प्रिय कक्का,
चरणों में प्रणाम स्वीकार करें!
इस प्रकार कोरोना नामक धूर्त युद्ध में मारा गया और रामायण, महाभारत के साथ सात समंदर पार कोस्टा रिक्का के वनों में 'सवा सेर गेहूँ' लेने मुंसिपल्टी की लंबी कतार में खड़ा हो गया जहाँ हस्तिनापुर से आये पाँच-पाँच सौ के नोट फ़ोकट में ही विजयगढ़ की सेना को रोटी और नमक से साथ बिना मिर्च के ही बाँटे जा रहे थे। "अरे भीम! पीछे काहे खड़े हो? ज़रा आगे आकर भोजन तो परोसो!" बड़ा अच्छा हुआ जो हमने कश्मीर को लॉक कर दिया। अरे बदहवास जी कोई कविता या गीत मंच से चढ़कर ज़रा भारतीयता की याद दिलाते हुए बाँच दीजिये जनता-जनार्दन के बीच। इस प्रकार दिल्ली के सिंहासन का द्वन्द शांत हुआ परन्तु वर्चस्व और धर्मरक्षा का पुलिंदा फूट पड़ा! नहीं! नहीं! ऐसा नहीं हो सकता! एक दिन मेरा बेटा विश्वगुरु अवश्य बनेगा आप देख लीजियेगा मैं कहे देती हूँ। सत्य कहती हो लाजवंती, हमरी तो मति मारी गई थी। झूठ-मूठ ही मैं इसे निकम्मा समझता था। बताओ पढ़े-लिखे आला अधिकारी हमरे अँगूठा-छाप बेटे की ग़ुलामी करते हैं आज! औरे ई, जिसकी पाँचवीं कक्षा का अंक-पत्र आज तक उहे 'दादा उमानाथ' के जलेबी की दुकान पर रखा है इस इंतज़ार में कि कभी न कभी हमरे कर्ण और अर्जुन आयेंगे कि साहेब अभी भी बख़त है, पैकेट वाला दूध इस्तेमाल कर लो क्योंकि समूल-स्प्रे की कंपनी के मज़दूर, मज़बूरी में रस्ता नाप लिए औरे विधायक जी का लौंडा कोटा में पब-पब खेल रहा था परन्तु शॉक-डाउन के बाद वहाँ के सारे ठर्रा मालिक पाकिस्तान चले गए औरे पब बंद हो गया! तभी इन्द्र देव को इन बेचारे नौनिहालों के ऊपर दया आ गई और सभी गंधर्व पुत्रों एवं पुत्रियों को शीघ्र-अतिशीघ्र गाँव वापस लाने हेतु उन्होंने जूहू और चौपाटी की चौपट सेना को श्रीलंका के लिए रवाना कर दिया। पुल को पार करने हेतु प्रत्येक पाषाण पर अत्यंत शोषित वर्ग के बैलों के नाम स्वर्ण-अक्षरों में चॉक और डस्टर से झमा-झम लिखे जा रहे थे तभी पप्पू ने कहा- ऐसा तो नहीं कि पुल के पार रावण हो ही न! और हम फर्ज़ी में मुँह पिटा लें! सुना है मुंशी जी को आज के शक्तिमान लेखक पसंद नहीं करते! इस प्रकार सम्पूर्ण साहित्य जगत नौकरशाहों के अनूठे साहित्य-प्रेम से आलोकित एवं पुलकित होने लगा। औरे कलुआ को खुज़ली हो गई यह कहते-कहते कि अब साधारण साबुन से ही हाथ धोने से ''बी हंड्रेड प्रतिशत श्योर" ऊ काहे कि मार्केट से हैंडवाश ख़तम हो गया रहा! सादर
प्रिय विधायक जी! सादर नमस्कार! कल से हमार बकरी छबीली पचास लीटर दूध दे रही है। हम सोच रहे हैं आप हमरी बकरी छबीली को अपने पार्टी का टिकट प्रदान करें! पढ़ी-लिखी ज्यादा तो नाही है परन्तु पैर का अँगूठा लगा लेती है औरे रही-सही भाषण की कसर भी पूरी कर ही देती है जब अपने मुँह से हमेशा टी.वी. स्क्रीन पर एक ही शब्द निकालती है। सुन लो हमरा लप्रेक! हमरी जूती, हमरा सर! बाक़ी सब ठीक बा!
हम 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ में प्रवेश कर चुके हैं जो दिनांक ०१ /०४ /२०२० (बुधवार) से प्रभावी है।
इस माह की चुनी गईं नौ श्रेष्ठ रचनाएं
इस माह की चुनी गईं नौ श्रेष्ठ रचनाएं आप सभी के समक्ष वाचन हेतु प्रस्तुत हैं। अगले सप्ताह इन नौ रचनाओं में से सर्वश्रेष्ठ तीन रचनाएं पाठकों द्वारा भेजी गयी टिप्पणी और हमारे निर्णायक मंडल के निर्णय के आधार पर चुनी जायेंगी जिसे हम अगले बुधवारीय अंक में प्रकाशित करेंगे। हम आपसभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों से यह अपेक्षा करते हैं कि आप इन रचनाओं पर अपने स्वतंत्र विचार रखें!
