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बुधवार, 4 मार्च 2020

७८. सोच रहा हूँ सोशल मीडिया से सन्यास ही ले लूँ!





सोच रहा हूँ सोशल मीडिया से सन्यास ही ले लूँ! मन दुखता है इन बातों से। का हुआ कक्का ? काहे रेलम-ठेल मचा रखा है ? का बात है काहे मन चूहा करते हो। अरे का बतायें कलुआ! कलही थोबड़े की क़िताब पर हम धुरखेल कर रहे थे तभी अचानक से देखा हमरी कविता कउनो औरे अपने नाम से छापकर बैठा था। अरे कक्का ! इम्मा कौन-सा गज़ब होइ गवा। फ़िलहाल आपकी कविता क्या थी ज़रा बताओ! अरे यही दो लाइन थी- 
मेढक पात सरिस मन डोला 
मेढकी खाये छोला भटूरा। 

का बात करत हो यही तो हमरी भी कविता थी। कैसे और किसके कहने पर लिखी थी तुमने यह कविता। अरे उहे प्रख्यात महाराज जी के कहने पर। का बात करत हो मैंने भी उनही के कहने पर लिखी थी यह कविता। का! अरे कक्का अब ई सोचो कि इस कविता की प्रमाणिकता/मौलिकता कहाँ और कैसे सिद्ध करेंगे हम दोनों जिसकी आगे और पीछे वाली लाइन दोनों की एक समान है। कहे रहे तुमका साहित्यकार हो। थोड़ा अपनी अक़्ल लगाओ। लो खा गये ना गच्चा!         

 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ 


त्यंत हर्ष हो रहा है आपको यह सूचित करते हुए कि 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तकों को पढ़ने हेतु अपने पाठकों और लेखकों को प्रोत्साहित करने का एक छोटा-सा प्रयास करने जा रहा है। इस प्रयास का मूल उद्देश्य साहित्यिक पुस्तकों के प्रति पाठकों के रुचि को पुनः स्थापित करना और उनके प्रति युवा वर्ग के आकर्षण को बढ़ाना है। इस साहित्यिक प्रयास के अंर्तगत माह के तीन बुधवारीय अंक में सम्मिलित की गई सभी श्रेष्ठ रचनाओं में से पाठकों की पसंद और 'लोकतंत्र संवाद' मंच की टीम के सदस्यों द्वारा अनुमोदित तीन सर्वश्रेष्ठ रचनाओं को हम पुरस्कार स्वरूप साहित्यिक पुस्तकें साधारण डाक द्वारा प्रेषित करेंगे। हमारा यह प्रयास ब्लॉगरों में साहित्यिक पुस्तकों के प्रति आकर्षण को बढ़ावा देना एवं साहित्य के मर्म को समझाना है जिससे ब्लॉगजगत केवल इसी मायावी डिजिटल भ्रम में न फँसा रह जाय बल्कि पुस्तकों के पढ़ने की यह पवित्र परंपरा निरंतर चलती रहे। आप विश्वास रखें! इस मंच पर किसी भी लेखक विशेष की रचनाओं के साथ किसी भी प्रकार का कोई भी पक्षपात नहीं किया जायेगा। निर्णय पूर्णतः रचनाओं की श्रेष्ठता और उसके साहित्यिक योगदान पर निर्भर करेगा।
रचनाएं सीधे लेखक के ब्लॉग से लिंक की जायेंगी और माह के अंतिम बुधवारीय अंक में चयनित रचनाओं के लिंक भी आपसभी के समक्ष प्रस्तुत किये जायेंगे।
यह कार्यक्रम दिनांक ०४/०३/२०२० ( बुधवारीय अंक ) से प्रभावी है।
विधा: हिंदी साहित्य की कोई भी विधा मान्य है। 
योग्यता: ब्लॉगजगत के सभी सक्रिय रचनाकार ( ब्लॉगर ) 

 रचनाओं की चयन प्रक्रिया 

लोकतंत्र संवाद पर प्रकाशित रचनाओं की प्रति तीन सप्ताह उपरांत समीक्षा की जाएगी। इस प्रक्रिया में श्रेष्ठ रचनाओं के चयन का आधार होगा-

