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बुधवार, 29 अप्रैल 2020

८६.....'मुर्ग़ा साहित्यकार एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड'


 'मुर्ग़ा साहित्यकार एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड' 
कक्का! ई शॉक डाउन में बड़ा कड़की मची पड़ी है औरे ख़ाली क़लम घिसाई से बात नहीं बन रही है परंतु आपकी तोंद तो दिनों-दिन आठवें आसमान की ओर बढ़ रही है, ई माजरा क्या है तनिक हमें भी तो सुनाओ! अरे कलुआ तू भी बड़ा नादान है! अरे, साहित्य भी एक बिजनेस है तोका नाहीं पता! ऊ कैसे कक्का? अरे टैम्फोस! बड़ा गदहा-घमोचर है रे तू! तनिक इधर ध्यान लगा, आज मैं तुझे अपने मुर्ग़ा साहित्यकार एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड के बारे में विस्तार से बता रहा हूँ। तो सुन, पहले मैंने 'धमा-चौकड़ी कवितावली' का आविष्कार किया फिर पड़ोस वाली तितली बाई को अपना पर्सनल सेक्रेटरी नियुक्त किया। औरे ऊ 'तितलीबाई' ने दूसरे मुर्ग़ी मारक रचनाकारों को हमरी कंपनी तक ले आई फिर क्या था। ई पुराना गाना सुन!
एक तितली 
अनेक तितलियाँ 
एक मुर्ग़ी, 
अनेक मुर्ग़ियाँ 
सूरज एक 
तारे अनेक!

अब समझा घमोचर आदमी!
ही ही! कक्का तूहों गज़ब हो! अरे अभी और सुन! इस प्रकार मेरी कंपनी ने कविता सिखाओ और ख़ूब खिलाओ सेंटर का आविष्कार किया। मुर्ग़े/मुर्ग़ीयाँ जुड़ते गए और बिजनेस बनता गया। फिर क्या किया कक्का? फिर, अरे फिर क्या था मैंने एक डॉक्यूमेंट्री बनाई 'मुर्ग़ी कवितावली संग्रह' जिसमें सभी मुर्ग़ियों और मुर्ग़ों को प्रति मुर्ग़ी/मुर्ग़ा फ़ीस ३०० सौ रुपये रखा।  अब सोचो, यदि १५० मुर्ग़ी/मुर्ग़ा हमारी इस 'मुर्ग़ी कवितावली संग्रह' में आकर जुड़ गए तो, ऐसे समझो, 
1.  १५० गुणा मुर्ग़ी/मुर्ग़ा * ३००रुपये  =   45000 जमा ( शुद्ध-शुद्ध लाभ ) संपादक/प्रकाशक की ज़ेब में  
2. अब प्रकाशन के बाद प्रत्येक अतिउत्साही  मुर्ग़ी/मुर्ग़ा अपने प्रियजनों को अपनी रचना दिखाने और अपने लिए वाह-वाही लूटने हेतु कम से कम पुस्तक की तीन-चार प्रतियाँ तो ख़रीदेगा ही ख़रीदेगा सो हिसाब लगा कलुआ! जी कक्का अबहिने लो,
प्रति मुर्ग़ी/मुर्ग़ा द्वारा ख़रीदी जाने वाली 'मुर्ग़ी कवितावली संग्रह' की प्रतियाँ लगभग = 4 
 'मुर्ग़ी कवितावली संग्रह' की एक प्रति का मूल्य = 450 
'मुर्ग़ी कवितावली संग्रह' में शामिल कुल मुर्ग़ी/मुर्ग़ा= 150 , तो 
150 *4 = 600 ( कुल ख़रीदी जाने वाली प्रतियाँ )
कुल मूल्य की ख़रीदी जाने वाली प्रतियाँ = 600 *450 = 270,000( दो लाख सत्तर हज़ार रुपये
संपादक/प्रकाशक द्वारा पुस्तक छपवाने में ख़र्च रुपये = 8000 ( आठ हज़ार रुपये )
संपादक/प्रकाशक को होने वाला शुद्ध लाभ =  270,000 - 8000 = 262,000 (दो लाख बासठ हज़ार )

