इस पवित्र गोबर पर अपने हाथ रखकर कसम खाओ!
का हो कक्का! काहे शुतुरमुर्ग की तरह मुँह फुलाये बैठे हो! का तोहरे तबेले में कउनो विशेष बात हो गई! अरे नाही रे कलुआ! अब तोहसे का बतायें! बड़ा दरद है! कलुआ- "कउन बात का?"
"का कौनो चोट-वोट लागी राही!"
"अरे नाही"
"का कहें तोहसे!"
"और कैसे?"
हमरे तबेले की सभई भैंसिया ऊ चाउमीन वाले झटपट वायरस से मरी जा रहीं हैं औरे जो ज़िंदा बची हैं उन्हें खुजली हो गयी है। कल रात तुम्हरी काकी ने "भैंसिया रिलीफ फंड" खंगाला जो पूरी तरह से ख़ाली रही। अब सोच रहे हैं ऊ थोबड़े की क़िताब औरे मीडिया के ज़रिये इन भैंसियों के नाम थोड़ा बहुत चंदा जुटा लें और इन भैंसियों की दवा-दारू ख़रीद लायें। नहीं तो हमरी सारी भैंसिया गंजी हो जायेंगी। अरे कलुआ तनिक सुन, कहते हुए कक्का ने कलुआ की ओर आशा भरी नज़रों से देखा। कलुआ भी कक्का के नेक इरादे भाँपता हुआ थोड़ा सावधान हो गया- कहो कक्का, इम्मा हम क्या कर सकते हैं ?
कक्का- अरे कलुआ, तनिक तू भी थोड़ा दान दइ दे तो ससुर हमरी भैंसियन के बाल वापस आ जायेंगे चूरनवाले बाबा की कृपा से ।
कलुआ- नाही कक्का, हम नाही देब ई बार चंदा। उस बार हमने तोहरे "गदहों चलो हिमालय यात्रा औरे चमगादड़ों उड़ो अमीरात देश" वाले जनकल्याण प्रायोजित कार्यक्रम के नाम पूरे चवन्नी दान किए रहे। का हुआ उसका ? अगले महीने पता चला ऊ चंदा के फंड से तुमने अपनी पार्टी का तंबू छवा लिया औरे हम बिना छप्पर के संडास में बैठे हैं। उसी फंड के पैसे से तुमने गदहा गाड़ी भी ले ली है और हम अभी तक ग्यारह नंबर की गाड़ी से ग्रामीण -यात्रा कर रहे हैं। उसी पैसे से तुमने चुनावी दंगल में शुतुरमुर्ग-भैसियन की ख़रीद-फ़रोख़्त की है औरे अपनी लँगड़ी सरकार भी बना ली औरे हम अभी ताँगा हाँक रहे हैं। उहे पैसे से तुमने ख़बरियों के सारे अख़बार ख़रीद लिये औरे हम झुनझुना बजा रहे हैं। और तो और गाँव के "केंद्रीय संरक्षित आपदा चिल्लर फंड" को भी तुमने नहीं बख़्शा! उसे भी तुमने ज़ोर-ज़बर्दस्ती से तुड़ा लिया औरे हमको बताया तक नहीं कि उहे फंड का पैसा कहाँ गया! उसी पैसे का चारा खाकर तुम्हरे तबेले की कुछ चंट भैसिया दूसरी भोली-भाली भैसियों के बीच खुले में जा-जाकर गंध मचा रही हैं जिसकी बदबू से वे बौरा-बौराकर आपस में ही लड़ रही हैं। कई भैसिया तो बिना टिकट के ही ऊपर निकल लीं औरे बची हुई सरकारी दवाख़ाना में अपनी मलहम-पट्टी करवा रही हैं। अब तुमही बताओ कक्का हम तोहरे पर कइसे विश्वास करें कि इहे बार तुम हमार पैसा भैसियन के इलाज़ में ही लगाओगे! इस बार हम तो अपना पैसा ख़ुद ही भैसियन के इलाज़ में डायरेक्ट लगायेंगे और बाक़ी बचे रकम से ऊ टमटम वाला ठेला ख़रीदेंगे ताकि इस शॉकडाउन के दौरान घर में ही बैठकर हम औरे हमार बहुरिया चनाझोर गरम बेच सकें। तुम अपना देख लो कक्का! हाँ! एक शर्त पर हम 'भैंसिया रिलीफ फंड" में चंदा देंगे-
पहला- पैसों का हिसाब-किताब तुम थोबड़े की क़िताब पर अपडेट करोगे!
