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बुधवार, 8 अप्रैल 2020

८३....... घनन-घनन, घिर-घिर आये बदरा!





घनन-घनन, घिर-घिर आये बदरा!

नन-घनन, घिर-घिर आये बदरा! घन-घन घोर कारे छाये बदरा! मन धड़काये बदरवा ....... मन-मन धड़काये बदरवा........ ! का रे कलुआ! काहे फ़ोकट में पगलाये पड़ा है। अरे कक्का! काहे नमक में पानी डारे रहे हो! कभी तो ठीक से जवाब दे दिया करो। हम तो इहे कह रहे थे कि शॉक डाउन ससुर ख़तम हो रहा है संभवतः!
का बात कह रहे हो! हमने तो कोई श्वेत कारड नहीं बनवाया अभी तक! अरे ए कलुआ!  तनिक चंपकलाल से कह कर उहे हमार श्वेत कारड भी बनवा दो औरे हज़ार ठो रुपल्ली भी दिला ही दो आख़िर वो मगध के हाकिम काहे बने बैठे हैं। इस प्रकार करोना ससुर साहित्यकार से होते हुए पल्लीदार के घर मा अपना टाँग पसार कर सवा सौ किलो अनाज का बँटवारा देखता रहा। चतुर्थ श्रेणी के चतुरचालक वर्ग ने अपने चार मंजिला मकान में बैठकर शाम का ज़ाम लड़ाते हुए व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी पर ज्ञान प्राप्त कर इस बँटवारे के न्यायपरक कार्यक्रम पर लंबा-चौड़ा लेख विरोधी लोगों के मुँह पर दे मारा। अग्रज युधिष्ठिर! बोलो दुष्यंत! क्या कष्ट है तुमका? अरे ससुर ऊ शॉक डाउन ख़तम होने को है तनिक हमहू को ऊ श्वेत कारड आरक्षित करा दें अग्रज महोदय! इस प्रकार समस्त हस्तिनापुर राजा युधिष्ठिर की दानवीरता और सत्यता के आवेश में आकर स्वयं को चार सौ चालीस वोल्ट के आवेश से आवेशित कर बैठा! चूँकि सम्पूर्ण हस्तिनापुर की बिजली गुल थी परन्तु राज्य के प्रत्येक सिपहसालारों के हृदय करोना जीव के प्रोटीन से चहुओर आलोकित थे जहाँ एक तरफ़ साहित्यकार समाज  करोना के ख़ौफ़ से परेशान था वहीं दूसरा तबका करोना के महिमामंडन से अपना राजनीतिक कॅरियर 'नन्दवंश' के बाद स्थापित करने पर आमादा था। क़िताबघरों और पुस्तक की दुकानों से कौटिल्य के अर्थशास्त्र दे-दना-दन औने-पौने दामों पर डेटॉल हैंडवॉश की जगह ब्लैक में धड़ल्ले से बिक रहे थे। अमेज़ॉन और स्नैपडील के जंगलों से कुछ लोग कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार इबारती लकड़ियाँ चोरी-छुप्पे काटने में व्यस्त थे। तभी शहर में यह ख़बर जंगल की आग की भाँति फैल गई कि पांडव पुलवामा में मारे गये जबकि बी.डी.सी. के संवाददाता ने बताया कि आज बारह बजकर पाँच मिनट पर पांडव न्यूयार्क सिटी के एक पंचसितारा रेस्टोरेंट में कौरवों के साथ लूडो खेलते देखे गये! इस धकाधक् न्यूज़ को पढ़कर चेतक नदी के मुहाने पर अधमरा पड़ा था!
बाक़ी सब ठीक है! 


हम 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ में प्रवेश कर चुके हैं जो दिनांक ०१ /०४ /२०२० (बुधवार) से प्रभावी है।  इस भाग के दूसरे चरण में चयनित कुछ स्तरीय रचनाएं इस प्रकार हैं-
( रचनाएं वरीयता क्रम में नहीं बल्कि सुविधानुसार लगायी गयी हैं। कृपया भ्रमित न हों! )  


 खुद़ा के वासते तनहा ही रह कर 
अमा इक चैन की बंशी बजा ले 


  "मास्क भी नहीं। मैडम आप का भी 
अलग ही चल रहा है। आपको क्या लग रहा कि कोरोना वाईरस 
आपसे पूछेगा - 'मुझसे दोस्ती करोगे?' वो बस गले पड़ जाएगा। आगे आप खुद समझदार हैं।" 

३. एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए

र दुकाँ बन्द है आंखों की  तरह  नशेबाज की
क्या एक भी दुकाँ नही थोड़े  से  कर्जे  के  लिए

४.  तीन उपन्यासों से प्रयोगवाद को प्रतिष्ठित करने वाले थे अज्ञेय

 च्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ने कविता,
कहानी, उपन्यास, यात्रा-वृत्त, निबन्ध, गीति-नाट्य, ललित निबन्ध,
डायरी जैसी साहित्य की लगभग सभी विधाओं में अपनी सर्जनात्मक प्रतिभा का परिचय दिया।