1. पाठकों की टिप्पणियाँ / समीक्षाएँ (लोकप्रिय रचना के लिये)

2. लोकतंत्र संवाद के समीक्षक मंडल द्वारा चयनित रचना (आलोचकों की पसंद )  

3. स्वतंत्र निर्णायक मंडल द्वारा चयनित रचना(लेखक की पसंद ) 

निर्णायक मंडल की निर्णायक प्रक्रिया संबंधी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाएगी।        

तो आइये! हम एक ऐसे बेहतर साहित्यसमाज का निर्माण करें जो पूर्णतः राजनीतिक,धार्मिक एवं संप्रदाय विशेष की कुंठा से मुक्त हो! इसमें आपसभी पाठकों एवं लेखकों का सहयोग अपेक्षित है। अतः सभी पाठकों एवं रचनाकारों से निवेदन है कि बिना किसी दबाव और पक्षपात के रचनाओं की उत्कृष्ठता पर अपने स्वतंत्र विचार रखें ताकि हम रचनाओं का सही मूल्याङ्कन कर सकें। 
सादर

हम आपके ब्लॉग तक निर्बाध पहुँच सकें और आपकी रचनाएं लिंक कर सकें इसलिए आपसभी रचनाकारों से निवेदन है कि आपसभी  लोकतंत्र संवाद मंच ब्लॉग का अनुसरण करें !
'एकलव्य'

लोकतंत्र संवाद मंच आप सभी पाठकों का स्वागत करता है। 

आइए चलते हैं इस सप्ताह की कुछ स्तरीय रचनाओं की ओर  



प्रवक्ता हूँ, सियासत का।
दंगों में हताहत का हाल
सूरते 'हलाल' बकता हूँ,
खबरनवीसों में।
 पहले पूछता हूँ,
थोड़ी खैर उनकी।
दाँत निपोरकर!
सुनाई देती है,
खनकती आवाज,
ग़जरों की महक में मुस्काती
'एवंडी'...!

भी कहूँगा के आया है लुत्फ़ मुझको भी गर
ज़मीन खोदूँ मैं और उससे आसमाँ निकले

किसी भी दौर में कोई कहीं भी कैसी भी
पढ़े किताब तेरी मेरी दास्ताँ निकले


हू को देख ख़ुश होने लगे हैं 
ये क्या आदत हमारी हो गयी है।


  हा एक ख़ामोशी पसरी हुई है अब,
जैसे लबो पर मातम मना रहा कोई



  कुन्दन कुमार का नाम साहित्यजगत 
के लिए अभी अनजाना है। हाल ही में इनका काव्य संग्रह
 “भावावेग” प्रकाशित हुआ है। जिसमें कवि की उदात्त भावनाओं के स्वर हैं।


  कर्मकाण्ड में विश्वास है जिनको
कहते ऋषि-मुनि का श्राप यही है
जपो निरन्तर हनुमत बीरा
हर मर्ज़ का इलाज यही है


 क मंदिर इधर,एक मस्जिद उधर ,
मरता इंसान सडकों पर पाया गया -



 बादल बिजली का यह खेल
हमें कर रहा है 
सचेत और सर्तक
कि, सावधान हो जाओ
आसान नहीं है अब
जीवन के सीधे रास्ते पर चलना


 छलनी-छलनी, ये मन,
छलकी सी, आँखें,
छूट चले, आशा के दामन,
रूठ चले हैं रंग,
डूब चुके, हृदय के तल-घट,
छूट, चुके हैं पनघट!


 उनसे भी सुख ही मिला,
जिनका रंग अलग है,
जिनकी भाषा भिन्न है.


 थका मांदा सूरज
दिन ढले
टुकड़े टुकड़े हो
लहरों में डूब गया जब
सब्र को पीते पीते
सागर के होंठ
और भी नीले हो गए

कुछ फिल्मों को सिर्फ इसलिए भी 
देखना चाहिए क्योंकि उनमें एक ऐसा 
संदेश होता है, जो मुश्किल वक्त में भी इंसान को 
जिंदा रहने की वजहें देती हैं. लेकिन अगर किसी फिल्म में एक 
मजबूत और प्रेरणास्पद कथाक्रम के साथ ही, शानदार 
सिनेमैटोग्राफी और बेजोड़ संपादन और उम्दा अभिनय भी हो तो बात ही क्या!


