दोहा दुन-दुन दुइ गुना, भया न रसिया कोय।
धरम-धरम के चौखड़ी, बेच के घोड़ा सोय।।
धरम-धरम के नाम पर , कलुआ खाये घास।
कक्का चादर तानके, जनमत पर विश्वास।।
देशभक्ति अब हो चली भारत की पहचान।
चपला बारे मुफ़त में, यही देश की शान।।
साहित्य है गजभर रो रहा, कहते अपने-आप।
कक्का का विश्वास है, नेता हमरे साथ।।
धरम-धरम में बोर के, ख़ूब चलाये मंच।
कल तक थे जो मंत्री, बन बैठे अब रंक।।
हम तो नित्य लगायेंगे, अपनी रचना पास।
उखाड़ सको सो उखाड़ लो, हम भी तोहरे बाप।।
लोकतंत्र की आड़ में, कबीरा खाये मात।
कक्का करें हैं चाकरी, कलुआ खाये भात।।
कलुआ ससुर मुँहफट्ट, कहता रस्सी तान।
घोर-फेर के चक्कर में, कक्का खाये लात।।
( बदमाश कलुआ की क़लम से )
का रे ससुर कलुआ! ई का कर रहा है। तोहका कउनो काम-धाम नाही है का। जब देखो अनाप-सनाप लिखने बैठ जाता है। अरे कोई ढंग का साहित्य लिख। अरे कक्का! जब भी बोलिहो टेमफुस्स! अरे आजकल हम भी दोहा लिखना सीख रहे हैं। जैसे- छप्पन छुरी बहत्तर चाकू, हिन्दू ख़तरे में है , राष्ट्रभक्त, टी. ए. ए. चार तलाक़, आठ तलाक़, मंदिर ख़तरे में है, मस्जिद ख़तरे में है, अउर तो अउर ससुर अपनी ज़मात ही पूरी ख़तरे में है। कक्का- पर तू तो साहित्यकार है इनसे तुझे क्या लेना-देना ? अरे कक्का तुम भी रहोगे पूरे धूम-धड़का! अरे भई! मुझे देना तो कछु नहीं है परन्तु लेना बहुत कुछ है। औरे ऊ का? अरे कक्का थोबड़े की क़िताब और ब्लॉग पर साहित्य के नाम पर धंधा चलाने की फीस! उहे नेताजी देंगे जब उनकी पार्टी सत्ता में होगी! बाक़ी सब ठीक है।
'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१
अत्यंत हर्ष हो रहा है आपको यह सूचित करते हुए कि 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तकों को पढ़ने हेतु अपने पाठकों और लेखकों को प्रोत्साहित करने का एक छोटा-सा प्रयास करने जा रहा है। इस प्रयास का मूल उद्देश्य साहित्यिक पुस्तकों के प्रति पाठकों के रुचि को पुनः स्थापित करना और उनके प्रति युवा वर्ग के आकर्षण को बढ़ाना है। इस साहित्यिक प्रयास के अंर्तगत माह के तीन बुधवारीय अंक में सम्मिलित की गई सभी श्रेष्ठ रचनाओं में से पाठकों की पसंद और 'लोकतंत्र संवाद' मंच की टीम के सदस्यों द्वारा अनुमोदित तीन सर्वश्रेष्ठ रचनाओं को हम पुरस्कार स्वरूप साहित्यिक पुस्तकें साधारण डाक द्वारा प्रेषित करेंगे। हमारा यह प्रयास ब्लॉगरों में साहित्यिक पुस्तकों के प्रति आकर्षण को बढ़ावा देना एवं साहित्य के मर्म को समझाना है जिससे ब्लॉगजगत केवल इसी मायावी डिजिटल भ्रम में न फँसा रह जाय बल्कि पुस्तकों के पढ़ने की यह पवित्र परंपरा निरंतर चलती रहे। आप विश्वास रखें! इस मंच पर किसी भी लेखक विशेष की रचनाओं के साथ किसी भी प्रकार का कोई भी पक्षपात नहीं किया जायेगा। निर्णय पूर्णतः रचनाओं की श्रेष्ठता और उसके साहित्यिक योगदान पर निर्भर करेगा।
रचनाएं सीधे लेखक के ब्लॉग से लिंक की जायेंगी और माह के अंतिम बुधवारीय अंक में चयनित रचनाओं के लिंक भी आपसभी के समक्ष प्रस्तुत किये जायेंगे।
