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सोमवार, 3 सितंबर 2018

५८..........मितरों के देश में ...




आज आदरणीय काजल कुमार जी के पोस्ट मितरों के देश में से यह विचार मेरे मन में आया कि सचमुच मितरों के देश में ख़तरे बहुत हैं ! इस विचार मंथन से निकलकर आया 'मितरोफोबिया' ! बाकी का आप स्वयं ही समझ लीजिए मुझे तनिक जल्दी है गाड़ी का पेट्रोल ख़त्म हो गया है और चावल भी कुछ अधपका-सा लग रहा है जरा एल.पी.जी. तो भरवा लूँ कहीं उसके दाम रातों-रात पेड़ की सबसे ऊँची डाल पर न पसर जाए ! मेरी धर्मपत्नी  भी बड़ी गुस्सैल है पता नहीं कब इन बातों को लेकर धरना देना प्रारम्भ कर दे। तो चलिए ! चलते हैं मितरों के देश में थोड़ा खतरा उठाने .......       


आदरणीय काजल कुमार जी  'चित्रांकन' 
'लोकतंत्र' संवाद मंच 
अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के इस कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत करता है।  


इस कड़ी में सार्थक और साहित्यिक रचनाओं का समावेश है। 



चाय की चुस्कियों में 

 जंगलो की सरसराहट है। 
वो चिंतित और बैचैन है 
अपनी "ड्राइंग रूम" में की अब पलाश की ताप से

 बुझते जलते अदृश्य आग्नेय - 
कण, कभी तुम्हारे मध्य 
कभी मेरे अंदर। 
जीवन के 

 साब जी
उसकी मंशा ठीक नहीं है ...
कहो तो -
गिरफ्तार कर लूँ ?

 निकाल तेरे तरकश में 

जितने तीर हैं 

हमारी क़लम तेरे लिये

 चमचमाती शमशीर है 

उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
व्यक्ति यदि  हमारे विचारों से निजी तौर पर 
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए। 
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु 
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
 है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है । 
धन्यवाद।
 टीपें
 अब 'लोकतंत्र'  संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार'
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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'एकव्य' 

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  सभी छायाचित्र : साभार  गूगल

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