कलुआ आज अपनी 'दी' के यहाँ हिंदी पखवाड़े का विसर्जन करने गया है और कक्का गणपति जी को ! अजब महिमा है हिंदी में 'दी' नया शब्द ! अंग्रेजी में 'दी' प्राचीनतम ! चलो कक्का 'ब्रो' ! तनिक हिंदी कविशाला में थोड़ा अंग्रेजी युक्त हिंदी बांच आयें। फिर वापस लौट हिंदी पखवाड़े पर लम्बी-चौड़ी फेंकें । ....... हा ..हा ....हा। काहे मज़ाक करते हो भाई !
'लोकतंत्र' संवाद मंच
अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के इस कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत करता है।
चलते हैं इस सप्ताह की कुछ श्रेष्ठ रचनाओं की ओर ........
एक ही बहर और वज़न के
अनुसार लिखे गए शेरों का समूह ग़ज़ल के रूप में जाना जाता है।
उनको बतलाएँ, ज़मीं हड़ के उन्हें सहती है,
ज़िन्दा लाशों से ज़मीं, पाक नहीं रहती है.
बहुत हो चुका अब लगाओ निशाना
मुझे अपने दुश्मन का डर देखना है
क्षीण होती प्रिय मिलन की आस है
मलिन मुख से जा रहा मधुमास है !
राजीव गाँधी के राज में धर्म-विकृति
अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गयी थी.
सवर्ण हिन्दू निर्लज्ज होकर अपने दलित भाइयों की आहुति दे रहे थे.
शाह बानो प्रकरण में इस्लाम के अंतर्गत स्त्री-अधिकार की समृद्धि परंपरा की धज्जियाँ उड़ाई जा रही थीं.
अब नयी-नयी
तरकीबों के साथ
चिड़ियों को उड़ाने नहीं
जान से मारने हेतु
प्रकृति से उलझ बैठा है।
उद्घोषणा
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
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धन्यवाद।
टीपें
अब 'लोकतंत्र' संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार'
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आज्ञा दें !
'एकलव्य'
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सभी छायाचित्र : साभार गूगल
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