 सारे' सपने सच खिल ही जायें'गे
सच कभी बन तुम जगमगाया करो


शुक्ल जी – अरे लियाक़त भाई, सुना आपने ! हमारे मोहल्ले के शोहदे अख्तर ने शहर के नामी गुंडे अवधेश को चाकू से गोद दिया.
लियाक़त भाई – वो कमबख्त अवधेश बचा कि मर गया?

  मधुरमास
आओ ढूँढने चलें
प्यारे बसंत को

१६. उम्र 

 उम्र के पेड़ से
निःशब्द
टूटती पत्तियों की
सरहराहट,


मैं नहीं होना चाहता हूँ बेचैन 
नहीं उग्र 


 सुख बन चिड़िया उड़ जाता 
मन में ही जो उलझा है, 
जब तक यह नहीं मिटेगा 
यह जाल कहाँ सुलझा है !


 ल रात तेरे नाम एक कलाम लिखा
कागज कलम उठा करा इक पैगाम लिखा,
पहले अक्षर से आखिरी अक्षर तक
तेरा नाम, तेरा नाम सिर्फ तेरा नाम लिखा.....

 २०. उम्मीद और हम

  सोचती रहती हूँ,
अभी तो हम मिले थे,
मीलों साथ चले थे,
और किसी दिन


शासन के लिये बहुमत 
अवश्य ज़रुरी है,


 ब्रह्म मुहूर्त~
पोथी पर सिर टेके
 सोया विद्यार्थी....

 मैं सृष्टि का जना आधा हिस्सा हूँ,
इस पूर्ण सत्य का पूर्ण किस्सा हूँ,
मैं हर स्त्रीलिंग की पहचान में हूँ,
मैं भूत से भविष्य की जान में हूँ ,


 ख़त    तुम्हारे  नाम के
चुपके से कभी पढने आना
मन के   तटपर यादों की
सीपियाँ  चुनने आना !


 मैं कर्तापन में भरमाया
तू मुझे देखकर मुस्काया,
जब सारा खेल ही तेरा है
तो हार का डर क्यों हो मुझको ?


 तान वितान जब
नागफनी ने 
घेरा पूरा खेत,
मरुभूमि ने 
दिली सत्कार किया 
विहँसी भूरी रेत।  


उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
व्यक्ति यदि  हमारे विचारों से निजी तौर पर 
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए। 
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु 
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
 है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है । 
धन्यवाद। 



 टीपें
 अब 'लोकतंत्र'  संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार '
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

आज्ञा दें  !


'एकलव्य' 


आप सभी गणमान्य पाठकजन  पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर  साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा। रचनाओं  के क्रम  सुविधानुसार लगाये गए हैं। 
                                                                                              
                                                                                             सभी छायाचित्र : साभार  गूगल

23 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय एकलव्य जी, यह मेरे लिए बड़े ही सौभाग्य व सम्मान की बात है कि मेरी रचना, कई अन्य विशिष्ट रचनाकारों के साथ, आपके मंच के लिए चयनित हुई है।

    हिन्दी के उत्थान हेतु, आपकी साधना व लगन की जितनी भी प्रशंसा करूँ कम होगी।

    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।

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    1. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर

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  2. उत्कृष्ट रचनाओं से सजी पोस्ट के लिए धन्यवाद आदरणीय| ब्लॅागिंग सतत यात्रा की ओर अग्रसर रहे, इसके लिए यह प्रयास सराहनीय है|आभार हमारी रचना शामिल करने के लिए|

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    1. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर

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  3. भूमिका शानदार 👌👌सभी चयनित रचनाएँ बहुत उम्दा 👌👌

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    1. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर

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  4. उत्कृष्ट रचनाओं का चयन किया है आपने ... ,

    चयनित रचनाओं में मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए हार्दिक आभार ,

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    1. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर

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  5. सोचा भी नहीं था कि मेरी इतनी सादी सरल रचना, इतनी अच्छी और बेहतरीन रचनाओं के समकक्ष रखी जाएगी। लोकतंत्र संवाद का प्रभावशाली अंक लाने हेतु बहुत बहुत बधाई। मेरी रचना को लेने के लिए सादर आभार आदरणीय ध्रुवजी।

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    1. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर

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  6. आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
    सभी पठनीय रचनाओं का चयन किया है आपने और सब अपने में श्रेष्ठ। लगभग आधे से अधिक पढ़ भी चुंकी हूँ। भूमिका में साहित्यकारों के नाम संदेश लिए इस लाजवाब प्रस्तुति में आपकी मेहनत साफ़ दिख रही है। साहित्य के प्रति आपकी निष्ठा से तो हम भी सदा प्रेरित होते रहे हैं। साहित्य उत्थान हेतु और रचनाकारों को प्रोत्साहित करने हेतु आपका ये कदम वास्तव में बेहद सराहनीय है। माँ शारदे की कृपा सदा बनी रहे आप पर। सभी रचनाकारों को ढेरों बधाई।' लोकतंत्र संवाद ' के इस अनूठे पहल हेतु ढेरों शुभकामनाएँ।

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  7. सुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल की. आभार.

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  8. शानदार लोकतंत्र संवाद मंच ....सभी उत्कृष्ट रचनाओं के साथ मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ध्रुव जी !
    सराहनीय प्रयास हेतु अनन्त शुभकामनाएं।

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  9. मेढक पात सरिस मन डोला

    मेढकी खाये छोला भटूरा।

    हा-- हा प्रिय ध्रुव कक्का -कलुवा रचना विवाद में उलझे भी तो , चोरी की

    की इतनी शानदार रचना में ????? | और थोबड़े की किताब पर इन कथित रचनाचोरों की पूरी जमात ही बैठी है , जहाँ से ये आम से लेकर ख़ास तक सबकी रचनाओं को चुरा , उम पर अपना लेबल लगा कर जयकार करवाने में पूरे समर्पण से जुटे हैं | इनकी वाही - वाही वाही हो ही रही है -- यही क्या कम है ? अब गोसाईं जी अपनी एक पंक्ति के लिए , इनपर मानहानि का मुकद्दमा करने आने से तो रहे ! आखिर दूसरी तो इनकी अपनी ही है |और आज से लोकतंत्र संवाद की ओर से पाठकों को प्रोत्साहित करने की दिशा में पुस्तक प्रेम की जो पहल की जा रही है, वह ब्लॉग जगत में अपनी तरह की आप होगी | आशा है ब्लॉग जगत पर इसका प्रभाव सकारात्मक सन्देश लेकर आयेगा | ब्लॉग पर ही नहीं आम जीवन में एक बार फिर से पुस्तकें उपहार में देने का चलन अपनाना होगा , खासकर बच्चों के लिए , ताकि पुस्तकों को पढने वाले हमेशा बने रहें | डिजिटल दुनिया में खोये मनमुग्ध लोगों के लिए इसी पहल संजीवनी की तरह होगी | यूँ तो फोन , कंप्यूटर पर पढना अच्छा लगता है पर हाथ में किताब लेकर पढने की बात ही कुछ और है| इस पहल के श्री गणेश के लिए हार्दिक शुभकामनाएं | सभी सुंदर रचनाओं के साथ मेरी रचना को भी मंच पर स्थान मिला . बहुत ख़ुशी हुई | आज के संकलन के सहभागी सभी रचनाकारों को मेरा नमन और शुभकामनाएं | और तुम्हें सस्नेह बधाई इस साहित्य प्रेम | और अथक प्रयासों के लिए |

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  10. आज कविता का वीडियो नहीं डाला ?????????????

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    1. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर

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  11. उत्तर
    1. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर

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  12. सराहनीय कदम... बहुत वक़्त के बाद यहां आना हुआ मेरा... नमस्कार स्वीकार कीजिये।

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    1. मंच पर आगमन हेतु आपका आभार! आपकी यह अनमोल टिप्पणी हमें निरंतर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करती है। सादर

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