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बुधवार, 29 अप्रैल 2020

८६.....'मुर्ग़ा साहित्यकार एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड'


 'मुर्ग़ा साहित्यकार एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड' 
कक्का! ई शॉक डाउन में बड़ा कड़की मची पड़ी है औरे ख़ाली क़लम घिसाई से बात नहीं बन रही है परंतु आपकी तोंद तो दिनों-दिन आठवें आसमान की ओर बढ़ रही है, ई माजरा क्या है तनिक हमें भी तो सुनाओ! अरे कलुआ तू भी बड़ा नादान है! अरे, साहित्य भी एक बिजनेस है तोका नाहीं पता! ऊ कैसे कक्का? अरे टैम्फोस! बड़ा गदहा-घमोचर है रे तू! तनिक इधर ध्यान लगा, आज मैं तुझे अपने मुर्ग़ा साहित्यकार एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड के बारे में विस्तार से बता रहा हूँ। तो सुन, पहले मैंने 'धमा-चौकड़ी कवितावली' का आविष्कार किया फिर पड़ोस वाली तितली बाई को अपना पर्सनल सेक्रेटरी नियुक्त किया। औरे ऊ 'तितलीबाई' ने दूसरे मुर्ग़ी मारक रचनाकारों को हमरी कंपनी तक ले आई फिर क्या था। ई पुराना गाना सुन!
एक तितली 
अनेक तितलियाँ 
एक मुर्ग़ी, 
अनेक मुर्ग़ियाँ 
सूरज एक 
तारे अनेक!

अब समझा घमोचर आदमी!
ही ही! कक्का तूहों गज़ब हो! अरे अभी और सुन! इस प्रकार मेरी कंपनी ने कविता सिखाओ और ख़ूब खिलाओ सेंटर का आविष्कार किया। मुर्ग़े/मुर्ग़ीयाँ जुड़ते गए और बिजनेस बनता गया। फिर क्या किया कक्का? फिर, अरे फिर क्या था मैंने एक डॉक्यूमेंट्री बनाई 'मुर्ग़ी कवितावली संग्रह' जिसमें सभी मुर्ग़ियों और मुर्ग़ों को प्रति मुर्ग़ी/मुर्ग़ा फ़ीस ३०० सौ रुपये रखा।  अब सोचो, यदि १५० मुर्ग़ी/मुर्ग़ा हमारी इस 'मुर्ग़ी कवितावली संग्रह' में आकर जुड़ गए तो, ऐसे समझो, 
1.  १५० गुणा मुर्ग़ी/मुर्ग़ा * ३००रुपये  =   45000 जमा ( शुद्ध-शुद्ध लाभ ) संपादक/प्रकाशक की ज़ेब में  
2. अब प्रकाशन के बाद प्रत्येक अतिउत्साही  मुर्ग़ी/मुर्ग़ा अपने प्रियजनों को अपनी रचना दिखाने और अपने लिए वाह-वाही लूटने हेतु कम से कम पुस्तक की तीन-चार प्रतियाँ तो ख़रीदेगा ही ख़रीदेगा सो हिसाब लगा कलुआ! जी कक्का अबहिने लो,
प्रति मुर्ग़ी/मुर्ग़ा द्वारा ख़रीदी जाने वाली 'मुर्ग़ी कवितावली संग्रह' की प्रतियाँ लगभग = 4 
 'मुर्ग़ी कवितावली संग्रह' की एक प्रति का मूल्य = 450 
'मुर्ग़ी कवितावली संग्रह' में शामिल कुल मुर्ग़ी/मुर्ग़ा= 150 , तो 
150 *4 = 600 ( कुल ख़रीदी जाने वाली प्रतियाँ )
कुल मूल्य की ख़रीदी जाने वाली प्रतियाँ = 600 *450 = 270,000( दो लाख सत्तर हज़ार रुपये
संपादक/प्रकाशक द्वारा पुस्तक छपवाने में ख़र्च रुपये = 8000 ( आठ हज़ार रुपये )
संपादक/प्रकाशक को होने वाला शुद्ध लाभ =  270,000 - 8000 = 262,000 (दो लाख बासठ हज़ार )

