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मंगलवार, 23 जनवरी 2018

२६.... मानवता की इस कड़ी में "लोकतंत्र" संवाद मंच

काश इस दुनिया 
में कोई बोलती भाषा न
 होती ! हम सब सांकेतिक भाषा का 
अनुसरण करते। सब एक ही तरह दिखते।
 मानव -मानव में कोई अंतर न होता। देशों की कोई सीमा 
न होती ! क्या भारत ! क्या पाकिस्तान और अमेरिका कौन ? 
चीन भी मैं होता। सारा विश्व एकता के बहुरंगी रंग में रंग जाता। हर तरफ 
खुशहाली का माहौल। न कोई जात और न धर्म ! केवल एक ही प्रतीक की 
उपासना होती। ऊर्जा ! जो हमारे इस धरा के उत्पत्ति का मूल है। न कोई ख़ुदा न ही ईश्वर ! हम एक सुन्दर दुनिया का निर्माण करते बिना रुके, बिना थके। बस चलते जाते अनंत विकास के पथ पर मानव जाति के विकास की मशाल लिए। 
काश ऐसा होता ! 

और कहते हैं 
क्रांति कभी नही मरती,छोड़ जाती है पीछे केवल 
चिंगारियाँ !

महान क्रांतिकारी 'नेताजी' सुभाष चंद्र बोस
( २३ जनवरी  १८९७ ) 

भारत के इस महापुरुष को "लोकतंत्र" संवाद मंच 
कोटि-कोटि नमन करता है। 

विकास की ओर अग्रसर, मानवता की इस कड़ी में 
"लोकतंत्र" संवाद मंच आपका हार्दिक स्वागत करता है।


हमारे आज के रचनाकार :
  • आदरणीय रविंद्र सिंह यादव 
  • आदरणीय ज्योति खरे 
  • आदरणीय सुशील कुमार जोशी 
  • आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा 
  • आदरणीया शालिनी कौशिक 
  • आदरणीया 'रेवा' जी 

तो चलिए ! 
इस मानव श्रृंखला की मशाल 
आगे बढ़ायें और नमन करें इस भारत के 
वीर सपूत को आदरणीय ''रविंद्र'' सिंह यादव की इस रचना के साथ 

 नेताजी सुभाष चंद्र बोस 

 हमारे  दिलों  पर  राज़  करते   हैं  सुभाष,
समय  की  प्रेरणा   बनकर,
भाव-विह्वल   है   हमारा  दिल,
तुम्हें  याद  करके   आँखों  का  दरिया,
बह   चला  है  आँसू  बनकर।

बसंत के आने की आहट 
 सफर से लौटकर 
आने की आहटों से
चोंक गए
बरगद, नीम, आम

कभी 
अखबार 
में छपे 
समाचार 
को देखते हैं 

क्या है ये जीवन...?
कुछ आती जाती साँसों का आश्वासन!
कुछ बीती बातों का विश्लेषण!

 एक सामान्य सोच है 
कि यदि हिन्दू विधवा ने 
पुनर्विवाह कर लिया है तो वह अपने पूर्व 
पति की संपत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं 
कर सकती है किन्तु हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम कहता है

 हॉस्पिटल 

ये शब्द सुनते ही 
जहन में एक डर 
पैदा होता है 



आज्ञा दें !



सभी छायाचित्र : साभार गूगल 

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