यह कार्यक्रम दिनांक ०४/०३/२०२० ( बुधवारीय अंक ) से प्रभावी है।
विधा: हिंदी साहित्य की कोई भी विधा मान्य है।
योग्यता: ब्लॉगजगत के सभी सक्रिय रचनाकार ( ब्लॉगर )
रचनाएं सीधे लेखक के ब्लॉग से लिंक की जायेंगी और माह के अंतिम बुधवारीय अंक में चयनित रचनाओं के लिंक भी आपसभी के समक्ष प्रस्तुत किये जायेंगे।
यह कार्यक्रम दिनांक ०४/०३/२०२० ( बुधवारीय अंक ) से प्रभावी है।
विधा: हिंदी साहित्य की कोई भी विधा मान्य है।
योग्यता: ब्लॉगजगत के सभी सक्रिय रचनाकार ( ब्लॉगर )
रचनाओं की चयन प्रक्रिया
लोकतंत्र संवाद पर प्रकाशित रचनाओं की प्रति तीन सप्ताह उपरांत समीक्षा की जाएगी। इस प्रक्रिया में श्रेष्ठ रचनाओं के चयन का आधार होगा-
1. पाठकों की टिप्पणियाँ / समीक्षाएँ (लोकप्रिय रचना के लिये)
2. लोकतंत्र संवाद के समीक्षक मंडल द्वारा चयनित रचना (आलोचकों की पसंद )
3. स्वतंत्र निर्णायक मंडल द्वारा चयनित रचना(लेखक की पसंद )
निर्णायक मंडल की निर्णायक प्रक्रिया संबंधी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाएगी।
तो आइये! हम एक ऐसे बेहतर साहित्यसमाज का निर्माण करें जो पूर्णतः राजनीतिक,धार्मिक एवं संप्रदाय विशेष की कुंठा से मुक्त हो! इसमें आपसभी पाठकों एवं लेखकों का सहयोग अपेक्षित है। अतः सभी पाठकों एवं रचनाकारों से निवेदन है कि बिना किसी दबाव और पक्षपात के रचनाओं की उत्कृष्ठता पर अपने स्वतंत्र विचार रखें ताकि हम रचनाओं का सही मूल्याङ्कन कर सकें।
सादर
हम आपके ब्लॉग तक निर्बाध पहुँच सकें और आपकी रचनाएं लिंक कर सकें इसलिए आपसभी रचनाकारों से निवेदन है कि आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच ब्लॉग का अनुसरण करें !
'एकलव्य'
लोकतंत्र संवाद मंच आप सभी पाठकों का स्वागत करता है।
आइए चलते हैं इस सप्ताह की कुछ स्तरीय रचनाओं की ओर
जनता की आवाज़ सुनाई दे कैसे
शोर बहुत है सत्ता के गलियारों में
बस कि वतन में वतनी जहन पैदा हो
बस कि आइंदा से लहू में घुसे
लौहे को सोने का तगमा ना मिले।
हमने बात की है
गोताखोरी की
पडोसी पार्क में बुलाते रहे पकौड़े खाने को,
डरे सहमे लोग अपने अपने घरों से ही नहीं हिले।
पूछो न रोज़ रोज़ के आख़िर में क्या हूँ मैं
सोचो तो सारे मर्ज़ की वैसे दवा हूँ मैं
फिर उबलते पानी के साथ
देती हूँ कुछ रंग कुछ स्वाद
प्यालियाँ भरकर।
मेढक सब मज़े उड़ाएँगे ,
मलाई खाएँगे और माल बनाएँगे ।
और हम ? हम इधर बस लार टपकाएँगे ,टापते
रह जाएँगे।नहीं ,नहीं यह नहीं हो सकता । और उसी दिन से
अलाना पार्टी वाले ,फ़लाना पार्टी वालों को गिराने की जुगत में भिड़ गए।
आदरणीय शैल चतुर्वेदी
उद्घोषणा
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
धन्यवाद।
टीपें
अब 'लोकतंत्र' संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार '
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आज्ञा दें !