अब ई तो हुआ प्रति तीन महीने का लाभ क्योंकि मैं संग्रह के नाम पर प्रत्येक तीन महीने पर यह आयोजन करता रहता हूँ। 
अब आओ हमरी पाठशाला में सदस्यता शुल्क पर जो कि वार्षिक 2,000 रुपये/प्रति मुर्ग़ी/मुर्ग़ा रखे गए हैं तो हिसाब लगा कलुआ! जी कक्का अबही लो,
   
  300 सदस्य मुर्ग़ी/मुर्ग़ा तुम्हरी 'झटपट कविता सिखाओ पाठशाला' में सदस्य के तौर पर एडमिशन लिए तो 
कुल जमा हुआ = 300 * 2,000 = 600,000 ( छह लाख ) शुद्ध-शुद्ध लाभ ऊ पाठशाला के मालिक को जो झटपट कविता सिखाओ पाठशाला चला रहा है। अब बता कलुआ साहित्य है ना सदाबहार बिजनेस! क्यूँ, क्या कहता है। वाह कक्का, तुम तो 'साहित्य के आर्यभट्ट' निकले। परन्तु कक्का एक बात हमरे समझ में नाहीं आई कि इतने बुद्धिजीवी लेखक झटपट साहित्य पाठशाला के बातों में कइसे आ गए? औरे ऊ दूसरे अतिमहानबुद्धिजीवी लेखक अभी तक काहे चुप हैं? अरे कलुआ, तुम निकले एकदम बोकस!  कोरोनाकाल चल रहा है अतः सभी ने मुँह पर मास्क पहन रखा है। कहीं उन्हें संक्रमण ना हो जाए! अरे, आजकल के साहित्यकारों को क़िताबों पर कम विश्वास है। उन्हें लगता है कि क़िताब उन्हें ग़लत ज्ञान देगा और झमाझम साहित्यकार पाठशाला वाला गुरु ज़्यादा! औरे सभी को कलही सुमित्रा नंदन पंत औरे निराला जो बनना है! आज देख,हमरी 'मुर्ग़ा साहित्यकार एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड' कैसे सीना तानकर थोबड़े की क़िताब और ब्लॉगजगत में अपना विजय पताका फहरा रही है। और वैसे भी आधुनिक हिंदी के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने अपने एक निबंध 'भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है' में लिखा है कि "हम भारत के लोग उसी ट्रेन की बोगियों के समान हैं जो बिना सोचे-समझे किसी भी इंजन के पीछे जुड़ जाते हैं चाहे वह ट्रेन खाई में ही क्यों ना जा रही हो!"    
वाह कक्का! वाह! अरे हुज़ूर वाह कक्का नहीं, वाह 'मुर्ग़ा साहित्यकार एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड' का दिमाग़ बोलिए ! बाक़ी सब ठीक है!               

 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२  का परिणाम घोषित।
(निर्णायक मंडल में लोकतंत्र संवाद मंच का कोई भी सदस्य शामिल नहीं है।)  

सर्वश्रेष्ठ रचनाओं की सूची दिए गये अंकों के साथ एवं उनके लिंक इस प्रकार हैं।   

क. स्वतंत्र निर्णायक मंडल द्वारा चयनित रचना(लेखक की पसंद ) 

1 भूख अब पेट में नहीं रहती ( ६/१० अंक )

 हम विदेश देश तो नहीं गए न साहब
हम तो आपकी सेवा में थे
हम ड्राइवर थे, धोबी थे, रसोइया थे
हम घर की साफ़ सफाई वाले थे
सडकें, गटर साफ़ करने वाले थे।


 जयकार में उठी कलम,क्या ख़ाक लिखेगी
अभिव्यक्ति को वतन में,खतरनाक लिखेगी !


3. कविता...... निकल गयी  ( ५/१० अंक ) 

मस्ते!
नमस्ते!!
कहते हुए एक मीटर फासले से
निकल गयी कविता।

ख.लोकतंत्र संवाद मंच के समीक्षक मंडल द्वारा चयनित रचना (आलोचकों की पसंद ) 


 हर साहित्यकार की रचना एक सुशिक्षित , 
सुसंस्कृत और सभ्य समाज की रचना के लिए सबसे अधिक उत्तरदायी होता है। 



 "एक ठो चिरैया रही, कुछ खास 
किसिम की रही. उसका पेट तो एक्कै ठो था 
लेकिन उसका मुंह था दो. समझ लो कि दोमुंही रही ऊ चिरैया... 
उस चिरैया का नाम था भारुंड..." रात को सोते समय दादी ने दो पोतों को किस्सा सुनाना शुरू किया। 


. एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए ( ५/१० अंक ) 

र दुकाँ बन्द है आंखों की  तरह  नशेबाज की
क्या एक भी दुकाँ नही थोड़े  से  कर्जे  के  लिए

ग.  पाठकों की टिप्पणियाँ / समीक्षाएँ (लोकप्रिय रचना के लिये)


 खुद़ा के वासते तनहा ही रह कर 
अमा इक चैन की बंशी बजा ले 


इस भाग की विशेष चयनित रचनाएं 
( बाल रचनाकार )

 १. एक दूजे का साथ देना होगा प्रांजुल कुमार/ बालकवि ( ३.५/१० अंक )  
 हम अब भी खुशियों को सजा सकते हैं,
उन टूटे खिलौनों को फिर बना सकते हैं |
इस शुभ कार्य को अब ही करना होगा,
इस भीड़ भाड़ की दुनियाँ में
एक दूजे का साथ जीवन भर देना होगा।


 खाओ सदा पौष्टिक खाना,
रहो तंदुरस्त और जिओ ज़माना। 

अंतिम परिणाम 
( नाम सुविधानुसार व्यवस्थित किये गये हैं। )
       1 भूख अब पेट में नहीं रहती ( आदरणीया प्रतिभा कटियार )

  ३. अभी हरगिज न सौपेंगे सफ़ीना----------( आदरणीय राजेश कुमार राय )

  
          नोट: प्रथम श्रेणी में रचनाओं की उत्कृष्टता के आधार पर दो रचनाएं चुनी गयीं हैं। इन सभी रचनाकारों को लोकतंत्र संवाद मंच की ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं। आप सभी रचनाकारों को पुरस्कार स्वरूप पुस्तक साधारण डाक द्वारा शीघ्र-अतिशीघ्र प्रेषित कर दी जाएंगी। अतः पुरस्कार हेतु चयनित रचनाकार अपने डाक का पता पिनकोड सहित हमें निम्न पते dhruvsinghvns@gmail.com) ईमेल आईडी पर प्रेषित करें!  अन्य रचनाकार निराश न हों और साहित्य-धर्म को निरंतर आगे बढ़ाते रहें। हम आज से इस पुरस्कार योजना के अगले चरण यानी कि 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-३  में प्रवेश कर रहे हैं। जो दिनांक ०१ /०४ /२०२० (बुधवार) से प्रभावी है।  इस भाग में चयनित कुछ स्तरीय रचनाएं इस प्रकार हैं-
           

 काहे तू अम्माँ को झूठी बोले है..!"
"ई मुआँ कोरोना ,नासपीटा,करमजला आ गईल वरना काहे हम लोगन गांव जाते..।"
अम्मा जब बोल रही है, थोड़ी देर में गांव पहुँच जाएँगे तो के केरे तू लपड़झपर कर रही है।"


डाल- डाल पे फिरे मंडराती -
बनी उपवन की रानी तितली ;
हरेक फूल को चूमे जबरन -
तु करती मनमानी तितली !


 वात्सल्य में ऐसे विवश हुए
धृतराष्ट्र सब ताले तोड़ चले,
अवाक् ज़माना देख रहा
कैसे क़ानून मुरीद हुआ?


 सौंदर्यमयी स्रोतस्विनी 
उतर रही है
अल्हड़ चंचला-सी
पर्वत-श्रृंखला को 
छेड़ते श्वेत बादलों कीं 


र चूल्हा जलता कब है?
   पूछो उन  मजदूरों से .. ....
    आज बोल कर गया था 

आदरणीय हेमंत मोहन जी द्वारा एक कहानी का वाचन 

उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
व्यक्ति यदि  हमारे विचारों से निजी तौर पर 
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए। 
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु 
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
 है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है । 
धन्यवाद। 
            टीपें
 अब 'लोकतंत्र'  संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार '
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



आज्ञा दें!

 आप सभी गणमान्य पाठकजन  पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर  साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा। रचनाओं  के क्रम  सुविधानुसार लगाये गए हैं

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

८५..प्रिय कक्का,.... हमरी जूती, हमरा सर!



प्रिय कक्का,
चरणों में प्रणाम स्वीकार करें!  