लोकतंत्र संवाद मंच आप सभी पाठकों का स्वागत करता है।
3. कविता...... निकल गयी
नमस्ते!
नमस्ते!!
कहते हुए एक मीटर फासले से
निकल गयी कविता।
३. एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए
हर दुकाँ बन्द है आंखों की तरह नशेबाज की
क्या एक भी दुकाँ नही थोड़े से कर्जे के लिए
झर झर बरसे मोती अविरल
नेत्र दृश्य कुछ तोल रहा था।
मूक अधर शरीर कंपित पर
तीन अंको से नौ श्रेष्ठ रचनाएं अपने लिंकों के साथ पुनः आपके समक्ष वाचन हेतु प्रस्तुत हैं।
क. स्वतंत्र निर्णायक मंडल द्वारा चयनित रचना(लेखक की पसंद )
1. भूख अब पेट में नहीं रहती
हम बिदेश तो नहीं गए न साहब
हम तो आपकी सेवा में थे
हम ड्राइवर थे, धोबी थे, रसोइया थे
हम घर की साफ़ सफाई वाले थे
सडकें, गटर साफ़ करने वाले थे।
हम बिदेश तो नहीं गए न साहब
हम तो आपकी सेवा में थे
हम ड्राइवर थे, धोबी थे, रसोइया थे
हम घर की साफ़ सफाई वाले थे
सडकें, गटर साफ़ करने वाले थे।
जयकार में उठी कलम,क्या ख़ाक लिखेगी
अभिव्यक्ति को वतन में,खतरनाक लिखेगी !
3. कविता...... निकल गयी
नमस्ते!
नमस्ते!!
कहते हुए एक मीटर फासले से
निकल गयी कविता।
ख.लोकतंत्र संवाद के समीक्षक मंडल द्वारा चयनित रचना (आलोचकों की पसंद )
हर साहित्यकार की रचना एक सुशिक्षित ,
सुसंस्कृत और सभ्य समाज की रचना के लिए सबसे अधिक उत्तरदायी होता है।
"एक ठो चिरैया रही, कुछ खास
किसिम की रही. उसका पेट तो एक्कै ठो था
लेकिन उसका मुंह था दो. समझ लो कि दोमुंही रही ऊ चिरैया...
उस चिरैया का नाम था भारुंड..." रात को सोते समय दादी ने दो पोतों को किस्सा सुनाना शुरू किया।
३. एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए
हर दुकाँ बन्द है आंखों की तरह नशेबाज की
क्या एक भी दुकाँ नही थोड़े से कर्जे के लिए
ग. पाठकों की टिप्पणियाँ / समीक्षाएँ (लोकप्रिय रचना के लिये)
१. भेद विदित का
झर झर बरसे मोती अविरल
नेत्र दृश्य कुछ तोल रहा था।
मूक अधर शरीर कंपित पर
भेद विदित का डोल रहा था।
खुद़ा के वासते तनहा ही रह कर
अमा इक चैन की बंशी बजा ले
तपती धूप के रेगिस्तान में मैंने कोशिश की
धूल के साथ उड़ कर
तुझे छूने का प्रयास किया
इस भाग की विशेष चयनित रचनाएं
( बाल रचनाकार )
१. एक दूजे का साथ देना होगा ( प्रांजुल कुमार/ बालकवि )
हम अब भी खुशियों को सजा सकते हैं,
उन टूटे खिलौनों को फिर बना सकते हैं |
इस शुभ कार्य को अब ही करना होगा,
इस भीड़ भाड़ की दुनियाँ में
एक दूजे का साथ जीवन भर देना होगा।
हम अब भी खुशियों को सजा सकते हैं,
उन टूटे खिलौनों को फिर बना सकते हैं |
इस शुभ कार्य को अब ही करना होगा,
इस भीड़ भाड़ की दुनियाँ में
एक दूजे का साथ जीवन भर देना होगा।
उद्घोषणा
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
धन्यवाद।
टीपें
अब 'लोकतंत्र' संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार '
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आज्ञा दें!