आप सभी गणमान्य पाठकजन पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा। रचनाओं के क्रम सुविधानुसार लगाये गए हैं।
सभी छायाचित्र : साभार गूगल
वाह! दिन पर दिन इस संवाद का पैनापन बढ़ता जा रहा है। बधाई!
जवाब देंहटाएंधारदार प्रस्तुति । दो दुनी आठ। बहुत-बहुत बधाई आदरणीय एकलव्य जी।
जवाब देंहटाएंलाजवाब अंक।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंशानदार अंक है।
जवाब देंहटाएंआभार हमें इसका हिस्सा बनाने के लिए 🙏
शानदार प्रस्तुतीकरण उम्दा लिंक संकलन...।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
जवाब देंहटाएंलाजवाब भूमिका संग सुंदर प्रस्तुति दी आपने साथ ही बदमाश कलुआ के दोहे...वाह्ह्ह्ह...आज के अंक की शान।
आदरणीय रवीन्द्र सर की सुंदर,हृदयस्पर्शी रचना साझा करने हेतु आपका आभार। सभी रचनाएँ भी पढ़ी हमने सब बेहद उम्दा। एक से बढ़कर एक रचनाओं का चयन किया आपने और अंक विभिन्न रसों से सज गया।कहीं वतन के लिए रणभूमि में अपना कर्तव्य निभाते जवानों की व्यथा को शब्द मिले तो कहीं कोरोना के चलते होली के फीके रंग का पछतावा। राजनीति में जो अजब शोर मच रहा है उसे भी गजब व्यंग कथा का रूप मिला। यह सभी उम्दा रचनाएँ हिंदी साहित्य को संपन्न करती हैं। आदरणीय शैल चतुर्वेदी जी की इस गुदगुदाती रचना ने तो अंक में हास्य के अद्भुत रंग बिखेर दिए।
सराहनीय प्रस्तुति की हार्दिक बधाई 🙏
बहुत रोचक ढंग से प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट शामिल करने हेतु अत्यंत आभार 🙏
बहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंसादर
पढ़ें- कोरोना
वाह!ध्रुव जी ,भूमिका तो शानदार है आपकी लेखनी बडी धारदार है ,व्यंग करनें में पारंगत ....!पढकर आनंद आता है । सभी रचनाएँ शानदार है ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब प्रिय ध्रुव | नटखट कलुवा ने दोहे तो अक्ल लगाकर ठीक -ठाक लिख दिए | पर आगे भी नकल पर अक्ल लगी रहे तो बात बने | सुंदर सार्थक अंक | जिसमें बहुत कम लेकिन सार्थक और नये विमर्श को जन्म देती रचनाएँ लाजवाब हैं | सभी रचनाकारों का सराहनीय सृजन पठनीय है | सभी को आभार और शुभकामनाएं| भाई रविन्द्र जी की कविता पाठ की प्रस्तुती मन आह्लादित कर गयी | और आदरणीय शैल जी के बारे में क्या कहूं ! सूरज को दीपक दिखाने जैसा है | इस अंक के लिए आपको हार्दिक बधाई प्रिय ध्रुव | व्यंग सचमुच बहुत बढ़िया है | शब्द साधना में यूँ ही लगे रहो साथ में अपना ख्याल रखना मत भूलना | सस्नेह
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