 यह चराग़-ए-इश्क़ मेरा कब डरा हैंआँधियों से
रोशनी के जब मुक़ाबिल धुंध का बादल घना है



 हक़ीक़त में हो ख़्वाब पूरे ये सब
ऐसे  ख़्वाब हमने सयाने लिखे


 मैं जैसा हूँ
मुझे वैसा ही रहने देना
उस पर फ़िल्टर नहीं लगाना
कुछ और ही नहीं बना देना


 प्रलाप पाखण्ड का यह समय नहीं
अनुशासन विज्ञान के साथ चलो


 "एक ठो चिरैया रही, कुछ खास 
किसिम की रही. उसका पेट तो एक्कै ठो था 
लेकिन उसका मुंह था दो. समझ लो कि दोमुंही रही ऊ चिरैया... 
उस चिरैया का नाम था भारुंड..." रात को सोते समय दादी ने दो पोतों को किस्सा सुनाना शुरू किया। 



 कहनी थी, मुसलसल बात, मगर फुर्सत नहीं थी 
सफर चलता रहा, सरे-रात, मगर फुर्सत नहीं थी 


 खाओ सदा पौष्टिक खाना,
रहो तंदुरस्त और जिओ ज़माना। 


 हर साहित्यकार की रचना एक सुशिक्षित , 
सुसंस्कृत और सभ्य समाज की रचना के लिए सबसे अधिक उत्तरदायी होता है। 



 जयकार में उठी कलम,क्या ख़ाक लिखेगी
अभिव्यक्ति को वतन में,खतरनाक लिखेगी !


 तपती धूप के रेगिस्तान में मैंने कोशिश की
धूल के साथ उड़ कर
तुझे छूने का प्रयास किया


 उसे प्रतीक्षा होती है उस फूल की
जो उसका राजकुमार लाएगा
जूड़े में लगाने को। 


 तीलियाँ निभातीं हैं 
ख़ामोश होकर 
साथ रहने की रस्म,
अगर ये लड़ने-झगड़ने 
ज़ोर-ज़ोर से रगड़ने पर 
उतर आयें 
तो हो जाएगी 
माचिस की डिबिया भस्म।   

दरणीय हेमंत मोहन जी के स्वर में एक 'कहानी' 

उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
व्यक्ति यदि  हमारे विचारों से निजी तौर पर 
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए। 
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु 
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
 है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है । 
धन्यवाद। 

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सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
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13 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति ! खूबसूरत लिंक संयोजन ।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर विस्तृत संकलन ...
    बहुत आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ....

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुदर संकलन एकलव्य जी और मेरी ब्लॉग पोस्ट को अपने इस संकलन में शाम‍िल करने के ल‍िए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
    अब बस ये कारे बदरा छट जाए यही प्रर्थना है। भूमिका में प्रस्तुत समसामयिक व्यंग लाजवाब है और प्रस्तुति शानदार। सभी चयनित रचनाएँ भी बेहद उम्दा। सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ। " पौष्टिक खाना " के माध्यम से आज एक बाल कवि से परिचय हुआ। उन्हें भी मेरा खूब नेह आशीष। आदरणीय हेमंत सर द्वारा प्रस्तुत कथा ने तो व्याकुल कर दिया।
    इस सुंदर संकलन हेतु आपको बधाई। सुप्रभात 🙏

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    उत्तर
    1. बहुत आभार आपका आदरणीया हमारी प्रस्तुति को सराहने के लिए।

      हटाएं
  5. सुन्दर व्यंगकथा के साश शानदार प्रस्तुतीकरण
    उम्दा लिंक संकलन....
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  6. बहुत खूब , आभार स्नेह के लिए

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  7. प्रिय ध्रुव , देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | हालाँकि लिंक संयोजन उसी दिन देख लिया था पर कुछ व्यस्तता हावी रही | कई रचनाएँ देखकर प्रतिक्रिया भी दे दी है बाकि पर शेष है | युधिष्ठिर , कौटिल्य के माध्यम से मार्मिक व्यंग तो पांडवों का मर जाना और कौरवों के जीवित होने का समाचार पढ़ चेतक का अधमरा होना मन को उद्वेलित कर गया | सचमुच आज यही भयावहता चहुँ ओंर व्याप्त है |सार्थक अंक के लिए मेरी शुभकामनाएं |स सभी रचनाएँ अपनी मिसाल आप हैं | सभी रचनाकारों को नमन

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  8. घनन-घनन घिर आए बदरा ,
    इनकी मौत करोना से नहीं न्यूज देखने से हुई है ।
    सामयिक विषयों पर मार्मिक व्यंग अद्भुत,सटीक
    सुन्दर संकलन

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