दूसरा- उस गाढ़ी कमाई के पैसे से मंदिर-मस्ज़िद नहीं भैसियन का तबेला बनवाओगे!
तीसरा- अपनी चंट भैसियन को ई फंड से एक्को रुपल्ली नाही दोगे!
चौथा- ई फंड से सरकारी अस्पताल बनवाओगे न कि देश के कोने-कोने में अपने पार्टी के कार्यालय!
अब आगे आओ, औरे इस पवित्र गोबर पर अपने हाथ रखकर कसम खाओ! बाक़ी सब ठीक है।
'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ का परिणाम घोषित।
(निर्णायक मंडल में लोकतंत्र संवाद मंच का कोई भी सदस्य शामिल नहीं है।)
सर्वश्रेष्ठ रचनाओं की सूची दिए गये अंकों के साथ एवं उनके लिंक इस प्रकार हैं।
३. एक और तमस / गोपेश मोहन जैसवाल
४. हायकु /सुधा देवरानी ( श्रेष्ठ रचना टिप्पणियों की संख्या के आधार पर )
५. एक व्यंग्य : तालाब--मेढक---- मछलियाँ /आनंद पाठक ( रचना की उत्कृष्टता के आधार पर )
नोट: प्रथम श्रेणी में रचनाओं की उत्कृष्टता के आधार पर दो रचनाएं चुनी गयीं हैं। इन सभी रचनाकारों को लोकतंत्र संवाद मंच की ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं। आप सभी रचनाकारों को पुरस्कार स्वरूप पुस्तक साधारण डाक द्वारा शीघ्र-अतिशीघ्र प्रेषित कर दी जाएंगी। अतः पुरस्कार हेतु चयनित रचनाकार अपने डाक का पता पिनकोड सहित हमें निम्न पते (dhruvsinghvns@gmail.com) ईमेल आईडी पर प्रेषित करें! अन्य रचनाकार निराश न हों और साहित्य-धर्म को निरंतर आगे बढ़ाते रहें। हम आज से इस पुरस्कार योजना के अगले चरण यानी कि 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ में प्रवेश कर रहे हैं। जो आज दिनांक ०१ /०४ /२०२० (बुधवार) से प्रभावी होगा। इस भाग में चयनित कुछ स्तरीय रचनाएं इस प्रकार हैं-
१. भेद विदित का
झर झर बरसे मोती अविरल
नेत्र दृश्य कुछ तोल रहा था।
मूक अधर शरीर कंपित पर
भेद विदित का डोल रहा था।
२. पूर्णविराम
ध्वंश हो गयी ध्वनि बेला
कुदरत के नए तांडव गांडीव से आज
अभिलेख ऐसा लिखा मानव ने
कायनात अपनी ही रूह से महरूम होती जाय
३. कविता...... निकल गयी
नमस्ते!
नमस्ते!!
कहते हुए एक मीटर फासले से
निकल गयी कविता।
४.सड़कों पर मज़दूरों के हुजूम पर सोचने के लिये कुछ संजीदा बाते
हर जगह सोशल डिस्टेंसिंग की बात
की जा रही है। मज़दूरों से अपनी बस्तियों में रुकने
के लिये बोला जा रहा है। जो लोग घरों में राशन जमा
कर चुके हैं वे मज़दूरों को समझा रहे हैं कि वे गाँव को ना जायें।
५. कॉरोना महामारी रूपी प्राकृतिक आपदा
चहुँ ओर दिखे अंधियारा जब
सूझे न कहीं गलियारा जब,
जब दुखों से घिर जाओ तुम
जब चैन कहीं ना पाओ तुम...
६. लॉकडाउन की मज़बूरी --
हम खड़े खड़े देखते रहे
सातवें माले की बालकनी से
लॉकडाउन के नाज़ुक
ताले को टूटते हुए।
७. दोहे "धीरज रखना आप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कोरोना से खुद बचो, और बचाओ देश।
लिखकर सबको भेजिए, दुनिया में सन्देश।।
८. याचन में गंतव्य लिए ...
अनिश्चित जीवन प्रश्न-चिन्ह प्राचीर मनस में पाई है
इस पार करोना बैठा है ,उस पार पर्वत और खाईं है।
९. सन्नाटा
सन्नाटे के गाल पर
मारो नहीं चांटा
गले लगाओ इसे
१०. पंछी बनकर देखें
बहुत देख लिया इंसान बनकर,
लॉकडाउन खुलने तक
चलो पंछी बनकर देखें।
११. ठहराव
और एक दिन जब
मनुष्य ने ईश्वर को फड़
१२. नहीं रहेगा 'करोना'!