स प्रकार कोरोना नामक धूर्त युद्ध में मारा गया और रामायण, महाभारत के साथ सात समंदर पार कोस्टा रिक्का के वनों में 'सवा सेर गेहूँ' लेने मुंसिपल्टी की लंबी कतार में खड़ा हो गया जहाँ हस्तिनापुर से आये पाँच-पाँच सौ के नोट फ़ोकट में ही विजयगढ़ की सेना को रोटी और नमक से साथ बिना मिर्च के ही बाँटे जा रहे थे। "अरे भीम! पीछे काहे खड़े हो? ज़रा आगे आकर भोजन तो परोसो!" बड़ा अच्छा हुआ जो हमने कश्मीर को लॉक कर दिया।  अरे बदहवास जी कोई कविता या गीत मंच से चढ़कर ज़रा भारतीयता की याद दिलाते हुए बाँच दीजिये जनता-जनार्दन के बीच। इस प्रकार दिल्ली के सिंहासन का द्वन्द शांत हुआ परन्तु वर्चस्व और धर्मरक्षा का पुलिंदा फूट पड़ा! नहीं! नहीं! ऐसा नहीं हो सकता! एक दिन मेरा बेटा विश्वगुरु अवश्य बनेगा आप देख लीजियेगा मैं कहे देती हूँ। सत्य कहती हो लाजवंती, हमरी तो मति मारी गई थी।  झूठ-मूठ ही मैं इसे निकम्मा समझता था। बताओ पढ़े-लिखे आला अधिकारी हमरे अँगूठा-छाप बेटे की ग़ुलामी करते हैं आज! औरे ई, जिसकी पाँचवीं कक्षा का अंक-पत्र आज तक उहे 'दादा उमानाथ' के जलेबी की दुकान पर रखा है इस इंतज़ार में कि कभी न कभी हमरे कर्ण और अर्जुन आयेंगे कि साहेब अभी भी बख़त है, पैकेट वाला दूध इस्तेमाल कर लो क्योंकि समूल-स्प्रे की कंपनी के मज़दूर, मज़बूरी में रस्ता नाप लिए औरे विधायक जी का लौंडा कोटा में पब-पब खेल रहा था परन्तु शॉक-डाउन के बाद वहाँ के सारे ठर्रा मालिक पाकिस्तान चले गए औरे पब बंद हो गया! तभी इन्द्र देव को इन बेचारे नौनिहालों के ऊपर दया आ गई और सभी गंधर्व पुत्रों एवं पुत्रियों को शीघ्र-अतिशीघ्र गाँव वापस लाने हेतु उन्होंने जूहू और चौपाटी की चौपट सेना को श्रीलंका के लिए रवाना कर दिया। पुल को पार करने हेतु प्रत्येक पाषाण पर अत्यंत शोषित वर्ग के बैलों के नाम स्वर्ण-अक्षरों में चॉक और डस्टर से झमा-झम लिखे जा रहे थे तभी पप्पू ने कहा- ऐसा तो नहीं कि पुल के पार रावण हो ही न! और हम फर्ज़ी में मुँह पिटा लें! सुना है मुंशी जी को आज के शक्तिमान लेखक पसंद नहीं करते! इस प्रकार सम्पूर्ण साहित्य जगत नौकरशाहों के अनूठे साहित्य-प्रेम से आलोकित एवं पुलकित होने लगा। औरे कलुआ को खुज़ली हो गई यह कहते-कहते कि अब साधारण साबुन से ही हाथ धोने से ''बी हंड्रेड प्रतिशत श्योर" ऊ काहे कि मार्केट से हैंडवाश ख़तम हो गया रहा! सादर 
प्रिय विधायक जी! सादर नमस्कार! कल से हमार बकरी छबीली पचास लीटर दूध दे रही है। हम सोच रहे हैं आप हमरी बकरी छबीली को अपने पार्टी का टिकट प्रदान करें! पढ़ी-लिखी ज्यादा तो नाही है परन्तु पैर का अँगूठा लगा लेती है औरे रही-सही भाषण की कसर भी पूरी कर ही देती है जब अपने मुँह से हमेशा टी.वी. स्क्रीन पर एक ही शब्द निकालती है। सुन लो हमरा लप्रेक! हमरी जूती, हमरा सर! बाक़ी सब ठीक बा!                


  'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ में प्रवेश कर चुके हैं जो दिनांक ०१ /०४ /२०२० (बुधवार) से प्रभावी है।

इस माह की चुनी गईं नौ श्रेष्ठ रचनाएं

स माह की चुनी गईं नौ श्रेष्ठ रचनाएं आप सभी के समक्ष वाचन हेतु प्रस्तुत हैं। अगले सप्ताह इन नौ रचनाओं में से सर्वश्रेष्ठ तीन रचनाएं पाठकों द्वारा भेजी गयी टिप्पणी और हमारे निर्णायक मंडल के निर्णय के आधार पर चुनी जायेंगी जिसे हम अगले बुधवारीय अंक में प्रकाशित करेंगे। हम आपसभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों से यह अपेक्षा करते हैं कि आप इन रचनाओं पर अपने स्वतंत्र विचार रखें!



             लोकतंत्र संवाद मंच आप सभी पाठकों का स्वागत करता है। 
तीन अंको से नौ श्रेष्ठ रचनाएं अपने लिंकों के साथ पुनः आपके समक्ष वाचन हेतु प्रस्तुत हैं।   

 क. स्वतंत्र निर्णायक मंडल द्वारा चयनित रचना(लेखक की पसंद ) 

1 भूख अब पेट में नहीं रहती

 हम बिदेश तो नहीं गए न साहब
हम तो आपकी सेवा में थे
हम ड्राइवर थे, धोबी थे, रसोइया थे
हम घर की साफ़ सफाई वाले थे
सडकें, गटर साफ़ करने वाले थे।



 जयकार में उठी कलम,क्या ख़ाक लिखेगी
अभिव्यक्ति को वतन में,खतरनाक लिखेगी !


3. कविता...... निकल गयी  

मस्ते!
नमस्ते!!
कहते हुए एक मीटर फासले से
निकल गयी कविता।

ख.लोकतंत्र संवाद के समीक्षक मंडल द्वारा चयनित रचना (आलोचकों की पसंद ) 


 हर साहित्यकार की रचना एक सुशिक्षित , 
सुसंस्कृत और सभ्य समाज की रचना के लिए सबसे अधिक उत्तरदायी होता है। 


 "एक ठो चिरैया रही, कुछ खास 
किसिम की रही. उसका पेट तो एक्कै ठो था 
लेकिन उसका मुंह था दो. समझ लो कि दोमुंही रही ऊ चिरैया... 
उस चिरैया का नाम था भारुंड..." रात को सोते समय दादी ने दो पोतों को किस्सा सुनाना शुरू किया। 


. एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए

र दुकाँ बन्द है आंखों की  तरह  नशेबाज की
क्या एक भी दुकाँ नही थोड़े  से  कर्जे  के  लिए

ग.  पाठकों की टिप्पणियाँ / समीक्षाएँ (लोकप्रिय रचना के लिये)


 झर झर बरसे मोती अविरल
नेत्र दृश्य कुछ तोल रहा था।
मूक अधर शरीर कंपित पर
भेद विदित का डोल रहा था। 


 खुद़ा के वासते तनहा ही रह कर 
अमा इक चैन की बंशी बजा ले 


 तपती धूप के रेगिस्तान में मैंने कोशिश की
धूल के साथ उड़ कर
तुझे छूने का प्रयास किया

इस भाग की विशेष चयनित रचनाएं 
( बाल रचनाकार )

 १. एक दूजे का साथ देना होगा (  प्रांजुल कुमार/ बालकवि ) 
 हम अब भी खुशियों को सजा सकते हैं,
उन टूटे खिलौनों को फिर बना सकते हैं |
इस शुभ कार्य को अब ही करना होगा,
इस भीड़ भाड़ की दुनियाँ में
एक दूजे का साथ जीवन भर देना होगा।



 खाओ सदा पौष्टिक खाना,
रहो तंदुरस्त और जिओ ज़माना। 



उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
व्यक्ति यदि  हमारे विचारों से निजी तौर पर 
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए। 
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु 
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
 है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है । 
धन्यवाद। 

 टीपें
 अब 'लोकतंत्र'  संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार '
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

आज्ञा दें!



आप सभी गणमान्य पाठकजन  पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर  साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा। रचनाओं  के क्रम  सुविधानुसार लगाये गए हैं

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

८४....हमरा हवा-हवाई चप्पल टूट गया है!

