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सोमवार, 27 अगस्त 2018

५७......एक पवित्र और प्यारा बंधन !

स्नेह के धागों में बंधा प्यार का बंधन ! रक्षा करने का वचन अपनी बहना का हर संकट की घड़ी में ! 
एक पवित्र और प्यारा बंधन !

आइये ! आगाज़ करते हैं आज की प्रस्तुति का हमारी 'अतिथि रचनाकार' 
आदरणीया 'रेणुबाला' जी की एक प्यारी रचना से 


 जग में हर वस्तु का मोल -
 पर भैया तुम हो अनमोल  !

दर-दर पर शीश झुका करके -
 मांगा था तुझे विधाता से -
तुम सा कहाँ कोई  स्नेही-  सखा मेरा -
मेरा  तो  गाँव तेरे दम से ;
 सुख- दुःख  साझा  कर लूं अपना  
रख  दूं  तेरे  आगे मन  खोल !!

बचपन में जब तुमने गिर -गिर -
 ये ऊँगली पकड चलना सीखा ,
 नीलगगन का चंदा भी -
था तेरे आगे बड़ा फीका ;
 धरती पर मानो देव  उतरे -
 सुनकर तेरे तुतलाते बोल !!

 बाबुल की बैठक की तुम शोभा -
 तुमसे  माँ का उजला अंगना ;
 भाभी की मांग सजी तुमसे -
 हो तुम उसकी प्रीत का गहना ;
तुमसे बढ़ ना कोई धन मेरा -
 चाहे जग दे तराजू  तोल !! 

लेकर राखी के दो तार -
 आऊँ स्नेह का पर्व मनाने ,
 घूमूं बचपन की गलियों में -
 पीहर  देखूं तेरे बहाने ;
 बहना  मांगे प्यार तेरा बस -
 ना मांगे राखी का मोल !!
जग में हर वस्तु का मोल -
 पर भैया तुम हो अनमोल  !!!!!!!!!!!

-आदरणीया रेणुबाला जी 

पल -पल खुशियाँ ढूँढ रहा है 
जीवन यह अनमोल


 इतना गुमसुम रहता है क्या
तुझको भी मरज़े उल्फ़त है

 नए सृजन की आस लिए 
पुराना सब तोड़ आया हूँ
पत्थरों के ढेर पे बैठा हूँ 
तराशने के औज़ार छोड़ आया हूँ


भेड़िया 

मेमने से 

कह रहा है 

आप मेरी शरण में 

महफ़ूज़ हैं, सलामत हैं 

 'प्रेय' पथ की मेरी
प्रेयसी हो तुम।
आकुल आतुर
मिलने को तुमसे
पथिक हूँ तुम्हारा।


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