पदार्थ के प्रयोग भौतिक जगत के
वे मूल सूत्र हैं जो तथ्यों की जाँच-पड़ताल
कर कार्य और कारण सिद्धांत के आलोक में प्राकृतिक घटनाओं
की व्याख्या करते हैं। इसे ही हम भौतिक जगत का वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहते हैं।
१३. स्त्री मन
काश! तुम समझ पाते
ये ज़िन्दगी एक बार ही मिली है।
१४. ये लोग देश हैं, देशद्रोही नहीं हैं
फिर क्या हुआ...जहाँ वो थे वहां से
उन्हें खदेड़ा जाने लगा. काम से, बसेरे से. भूखे, बेघर जेब से
खाली लोग सड़क पर आ गये. सडक पर आये तो पीटे जाने लगे।
१५. एक दूजे का साथ देना होगा ( प्रांजुल कुमार/ बालकवि )
हम अब भी खुशियों को सजा सकते हैं,
उन टूटे खिलौनों को फिर बना सकते हैं |
इस शुभ कार्य को अब ही करना होगा,
इस भीड़ भाड़ की दुनियाँ में
एक दूजे का साथ जीवन भर देना होगा।
१६. २१ दिवसीय लॉक डाउन के बाद कराहती मानवता
हो तुम वंचित
साधनहीन सर्वहारा
ग़रीब मेहनतकश,
तुमसे समाज का
साधनसंपन्न वर्ग
हद तक नफ़रत करता है
तड़कती है उसकी नस-नस।
आदरणीय सुरेंद्र शर्मा जी
पहला- पैसों का हिसाब-किताब तुम थोबड़े की क़िताब पर अपडेट करोगे!
दूसरा- उस गाढ़ी कमाई के पैसे से मंदिर-मस्ज़िद नहीं भैसियन का तबेला बनवाओगे!
तीसरा- अपनी चंट भैसियन को ई फंड से एक्को रुपल्ली नाही दोगे!
चौथा- ई फंड से सरकारी अस्पताल बनवाओगे न कि देश के कोने-कोने में अपने पार्टी के कार्यालय!
अब आगे आओ, औरे इस पवित्र गोबर पर अपने हाथ रखकर कसम खाओ! बाक़ी सब ठीक है।
'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ का परिणाम घोषित।
(निर्णायक मंडल में लोकतंत्र संवाद मंच का कोई भी सदस्य शामिल नहीं है।)
सर्वश्रेष्ठ रचनाओं की सूची दिए गये अंकों के साथ एवं उनके लिंक इस प्रकार हैं।
क. स्वतंत्र निर्णायक मंडल द्वारा चयनित रचना(लेखक की पसंद )
१. लाश की नागरिकता / विश्व मोहन ( अंक-१ ) 6.5/10
२.मरकर जीना.. अच्छा होता है.. / अरुण साथी ( अंक-२ ) 6/10
ख.लोकतंत्र संवाद के समीक्षक मंडल द्वारा चयनित रचना (आलोचकों की पसंद )
१. एक और तमस / गोपेश मोहन जैसवाल ( अंक- १ ) 8/10
२. भाईचारा / शशि गुप्ता ( अंक-२ ) 5.5/10
३. कैसी फगुनाहट / पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा ( अंक- १ ) 5/10
ग. पाठकों की टिप्पणियाँ / समीक्षाएँ (लोकप्रिय रचना के लिये)
१. हायकु /सुधा देवरानी ( अंक-१ ) ( श्रेष्ठ रचना टिप्पणियों की संख्या के आधार पर )
३. एक व्यंग्य : तालाब--मेढक---- मछलियाँ /आनंद पाठक ( अंक-३ )
अंतिम परिणाम
( नाम सुविधानुसार व्यवस्थित किये गये हैं। )
२ . सर्वोपरि / रोहितास घोड़ेला ३. एक और तमस / गोपेश मोहन जैसवाल
४. हायकु /सुधा देवरानी ( श्रेष्ठ रचना टिप्पणियों की संख्या के आधार पर )
५. एक व्यंग्य : तालाब--मेढक---- मछलियाँ /आनंद पाठक ( रचना की उत्कृष्टता के आधार पर )
नोट: प्रथम श्रेणी में रचनाओं की उत्कृष्टता के आधार पर दो रचनाएं चुनी गयीं हैं। इन सभी रचनाकारों को लोकतंत्र संवाद मंच की ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं। आप सभी रचनाकारों को पुरस्कार स्वरूप पुस्तक साधारण डाक द्वारा शीघ्र-अतिशीघ्र प्रेषित कर दी जाएंगी। अतः पुरस्कार हेतु चयनित रचनाकार अपने डाक का पता पिनकोड सहित हमें निम्न पते (dhruvsinghvns@gmail.com) ईमेल आईडी पर प्रेषित करें! अन्य रचनाकार निराश न हों और साहित्य-धर्म को निरंतर आगे बढ़ाते रहें। हम आज से इस पुरस्कार योजना के अगले चरण यानी कि 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ में प्रवेश कर रहे हैं। जो आज दिनांक ०१ /०४ /२०२० (बुधवार) से प्रभावी होगा। इस भाग में चयनित कुछ स्तरीय रचनाएं इस प्रकार हैं-
