक्का ? काहे रेलम-ठेल मचा रखा है ? का बात है काहे मन चूहा करते हो। अरे का बतायें कलुआ! कलही थोबड़े की क़िताब पर हम धुरखेल कर रहे थे तभी अचानक से देखा हमरी कविता कउनो औरे अपने नाम से छापकर बैठा था। अरे कक्का ! इम्मा कौन-सा गज़ब होइ गवा। फ़िलहाल आपकी कविता क्या थी ज़रा बताओ! अरे यही दो लाइन थी- 
मेढक पात सरिस मन डोला 
मेढकी खाये छोला भटूरा। 

का बात करत हो यही तो हमरी भी कविता थी। कैसे और किसके कहने पर लिखी थी तुमने यह कविता। अरे उहे प्रख्यात महाराज जी के कहने पर। का बात करत हो मैंने भी उनही के कहने पर लिखी थी यह कविता। का! अरे कक्का अब ई सोचो कि इस कविता की प्रमाणिकता/मौलिकता कहाँ और कैसे सिद्ध करेंगे हम दोनों जिसकी आगे और पीछे वाली लाइन दोनों की एक समान है। कहे रहे तुमका साहित्यकार हो। थोड़ा अपनी अक़्ल लगाओ। लो खा गये ना गच्चा!         

 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ 


त्यंत हर्ष हो रहा है आपको यह सूचित करते हुए कि 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तकों को पढ़ने हेतु अपने पाठकों और लेखकों को प्रोत्साहित करने का एक छोटा-सा प्रयास करने जा रहा है। इस प्रयास का मूल उद्देश्य साहित्यिक पुस्तकों के प्रति पाठकों के रुचि को पुनः स्थापित करना और उनके प्रति युवा वर्ग के आकर्षण को बढ़ाना है। इस साहित्यिक प्रयास के अंर्तगत माह के तीन बुधवारीय अंक में सम्मिलित की गई सभी श्रेष्ठ रचनाओं में से पाठकों की पसंद और 'लोकतंत्र संवाद' मंच की टीम के सदस्यों द्वारा अनुमोदित तीन सर्वश्रेष्ठ रचनाओं को हम पुरस्कार स्वरूप साहित्यिक पुस्तकें साधारण डाक द्वारा प्रेषित करेंगे। हमारा यह प्रयास ब्लॉगरों में साहित्यिक पुस्तकों के प्रति आकर्षण को बढ़ावा देना एवं साहित्य के मर्म को समझाना है जिससे ब्लॉगजगत केवल इसी मायावी डिजिटल भ्रम में न फँसा रह जाय बल्कि पुस्तकों के पढ़ने की यह पवित्र परंपरा निरंतर चलती रहे। आप विश्वास रखें! इस मंच पर किसी भी लेखक विशेष की रचनाओं के साथ किसी भी प्रकार का कोई भी पक्षपात नहीं किया जायेगा। निर्णय पूर्णतः रचनाओं की श्रेष्ठता और उसके साहित्यिक योगदान पर निर्भर करेगा।
रचनाएं सीधे लेखक के ब्लॉग से लिंक की जायेंगी और माह के अंतिम बुधवारीय अंक में चयनित रचनाओं के लिंक भी आपसभी के समक्ष प्रस्तुत किये जायेंगे।
यह कार्यक्रम दिनांक ०४/०३/२०२० ( बुधवारीय अंक ) से प्रभावी है।
विधा: हिंदी साहित्य की कोई भी विधा मान्य है। 
योग्यता: ब्लॉगजगत के सभी सक्रिय रचनाकार ( ब्लॉगर ) 

 रचनाओं की चयन प्रक्रिया 

लोकतंत्र संवाद पर प्रकाशित रचनाओं की प्रति तीन सप्ताह उपरांत समीक्षा की जाएगी। इस प्रक्रिया में श्रेष्ठ रचनाओं के चयन का आधार होगा-

1. पाठकों की टिप्पणियाँ / समीक्षाएँ (लोकप्रिय रचना के लिये)

2. लोकतंत्र संवाद के समीक्षक मंडल द्वारा चयनित रचना (आलोचकों की पसंद )  

3. स्वतंत्र निर्णायक मंडल द्वारा चयनित रचना(लेखक की पसंद ) 

निर्णायक मंडल की निर्णायक प्रक्रिया संबंधी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाएगी।        

तो आइये! हम एक ऐसे बेहतर साहित्यसमाज का निर्माण करें जो पूर्णतः राजनीतिक,धार्मिक एवं संप्रदाय विशेष की कुंठा से मुक्त हो! इसमें आपसभी पाठकों एवं लेखकों का सहयोग अपेक्षित है। अतः सभी पाठकों एवं रचनाकारों से निवेदन है कि बिना किसी दबाव और पक्षपात के रचनाओं की उत्कृष्ठता पर अपने स्वतंत्र विचार रखें ताकि हम रचनाओं का सही मूल्याङ्कन कर सकें। 
सादर

हम आपके ब्लॉग तक निर्बाध पहुँच सकें और आपकी रचनाएं लिंक कर सकें इसलिए आपसभी रचनाकारों से निवेदन है कि आपसभी  लोकतंत्र संवाद मंच ब्लॉग का अनुसरण करें !
'एकलव्य'

लोकतंत्र संवाद मंच आप सभी पाठकों का स्वागत करता है। 

आइए चलते हैं इस सप्ताह की कुछ स्तरीय रचनाओं की ओर  



प्रवक्ता हूँ, सियासत का।
दंगों में हताहत का हाल
सूरते 'हलाल' बकता हूँ,
खबरनवीसों में।
 पहले पूछता हूँ,
थोड़ी खैर उनकी।
दाँत निपोरकर!
सुनाई देती है,
खनकती आवाज,
ग़जरों की महक में मुस्काती
'एवंडी'...!

