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सोमवार, 15 अक्तूबर 2018

६४...........का रे कलुआ ! चुनाव आ गवा रे !

 का रे कलुआ ! चुनाव आ गवा रे ! अब तो खूबहू लिखेंगे। 
'लोकतंत्र' संवाद मंच 
अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के इस कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत करता है।  

हमारी आज की अतिथि रचनाकार 
आदरणीया 'रेणु' बाला जी 


 बुद्ध की यशोधरा

बुद्ध की प्रथम और अंतिम नारी-
 जिसने  उसके मन में झाँका,
जागी थी जैसे तू कपलायिनी -- 
ऐसे  कोई नहीं जागा !!

ति प्रिया से बनी  पति त्राज्या-- 
 सहा अकल्पनीय दुःख पगली,
नभ से आ  गिरी धरा पे-
 नियति तेरी ऐसी बदली ;
 वैभव  से बुद्ध ने किया पलायन
तुमने वैभव में सुख त्यागा |

 बुद्ध को सम्पूर्ण करने वाली -
  एक नारी बस तुम थी ,
 थे  श्रेष्ठ बुद्ध भले जग में -
 बुद्ध पर  भारी बस  तुम  थी ;
सिद्धार्थ  बन गये बुद्ध भले  -
 ना  तोडा  तुमने  प्रीत का धागा !!

तिहास झुका तेरे आगे --
 देख उजला   मन का दर्पण
  एक मात्र पूंजी पुत्र जब
 किया  बोधिसत्व को अर्पण ;
आत्म गर्वा माँ बन तुमने -
अधिकार अपने पुत्र का मांगा !!

बुद्ध का अंतस भी भीगा  होगा -- 
देख तुम्हारा  सूना तन - मन
चिर विरहणी, अनंत मन -जोगन -- 
विरह अग्न में तप हुई कुंदन ! !
 बुद्ध की करुणा में  सराबोर हो 
तू बनी अनंत महाभागा !!!!!!!!!!!!!!!
                                                                                  -'रेणु' बाला जी
                                                                                              -आपको हार्दिक बधाई

चलते हैं इस सप्ताह की कुछ श्रेष्ठ रचनाओं की ओर ........

गज़ल 

 मैं तो दरिया हूँ समंदर तलाश करता हूँ

कोई हसीन मुक़द्दर तलाश करता हूँ।

माँ...

 कुछ कहिये कि आप
 

कि अजी आपको,मुस्कुराना ही होगा ,
इस गम का सबब,तो बताना ही होगा ,
क्या खता कोई हुई है मुझ दीवाने से ?
या फिर कोई शिकायत है ज़माने से ?

 ओ रे बदरा   
इतना क्यों बरसे   
सब डरते   
अन्न-पानी दूभर   
मन रोए जीभर।   


 पहुंचे वहां सब अपने, आखरी रस्मों पर उलझे पड़े थे
कोई अपना, अर्थी पर आंसू बहा रहा था

 कोई अर्थी को, घी लकड़ी से सज़ा रहा था

उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
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धन्यवाद।
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  सभी छायाचित्र : साभार  गूगल


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