कक्का! हमरा हवा-हवाई चप्पल टूट गया है! 
बड़ा दिक्कत महसूस हो रहा है भागने में। औरे ससुर ई शॉक 
डाउन में कउनो दुकान भी नहीं खुली है। का करें बड़ा तकलीफ़ में हैं, 
औरे उधर रोज़ी-रोटी के लाले भी पड़े हैं। परसों ऊ छगनलाल बनिया के 
यहाँ गये रहे सवा सेर गेहूँ ख़ातिर, कह रहा था गेहूँ नाहीं है मैदा खाओ और मैदा न 
हो तो सूजी खाओ! अब आप ही बताओ, मैदा खाने में कितना तकलीफ़ होता है।
 पिछले साल हम मुजफ़्फ़रपुर गये थे तब सुबह-सुबह मैदा का पूड़ी खाये रहे आलू की तरकारी के साथ, वापस लख़नऊ आये तो डॉक्टर साहेब बता रहे थे कि मैदा खाने से तुम्हें पेचिस हो गया है। उन्होंने बताया हिमालय जाकर लाल कालीन पर चारों-खाने चित होकर दो-सौ-दो महाभुसण्डी महाराज का जाप करो औरे उसकी फोटू वाट्सअप यूनिवर्सिटी पर वायरल करवा दो! जितने लाइक आयेंगे तुम्हरी पीड़ा उतनी ही तेज़ी से जाती रहेगी। परन्तु का बतायें कक्का! हमने यह भी करके देख लिया पर आराम तो हराम बनकर रह गया। फिर ससुर ई तकलीफ़ लेकर हम "तुम बजाओ हम कमायें लोक हिट पार्टी" वाले बाबा के पास गये। उन्होंने कहा तुम अपनी सारी श्रद्धा हमरी ई पार्टी ख़ातिर थोबड़े की क़िताब पर दिखाओ और प्रति दो रुपये ट्रोल मज़हबी वैमनस्यता को फैलाने के साथ-साथ शीघ्र स्वास्थ्य लाभ पाओ! उन्होंने अपनी धोती बाँधते हुए फिर कहा अगर यह नहीं कर सकते तो 'सामुदायिक साहित्य चिट्ठा' के नाम पर की एक कंपनी बनाओ और कई साहित्य से जुड़े कर्मचारियों को साहित्यसेवा के नाम पर उस काम पर रखो! हम तुम्हें सालाना दस-बीस लाख रुपये तो दे ही देंगे और तुम मैगियों के देश में जाकर इन पैसों से अपना बेहतर ढंग से इलाज कराओ! का बतायें कक्का ऊ ससुर  "तुम बजाओ हम कमायें लोक हिट पार्टी" वाले बाबा के चक्कर में हमने ठेका तो ले लिया परन्तु ससुर अब भोग रहे हैं। ससुर जो वायरस हमने मोहल्ले वाली मुर्ग़ी में फैलाया था ग़लती से उसी मुर्ग़ी के अंडे का ऑमलेट हम निगल लिये रहे। डॉक्टर झटपटिया कह रहे थे कि अब इसका इलाज संभव नहीं है आप अपना इंतज़ाम तैयार रखें कभी भी बुलावा भेजा जा सकता है। बाक़ी सब ठीक है!                     


'लोकतंत्र संवाद' मंच 
'भारतरत्न' बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर जी को 
कोटि-कोटि नमन करता है।


  'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ में प्रवेश कर चुके हैं जो दिनांक ०१ /०४ /२०२० (बुधवार) से प्रभावी है।  इस भाग के दूसरे चरण में चयनित कुछ स्तरीय रचनाएं इस प्रकार हैं-
( रचनाएं वरीयता क्रम में नहीं बल्कि सुविधानुसार लगायी गयी हैं। कृपया भ्रमित न हों! )


१. भारतरत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर

  भारतीय संविधान के रचयिता
भारतरत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की आज जयंती है जो देशभर
में उत्सव की भाँति मनाई जाती है। 14 अप्रैल 1891 को जन्मे बाबा साहब का जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण रहा।

 "मेरी प्रशंसा और जय-जयकार करने से अच्छा है मेरे दिखाए मार्ग पर चलो।"

२.  भूख अब पेट में नहीं रहती

 हम बिदेश तो नहीं गए न साहब
हम तो आपकी सेवा में थे
हम ड्राइवर थे, धोबी थे, रसोइया थे
हम घर की साफ़ सफाई वाले थे
सडकें, गटर साफ़ करने वाले थे।