अब ई तो हुआ प्रति तीन महीने का लाभ क्योंकि मैं संग्रह के नाम पर प्रत्येक तीन महीने पर यह आयोजन करता रहता हूँ। 
अब आओ हमरी पाठशाला में सदस्यता शुल्क पर जो कि वार्षिक 2,000 रुपये/प्रति मुर्ग़ी/मुर्ग़ा रखे गए हैं तो हिसाब लगा कलुआ! जी कक्का अबही लो,
   
  300 सदस्य मुर्ग़ी/मुर्ग़ा तुम्हरी 'झटपट कविता सिखाओ पाठशाला' में सदस्य के तौर पर एडमिशन लिए तो 
कुल जमा हुआ = 300 * 2,000 = 600,000 ( छह लाख ) शुद्ध-शुद्ध लाभ ऊ पाठशाला के मालिक को जो झटपट कविता सिखाओ पाठशाला चला रहा है। अब बता कलुआ साहित्य है ना सदाबहार बिजनेस! क्यूँ, क्या कहता है। वाह कक्का, तुम तो 'साहित्य के आर्यभट्ट' निकले। परन्तु कक्का एक बात हमरे समझ में नाहीं आई कि इतने बुद्धिजीवी लेखक झटपट साहित्य पाठशाला के बातों में कइसे आ गए? औरे ऊ दूसरे अतिमहानबुद्धिजीवी लेखक अभी तक काहे चुप हैं? अरे कलुआ, तुम निकले एकदम बोकस!  कोरोनाकाल चल रहा है अतः सभी ने मुँह पर मास्क पहन रखा है। कहीं उन्हें संक्रमण ना हो जाए! अरे, आजकल के साहित्यकारों को क़िताबों पर कम विश्वास है। उन्हें लगता है कि क़िताब उन्हें ग़लत ज्ञान देगा और झमाझम साहित्यकार पाठशाला वाला गुरु ज़्यादा! औरे सभी को कलही सुमित्रा नंदन पंत औरे निराला जो बनना है! आज देख,हमरी 'मुर्ग़ा साहित्यकार एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड' कैसे सीना तानकर थोबड़े की क़िताब और ब्लॉगजगत में अपना विजय पताका फहरा रही है। और वैसे भी आधुनिक हिंदी के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने अपने एक निबंध 'भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है' में लिखा है कि "हम भारत के लोग उसी ट्रेन की बोगियों के समान हैं जो बिना सोचे-समझे किसी भी इंजन के पीछे जुड़ जाते हैं चाहे वह ट्रेन खाई में ही क्यों ना जा रही हो!"    
वाह कक्का! वाह! अरे हुज़ूर वाह कक्का नहीं, वाह 'मुर्ग़ा साहित्यकार एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड' का दिमाग़ बोलिए ! बाक़ी सब ठीक है!               

 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२  का परिणाम घोषित।
(निर्णायक मंडल में लोकतंत्र संवाद मंच का कोई भी सदस्य शामिल नहीं है।)  

सर्वश्रेष्ठ रचनाओं की सूची दिए गये अंकों के साथ एवं उनके लिंक इस प्रकार हैं।   

क. स्वतंत्र निर्णायक मंडल द्वारा चयनित रचना(लेखक की पसंद ) 

1 भूख अब पेट में नहीं रहती ( ६/१० अंक )

 हम विदेश देश तो नहीं गए न साहब
हम तो आपकी सेवा में थे
हम ड्राइवर थे, धोबी थे, रसोइया थे
हम घर की साफ़ सफाई वाले थे
सडकें, गटर साफ़ करने वाले थे।


 जयकार में उठी कलम,क्या ख़ाक लिखेगी
अभिव्यक्ति को वतन में,खतरनाक लिखेगी !


3. कविता...... निकल गयी  ( ५/१० अंक ) 

मस्ते!
नमस्ते!!
कहते हुए एक मीटर फासले से
निकल गयी कविता।

ख.लोकतंत्र संवाद मंच के समीक्षक मंडल द्वारा चयनित रचना (आलोचकों की पसंद ) 


 हर साहित्यकार की रचना एक सुशिक्षित , 
सुसंस्कृत और सभ्य समाज की रचना के लिए सबसे अधिक उत्तरदायी होता है। 



 "एक ठो चिरैया रही, कुछ खास 
किसिम की रही. उसका पेट तो एक्कै ठो था 
लेकिन उसका मुंह था दो. समझ लो कि दोमुंही रही ऊ चिरैया... 
उस चिरैया का नाम था भारुंड..." रात को सोते समय दादी ने दो पोतों को किस्सा सुनाना शुरू किया। 


. एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए ( ५/१० अंक ) 

र दुकाँ बन्द है आंखों की  तरह  नशेबाज की
क्या एक भी दुकाँ नही थोड़े  से  कर्जे  के  लिए

ग.  पाठकों की टिप्पणियाँ / समीक्षाएँ (लोकप्रिय रचना के लिये)


 खुद़ा के वासते तनहा ही रह कर 
अमा इक चैन की बंशी बजा ले 


इस भाग की विशेष चयनित रचनाएं 
( बाल रचनाकार )

 १. एक दूजे का साथ देना होगा प्रांजुल कुमार/ बालकवि ( ३.५/१० अंक )  
 हम अब भी खुशियों को सजा सकते हैं,
उन टूटे खिलौनों को फिर बना सकते हैं |
इस शुभ कार्य को अब ही करना होगा,
इस भीड़ भाड़ की दुनियाँ में
एक दूजे का साथ जीवन भर देना होगा।


 खाओ सदा पौष्टिक खाना,
रहो तंदुरस्त और जिओ ज़माना। 

अंतिम परिणाम 
( नाम सुविधानुसार व्यवस्थित किये गये हैं। )
       1 भूख अब पेट में नहीं रहती ( आदरणीया प्रतिभा कटियार )

  ३. अभी हरगिज न सौपेंगे सफ़ीना----------( आदरणीय राजेश कुमार राय )

  
          नोट: प्रथम श्रेणी में रचनाओं की उत्कृष्टता के आधार पर दो रचनाएं चुनी गयीं हैं। इन सभी रचनाकारों को लोकतंत्र संवाद मंच की ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं। आप सभी रचनाकारों को पुरस्कार स्वरूप पुस्तक साधारण डाक द्वारा शीघ्र-अतिशीघ्र प्रेषित कर दी जाएंगी। अतः पुरस्कार हेतु चयनित रचनाकार अपने डाक का पता पिनकोड सहित हमें निम्न पते dhruvsinghvns@gmail.com) ईमेल आईडी पर प्रेषित करें!  अन्य रचनाकार निराश न हों और साहित्य-धर्म को निरंतर आगे बढ़ाते रहें। हम आज से इस पुरस्कार योजना के अगले चरण यानी कि 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-३  में प्रवेश कर रहे हैं। जो दिनांक ०१ /०४ /२०२० (बुधवार) से प्रभावी है।  इस भाग में चयनित कुछ स्तरीय रचनाएं इस प्रकार हैं-
           

 काहे तू अम्माँ को झूठी बोले है..!"
"ई मुआँ कोरोना ,नासपीटा,करमजला आ गईल वरना काहे हम लोगन गांव जाते..।"
अम्मा जब बोल रही है, थोड़ी देर में गांव पहुँच जाएँगे तो के केरे तू लपड़झपर कर रही है।"


डाल- डाल पे फिरे मंडराती -
बनी उपवन की रानी तितली ;
हरेक फूल को चूमे जबरन -
तु करती मनमानी तितली !


 वात्सल्य में ऐसे विवश हुए
धृतराष्ट्र सब ताले तोड़ चले,
अवाक् ज़माना देख रहा
कैसे क़ानून मुरीद हुआ?


 सौंदर्यमयी स्रोतस्विनी 
उतर रही है
अल्हड़ चंचला-सी
पर्वत-श्रृंखला को 
छेड़ते श्वेत बादलों कीं 


र चूल्हा जलता कब है?
   पूछो उन  मजदूरों से .. ....
    आज बोल कर गया था 

आदरणीय हेमंत मोहन जी द्वारा एक कहानी का वाचन 

उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
व्यक्ति यदि  हमारे विचारों से निजी तौर पर 
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए। 
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु 
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
 है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है । 
धन्यवाद। 
            टीपें
 अब 'लोकतंत्र'  संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार '
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



आज्ञा दें!