१. भेद विदित का
झर झर बरसे मोती अविरल
नेत्र दृश्य कुछ तोल रहा था।
मूक अधर शरीर कंपित पर
भेद विदित का डोल रहा था।
२. पूर्णविराम
ध्वंश हो गयी ध्वनि बेला
कुदरत के नए तांडव गांडीव से आज
अभिलेख ऐसा लिखा मानव ने
कायनात अपनी ही रूह से महरूम होती जाय
३. कविता...... निकल गयी
नमस्ते!
नमस्ते!!
कहते हुए एक मीटर फासले से
निकल गयी कविता।
४.सड़कों पर मज़दूरों के हुजूम पर सोचने के लिये कुछ संजीदा बाते
हर जगह सोशल डिस्टेंसिंग की बात
की जा रही है। मज़दूरों से अपनी बस्तियों में रुकने
के लिये बोला जा रहा है। जो लोग घरों में राशन जमा
कर चुके हैं वे मज़दूरों को समझा रहे हैं कि वे गाँव को ना जायें।
५. कॉरोना महामारी रूपी प्राकृतिक आपदा
चहुँ ओर दिखे अंधियारा जब
सूझे न कहीं गलियारा जब,
जब दुखों से घिर जाओ तुम
जब चैन कहीं ना पाओ तुम...
६. लॉकडाउन की मज़बूरी --
हम खड़े खड़े देखते रहे
सातवें माले की बालकनी से
लॉकडाउन के नाज़ुक
ताले को टूटते हुए।
७. दोहे "धीरज रखना आप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कोरोना से खुद बचो, और बचाओ देश।
लिखकर सबको भेजिए, दुनिया में सन्देश।।
८. याचन में गंतव्य लिए ...
अनिश्चित जीवन प्रश्न-चिन्ह प्राचीर मनस में पाई है
इस पार करोना बैठा है ,उस पार पर्वत और खाईं है।
९. सन्नाटा
सन्नाटे के गाल पर
मारो नहीं चांटा
गले लगाओ इसे
१०. पंछी बनकर देखें
बहुत देख लिया इंसान बनकर,
लॉकडाउन खुलने तक
चलो पंछी बनकर देखें।
११. ठहराव
और एक दिन जब
मनुष्य ने ईश्वर को फड़
१२. नहीं रहेगा 'करोना'!
पदार्थ के प्रयोग भौतिक जगत के
वे मूल सूत्र हैं जो तथ्यों की जाँच-पड़ताल
कर कार्य और कारण सिद्धांत के आलोक में प्राकृतिक घटनाओं
की व्याख्या करते हैं। इसे ही हम भौतिक जगत का वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहते हैं।
१३. स्त्री मन
काश! तुम समझ पाते
ये ज़िन्दगी एक बार ही मिली है।
१४. ये लोग देश हैं, देशद्रोही नहीं हैं
फिर क्या हुआ...जहाँ वो थे वहां से
उन्हें खदेड़ा जाने लगा. काम से, बसेरे से. भूखे, बेघर जेब से
खाली लोग सड़क पर आ गये. सडक पर आये तो पीटे जाने लगे।
१५. एक दूजे का साथ देना होगा ( प्रांजुल कुमार/ बालकवि )
हम अब भी खुशियों को सजा सकते हैं,
उन टूटे खिलौनों को फिर बना सकते हैं |
इस शुभ कार्य को अब ही करना होगा,
इस भीड़ भाड़ की दुनियाँ में
एक दूजे का साथ जीवन भर देना होगा।
१६. २१ दिवसीय लॉक डाउन के बाद कराहती मानवता
हो तुम वंचित
साधनहीन सर्वहारा
ग़रीब मेहनतकश,
तुमसे समाज का
साधनसंपन्न वर्ग
हद तक नफ़रत करता है
तड़कती है उसकी नस-नस।
आदरणीय सुरेंद्र शर्मा जी
उद्घोषणा
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
धन्यवाद।
टीपें
अब 'लोकतंत्र' संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार '
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आज्ञा दें!