आप सभी गणमान्य पाठकजन पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा। रचनाओं के क्रम सुविधानुसार लगाये गए हैं
बहुत सुन्दर संकलन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन , बेहतरीन प्रस्तुति अपनी जूती अपना सिर
जवाब देंहटाएंयथार्थ लेखन ,ध्रुव जी आपकी लेखन शैली अद्वितीय एवम् अद्भुत है ,यथार्थ कटाक्ष व्यंग एवम् अपनी बात को प्रस्तुत करने का तरीका बेहतरीन है ।
😃😃प्रिय विधायक जी! सादर नमस्कार! कल से हमार बकरी छबीली पचास लीटर दूध दे रही है। हम सोच रहे हैं आप हमरी बकरी छबीली को अपने पार्टी का टिकट प्रदान करें! पढ़ी-लिखी ज्यादा तो नाही है परन्तु पैर का अँगूठा लगा लेती है औरे रही-सही भाषण की कसर भी पूरी कर ही देती है जब अपने मुँह से हमेशा टी.वी. स्क्रीन पर एक ही शब्द निकालती है😆😆🤣😅😅
जवाब देंहटाएंप्रिय ध्रुव , आज तो कक्का जी निहाल हो जाएँगे इतना सुंदर उत्साहवर्धक संदेशवा पाकर और विधायक जी को भी पैर से अंगूठा लगाने वाली और हमेशा एक ही शब्द भाषण में गाने वाली अत्यंत सुयोग्य उम्मीदवार वार कहाँ मिल सकेगी | अपनी तरह का मारक व्यंग जो छद्म , अवसरवादी व्यवस्था को आइना दिखाता है 👌👌👌👌 लिखते रहो | मेरी हार्दिक शुभकामनाएं| आजके सभी चयनित नौ रचनाकारों की रचनाएँ बहुत ही सार्थक और पठनीय है | संवेदनाओं को जगाते सभी लिंक अपनी पहचान आप हैं | सभी बधाई और शुभकामनाएं| | आशा है पिछले विजेता भी अपने अनुभव साझा करेंगे। 😊😊
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंधरा दिवस की बधाई हो।
सुप्रभात...आपका दिन मंगलमय हो।
बहुत सुंदर संकलन 👌
जवाब देंहटाएंवाह!ध्रुव जी ,बहुत खूब ...! एक अच्छी भूमिका, पाठक को बाँधे रखने की कला में माहिर हैं आप ।सभी रचनाएँ सुंदर ।
जवाब देंहटाएंसार्थक और पठनीय रचनाओं का चयन ध्रुव जी ...
जवाब देंहटाएंआपका आभार हैं मेरी रचना के चुनाव के लिए ...
लाजवाब हास्य व्यंगकथा के साथ शानदार प्रस्तुतीकरण ...सभी चयनित रचनाएं बेहद उम्दा..
जवाब देंहटाएंरचनाकारों को बहुत बहुत बधाई।
बहुत सुंदर कथा बेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंआप सब का हार्दिक शुक्रिया , कविता अपना मुक़ाम खुद तय करती है ... हम तो केवल माध्यम ...
जवाब देंहटाएंआभार आपका रचना को स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम आदरणीय सर 🙏
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए क्षमा करिएगा।
" बताओ पढ़े-लिखे आला अधिकारी हमरे अँगूठा-छाप बेटे की ग़ुलामी करते हैं आज!"
"
तभी इन्द्र देव को इन बेचारे नौनिहालों के ऊपर दया आ गई और सभी गंधर्व पुत्रों एवं पुत्रियों को शीघ्र-अतिशीघ्र गाँव वापस लाने हेतु उन्होंने जूहू और चौपाटी की चौपट सेना को श्रीलंका के लिए रवाना कर दिया। "
कमाल की प्रस्तुति और लाजवाब भूमिका...आदरणीय सर आज का अंक तो कुछ ज़्यादा ही रोचक बन गया और आदरणीय कवि अशोक चक्रधर जी की कविता सोने पर सुहागा। सभी चयनित नौं रचनाएँ भी बेहद उम्दा हैं। सब एक से बढ़कर एक। सभी को मेरी ढेरों बधाई और शुभकामनाएँ।
आपकी कलम और आपको मेरा पुनः प्रणाम 🙏
वाह! शानदार व्यंग्य जिसमें एक टोपी में अनेक पृथक-पृथक रंग के पँख से लगे हुए हैं जिनको बड़ी ख़ूबसूरती से गूँथा गया है। व्यंग्य में बढ़ती आपकी परिपक्वता अब क़ाबिल-ए-तारीफ़ है।
जवाब देंहटाएंसाहित्यिक पुरस्कार योजना के अगले चरण में चयनित रचनाएँ निस्संदेह उत्कृष्ट हैं,सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ। अब सुधी पाठकों व रचनाकारों से अपेक्षा रहेगी कि वे अंतिम चरण हेतु श्रेष्ठ तीन रचनाओं के चयन में अपनी व्याख्यात्मक टिप्पणी के साथ सक्रिय भागीदारी प्रदर्शित करना चाहिए। बहरहाल अगले अंक की प्रतीक्षा अब उत्सुकताभरी हो गयी है।
I am really happy to say it’s an interesting post to read APJ Abdul Kalam Quotes in Hindi this is a really awesome and i hope in future you will share information like this with us
जवाब देंहटाएंThis is really fantastic website list and I have bookmark you site to come again and again.birthday countdown quotes
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