भी कहूँगा के आया है लुत्फ़ मुझको भी गर
ज़मीन खोदूँ मैं और उससे आसमाँ निकले

किसी भी दौर में कोई कहीं भी कैसी भी
पढ़े किताब तेरी मेरी दास्ताँ निकले


हू को देख ख़ुश होने लगे हैं 
ये क्या आदत हमारी हो गयी है।


  हा एक ख़ामोशी पसरी हुई है अब,
जैसे लबो पर मातम मना रहा कोई



  कुन्दन कुमार का नाम साहित्यजगत 
के लिए अभी अनजाना है। हाल ही में इनका काव्य संग्रह
 “भावावेग” प्रकाशित हुआ है। जिसमें कवि की उदात्त भावनाओं के स्वर हैं।


  कर्मकाण्ड में विश्वास है जिनको
कहते ऋषि-मुनि का श्राप यही है
जपो निरन्तर हनुमत बीरा
हर मर्ज़ का इलाज यही है


 क मंदिर इधर,एक मस्जिद उधर ,
मरता इंसान सडकों पर पाया गया -



 बादल बिजली का यह खेल
हमें कर रहा है 
सचेत और सर्तक
कि, सावधान हो जाओ
आसान नहीं है अब
जीवन के सीधे रास्ते पर चलना


 छलनी-छलनी, ये मन,
छलकी सी, आँखें,
छूट चले, आशा के दामन,
रूठ चले हैं रंग,
डूब चुके, हृदय के तल-घट,
छूट, चुके हैं पनघट!


 उनसे भी सुख ही मिला,
जिनका रंग अलग है,
जिनकी भाषा भिन्न है.


 थका मांदा सूरज
दिन ढले
टुकड़े टुकड़े हो
लहरों में डूब गया जब
सब्र को पीते पीते
सागर के होंठ
और भी नीले हो गए

कुछ फिल्मों को सिर्फ इसलिए भी 
देखना चाहिए क्योंकि उनमें एक ऐसा 
संदेश होता है, जो मुश्किल वक्त में भी इंसान को 
जिंदा रहने की वजहें देती हैं. लेकिन अगर किसी फिल्म में एक 
मजबूत और प्रेरणास्पद कथाक्रम के साथ ही, शानदार 
सिनेमैटोग्राफी और बेजोड़ संपादन और उम्दा अभिनय भी हो तो बात ही क्या!


 सारे' सपने सच खिल ही जायें'गे
सच कभी बन तुम जगमगाया करो


शुक्ल जी – अरे लियाक़त भाई, सुना आपने ! हमारे मोहल्ले के शोहदे अख्तर ने शहर के नामी गुंडे अवधेश को चाकू से गोद दिया.
लियाक़त भाई – वो कमबख्त अवधेश बचा कि मर गया?

  मधुरमास
आओ ढूँढने चलें
प्यारे बसंत को

१६. उम्र 

 उम्र के पेड़ से
निःशब्द
टूटती पत्तियों की
सरहराहट,


मैं नहीं होना चाहता हूँ बेचैन 
नहीं उग्र 


 सुख बन चिड़िया उड़ जाता 
मन में ही जो उलझा है, 
जब तक यह नहीं मिटेगा 
यह जाल कहाँ सुलझा है !


 ल रात तेरे नाम एक कलाम लिखा
कागज कलम उठा करा इक पैगाम लिखा,
पहले अक्षर से आखिरी अक्षर तक
तेरा नाम, तेरा नाम सिर्फ तेरा नाम लिखा.....

 २०. उम्मीद और हम

  सोचती रहती हूँ,
अभी तो हम मिले थे,
मीलों साथ चले थे,
और किसी दिन


शासन के लिये बहुमत 
अवश्य ज़रुरी है,


 ब्रह्म मुहूर्त~
पोथी पर सिर टेके
 सोया विद्यार्थी....

 मैं सृष्टि का जना आधा हिस्सा हूँ,
इस पूर्ण सत्य का पूर्ण किस्सा हूँ,
मैं हर स्त्रीलिंग की पहचान में हूँ,
मैं भूत से भविष्य की जान में हूँ ,


 ख़त    तुम्हारे  नाम के
चुपके से कभी पढने आना
मन के   तटपर यादों की
सीपियाँ  चुनने आना !


 मैं कर्तापन में भरमाया
तू मुझे देखकर मुस्काया,
जब सारा खेल ही तेरा है
तो हार का डर क्यों हो मुझको ?


 तान वितान जब
नागफनी ने 
घेरा पूरा खेत,
मरुभूमि ने 
दिली सत्कार किया 
विहँसी भूरी रेत।  


उद्घोषणा 
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                                                                                             सभी छायाचित्र : साभार  गूगल