३.  बीत गया मधुमास सखी 

 मंजरी बिखरी आँगन में 
बीत गया मधुमास सखी।
पीत किसलय हुए पल्लवित 

हिय उमड़ा विश्वास सखी ।।

४.  ग़म के डब्बे

 क डब्बे का ढक्कन
पूरा  बंद ही नहीं होता,
रोज़-रोज़ की 
खिच -खिच से बनता है
ये वाला ग़म।  
इस ग़म की गंध से,
दिल तक़रीबन रोज़ ही 

भरा रहता है,

५. सांस्कृतिक चेतना का पर्व -- बैशाखी -- 

 ये तो है घर प्रेम का --  खाला का घर नाहि--
शीश उतारे भूईं  धरे -तब  बैठे इह माहि ||


 मुझे अंधेरों से डर नहीं लगता
मुझे सन्नाटों का भी खौफ़ नहीं

'भारतरत्न' बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर 
जी का बी.बी.सी के साथ साक्षात्कार का एक दुर्लभ चलचित्र।    
उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
व्यक्ति यदि  हमारे विचारों से निजी तौर पर 
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए। 
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु 
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
 है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है । 
धन्यवाद। 

 टीपें
 अब 'लोकतंत्र'  संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार '
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

आज्ञा दें!



आप सभी गणमान्य पाठकजन  पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर  साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा। रचनाओं  के क्रम  सुविधानुसार लगाये गए हैं। 

बुधवार, 8 अप्रैल 2020

८३....... घनन-घनन, घिर-घिर आये बदरा!





घनन-घनन, घिर-घिर आये बदरा!

नन-घनन, घिर-घिर आये बदरा! घन-घन घोर कारे छाये बदरा! मन धड़काये बदरवा ....... मन-मन धड़काये बदरवा........ ! का रे कलुआ! काहे फ़ोकट में पगलाये पड़ा है। अरे कक्का! काहे नमक में पानी डारे रहे हो! कभी तो ठीक से जवाब दे दिया करो। हम तो इहे कह रहे थे कि शॉक डाउन ससुर ख़तम हो रहा है संभवतः!
का बात कह रहे हो! हमने तो कोई श्वेत कारड नहीं बनवाया अभी तक! अरे ए कलुआ!  तनिक चंपकलाल से कह कर उहे हमार श्वेत कारड भी बनवा दो औरे हज़ार ठो रुपल्ली भी दिला ही दो आख़िर वो मगध के हाकिम काहे बने बैठे हैं। इस प्रकार करोना ससुर साहित्यकार से होते हुए पल्लीदार के घर मा अपना टाँग पसार कर सवा सौ किलो अनाज का बँटवारा देखता रहा। चतुर्थ श्रेणी के चतुरचालक वर्ग ने अपने चार मंजिला मकान में बैठकर शाम का ज़ाम लड़ाते हुए व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी पर ज्ञान प्राप्त कर इस बँटवारे के न्यायपरक कार्यक्रम पर लंबा-चौड़ा लेख विरोधी लोगों के मुँह पर दे मारा। अग्रज युधिष्ठिर! बोलो दुष्यंत! क्या कष्ट है तुमका? अरे ससुर ऊ शॉक डाउन ख़तम होने को है तनिक हमहू को ऊ श्वेत कारड आरक्षित करा दें अग्रज महोदय! इस प्रकार समस्त हस्तिनापुर राजा युधिष्ठिर की दानवीरता और सत्यता के आवेश में आकर स्वयं को चार सौ चालीस वोल्ट के आवेश से आवेशित कर बैठा! चूँकि सम्पूर्ण हस्तिनापुर की बिजली गुल थी परन्तु राज्य के प्रत्येक सिपहसालारों के हृदय करोना जीव के प्रोटीन से चहुओर आलोकित थे जहाँ एक तरफ़ साहित्यकार समाज  करोना के ख़ौफ़ से परेशान था वहीं दूसरा तबका करोना के महिमामंडन से अपना राजनीतिक कॅरियर 'नन्दवंश' के बाद स्थापित करने पर आमादा था। क़िताबघरों और पुस्तक की दुकानों से कौटिल्य के अर्थशास्त्र दे-दना-दन औने-पौने दामों पर डेटॉल हैंडवॉश की जगह ब्लैक में धड़ल्ले से बिक रहे थे। अमेज़ॉन और स्नैपडील के जंगलों से कुछ लोग कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार इबारती लकड़ियाँ चोरी-छुप्पे काटने में व्यस्त थे। तभी शहर में यह ख़बर जंगल की आग की भाँति फैल गई कि पांडव पुलवामा में मारे गये जबकि बी.डी.सी. के संवाददाता ने बताया कि आज बारह बजकर पाँच मिनट पर पांडव न्यूयार्क सिटी के एक पंचसितारा रेस्टोरेंट में कौरवों के साथ लूडो खेलते देखे गये! इस धकाधक् न्यूज़ को पढ़कर चेतक नदी के मुहाने पर अधमरा पड़ा था!
बाक़ी सब ठीक है! 