 आप सभी गणमान्य पाठकजन  पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर  साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा। रचनाओं  के क्रम  सुविधानुसार लगाये गए हैं

10 टिप्‍पणियां:

  1. कक्का और कलुआ के वार्तालाप के साथ लाजवाब सूत्र
    चयन । बेहतरीन संकलन ।

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  2. संवाद के बहाने हक़ीक़त का बयान। ग़ज़ब प्रस्तुति।

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  3. वाह@ध्रुव जी ,दाद देनी पडेगी आपकी बुद्धि और सोच की ,किसी न किसी तरह व्यंग्य कर ही देते है , जो कोई नहीं अह पाता आप कह कह देते हैं ।

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  4. विजयी साहित्यकारों को बधाई। लाजवाब प्रस्तुति।

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  5. आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
    बहुत करारा व्यंग प्रस्तुत किया आपने। साहित्य तो ईश्वर की तरह सेवा और समर्पण का भाव माँगता है, व्यापार नही। यह व्यापार साहित्य को ऊपर नही उठने देगा। पंत और निराला तो कोई तभी बनेगा जब उसमें साहित्य के प्रति सच्चे भाव होंगे बिलकुल एक भक्त की तरह।
    शानदार भूमिका संग लाजवाब प्रस्तुति दी आपने। ' लोकतंत्र संवाद मंच साहित्यिक पुस्तक पुरस्कार योजना भाग 2 ' के सभी चयनित विजेताओं को मेरी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ। आज की चयनित सभी रचनाएँ भी एक से बढ़कर एक। लोकतंत्र के मंच पर इन कमाल की रचनाओं के मध्य मेरी पंक्तियों को भी स्थान दिया आपने इस हेतु आपका हार्दिक आभार। अभी आदरणीय हेमंत सर द्वारा प्रस्तुत कहानी नही सुन पाए। अब सुनेंगे 🙏

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  6. सुंदर व्यंग्य। लेकिन एक जगह 'अलंकार-दोष' प्रतीत होता है। 300 पृष्टों की 600 प्रतियों वाली पुस्तक का कुल प्रकाशन खर्च 8000 रुपया। यहां 'अत्यल्पोक्ति अलंकार' आ गया है।😀😀
    ई घमोचर कलुआ भी कक्काजी से जो न कहलवा दे! चलिए खुशी तो यह जानकर हुई कि बात बात में हिन्दू-मुस्लिम का जहर पटाने वाले इस जमाने मे अब मुर्गियाँ और तितलियाँ कविता सीख रही हैं। अब वो जमाना फिर वापस आ रहा है जब मंडन मिश्र का तोता आदिशंकराचार्य को संस्कृत व्याकरण सिखाएगा। बहुत सुंदर संकलन और विजेताओं को बधाई!!!

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. प्रिय ध्रुव , बहुत ही मारक व्यंग के साथ सुंदर प्रस्तुति | कक्का - कलुवा संवाद रोचकता के साथ साहित्य की कई छद्म गतिविधियों को इंगित करता है| कोई अच्छी नियत से इस तरह के उपक्रम करता है तो वह स्वागत योग्य है पर यदि इस तरह के काम केवल धनोपार्जन के लिए जा रहे हैं तो बहुत निंदनीय हैं | किसी लेखक की रचनाओं का पुस्तक रूप में संग्रह निश्चित रूप से एक रचनाकार के लिए बहुत ही अविस्मरनीय अनुभव होता है खासकर नए लेखकों के लिए , पर इसकी आड़ में कोई उनका शोषण करे इस बात का विरोध जरुर होना चाहिए | और कविता यूँ तो हरेक की आत्माभिव्यक्ति है पर यदि कोई गुरु इस कला को निखारने में मदद करता है तो भी शायद कोई हर्ज नहीं लेकिन इस के पीछे धन कमाने की लालसा इस कर्म की गरिमा गिरा देती है | आज के सभी विजेताओं को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं | सभी विजेता जरुर लॉकडाउन के बाद पुस्तकें मिलने पर अपने अनुभव साझा करे क्योंकि पुस्तक पुरस्कार में मिलना एक अत्यंत सुखद अनुभव है | मेरी रचना को मंच पर इस अंक में स्थान मिला हार्दिक आभार |समय मिलते ही वीडियो भी सुनती और देखती हूँ |

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  9. बहुत सुन्दर सटीक व्यंगकथा के साथ शानदार प्रस्तुति.... सभी विजेताओं की हार्दिक बधाई एवं नये रचनाकारों को अनंत शुभकामनाएं।

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आप सभी गणमान्य पाठकों व रचनाकारों के स्वतंत्र विचारों का ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग स्वागत करता है। आपके विचार अनमोल हैं। धन्यवाद