आप सभी गणमान्य पाठकजन पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा। रचनाओं के क्रम सुविधानुसार लगाये गए हैं।
सभी लिंक सार्थक हैं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
आभार आपका।
विजेताओं को बधाई और शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर। इन समस्त चयनित रचनाओं में व्यक्त उदात्त भावनाओं को रेखांकित करने के लिए संवाद मंच के साहित्यिक हस्ताक्षरों को हृदय से आभार। मंच के चिरंजीवी होने की अशेष शुभकामनायें!!!
जवाब देंहटाएंआपका आभार
जवाब देंहटाएंवाह!ध्रुव जी ,बेहतरीन प्रस्तुति । सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद ध्रुव जी एवं निर्णायक मण्डल के सभी प्रबुद्ध जनों का एवं मेरे सभी ब्लॉगर साथियों की जिनकी टिप्पणियों के आधार पर मेरी रचना चयनित हुई वरना मुझ जैसे अदना में इतनी हिमाकत कहाँ....फिर भी मुझे ये खुशी देने हेतु आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया एवं आभार...
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचनाओं से सजा आज का शानदार मंच।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
जवाब देंहटाएंसार्थक भूमिका संग आज की प्रस्तुति लाजवाब रही। "साहित्यिक पुस्तक पुरस्कार योजना भाग-१ " के तहत सभी उत्क्रष्ट रचनाओं का चयन किया गया जिससे'लोकतंत्र संवाद मंच' के निष्पक्षता और साहित्य समर्पण भाव का प्रमाण मिलता है। पिछले अंक में चयनित सभी एक से बढ़कर एक नौ रचनाओं में से इन्हें चुन पाना बेहद सराहनीय है। सभी रचनाकारों को भी खूब बधाई और ढेरों शुभकामनाएँ। यह सभी रचनाएँ और इनके आदरणीय रचनाकार वास्तव में इसके पात्र हैं। माँ शारदे की कृपा इन गुणीजनों पर सदा बनी रहे और इनकी कलम यूँ ही साहित्य सेवा में जुटी रहे मेरी यही कामना।
भाग-२ के लिए आज की चयनित सभी रचनाएँ भी लाजवाब रही। सभी को खूब बधाई और शुभकामनाएँ।
पुनः प्रणाम 🙏 शुभ रात्रि।
प्रिय ध्रुव , सार्थक प्रयास का पहला पड़ाव सफल होने पर बहुत बहुत बधाई | जिन रचनाकारों को पहली बार पुरस्कृत किया जा रहा है उन्हें मेरी ढेरों शुभकामनाएं और बधाई | आपकी साहित्य के प्रति इस प्रतिबद्दता की जितनी सराहना करूँ कम है | पुस्तकें पुरस्कार में मिलना जीवन का सबसे बड़ा उपहार है | आशा है पुस्तकों की पठनीयता की प्रेरणा जगाने की दिशा में ये प्रयास बहुत सार्थक सिद्ध होगा |और नए रचनाकारों को और अच्छा लिखने के लिए प्रेरणा मिलेगी | सभी चयनित रचनाएँ बहुत ही बढिया हैं और साहित्य के मानकों पर खरी उतरती हैं |
जवाब देंहटाएंप्रिय ध्रुव् . कक्का और कलुवा का संवाद व्यंग है पर बहुत सारे प्रश्न छोड़ता है अपने पीछे | सुरेन्द्र शर्मा जी का हास्य लाजवाब है | हार्दिक स्नेह के साथ शुभकामनाएं| काम के साथ अपना ख्याल भी रखा करो |
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं बहुत सुंदर सार्थक।
सभी पुरस्कार प्राप्त और चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
अगली योजना के लिए मेरी रचना को चुनने की हृदय तल से आभार।
कमाल का संयोजन और सार्थक पहल
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचनाओं का चयन
सभी को बधाई
आपको साधुवाद
मुझे सम्मिलित करने का आभार
सादर
bahut hi shaandaar prastuti hai aapki..sabdo ka chayan is lekh me jaan daal deta hai.padhkar bahut hi khushi hui.
जवाब देंहटाएंhappy birthday images for sister with quotes for whatsapp
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