हम 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ में प्रवेश कर चुके हैं जो दिनांक ०१ /०४ /२०२० (बुधवार) से प्रभावी है।  इस भाग के दूसरे चरण में चयनित कुछ स्तरीय रचनाएं इस प्रकार हैं-
( रचनाएं वरीयता क्रम में नहीं बल्कि सुविधानुसार लगायी गयी हैं। कृपया भ्रमित न हों! )  


 खुद़ा के वासते तनहा ही रह कर 
अमा इक चैन की बंशी बजा ले 


  "मास्क भी नहीं। मैडम आप का भी 
अलग ही चल रहा है। आपको क्या लग रहा कि कोरोना वाईरस 
आपसे पूछेगा - 'मुझसे दोस्ती करोगे?' वो बस गले पड़ जाएगा। आगे आप खुद समझदार हैं।" 

३. एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए

र दुकाँ बन्द है आंखों की  तरह  नशेबाज की
क्या एक भी दुकाँ नही थोड़े  से  कर्जे  के  लिए

४.  तीन उपन्यासों से प्रयोगवाद को प्रतिष्ठित करने वाले थे अज्ञेय

 च्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ने कविता,
कहानी, उपन्यास, यात्रा-वृत्त, निबन्ध, गीति-नाट्य, ललित निबन्ध,
डायरी जैसी साहित्य की लगभग सभी विधाओं में अपनी सर्जनात्मक प्रतिभा का परिचय दिया।


 यह चराग़-ए-इश्क़ मेरा कब डरा हैंआँधियों से
रोशनी के जब मुक़ाबिल धुंध का बादल घना है



 हक़ीक़त में हो ख़्वाब पूरे ये सब
ऐसे  ख़्वाब हमने सयाने लिखे


 मैं जैसा हूँ
मुझे वैसा ही रहने देना
उस पर फ़िल्टर नहीं लगाना
कुछ और ही नहीं बना देना


 प्रलाप पाखण्ड का यह समय नहीं
अनुशासन विज्ञान के साथ चलो


 "एक ठो चिरैया रही, कुछ खास 
किसिम की रही. उसका पेट तो एक्कै ठो था 
लेकिन उसका मुंह था दो. समझ लो कि दोमुंही रही ऊ चिरैया... 
उस चिरैया का नाम था भारुंड..." रात को सोते समय दादी ने दो पोतों को किस्सा सुनाना शुरू किया। 



 कहनी थी, मुसलसल बात, मगर फुर्सत नहीं थी 
सफर चलता रहा, सरे-रात, मगर फुर्सत नहीं थी 


 खाओ सदा पौष्टिक खाना,
रहो तंदुरस्त और जिओ ज़माना। 


 हर साहित्यकार की रचना एक सुशिक्षित , 
सुसंस्कृत और सभ्य समाज की रचना के लिए सबसे अधिक उत्तरदायी होता है। 



 जयकार में उठी कलम,क्या ख़ाक लिखेगी
अभिव्यक्ति को वतन में,खतरनाक लिखेगी !


 तपती धूप के रेगिस्तान में मैंने कोशिश की
धूल के साथ उड़ कर
तुझे छूने का प्रयास किया


 उसे प्रतीक्षा होती है उस फूल की
जो उसका राजकुमार लाएगा
जूड़े में लगाने को। 


 तीलियाँ निभातीं हैं 
ख़ामोश होकर 
साथ रहने की रस्म,
अगर ये लड़ने-झगड़ने 
ज़ोर-ज़ोर से रगड़ने पर 
उतर आयें 
तो हो जाएगी 
माचिस की डिबिया भस्म।   

दरणीय हेमंत मोहन जी के स्वर में एक 'कहानी' 

उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
व्यक्ति यदि  हमारे विचारों से निजी तौर पर 
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 है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है । 
धन्यवाद। 

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आज्ञा दें!






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