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सोमवार, 20 अगस्त 2018

५६ ..अब इ बतावा एमना से शीर्षकवा कउने क याद रही ?

का बात है रे कलुआ ! आजकल भीतर ही भीतर पकौड़े छान रहा है घर से तो निकलता ही नाही है ! का कउनो विशेष आयोजन है का तेरे इहाँ ? अरे का बताईं कक्का आजकल ब्लॉग जगत में कविता अउर कहानी लिखो कम्पटीशन तैर रहा है अउर हम ही फिस्सडी होत हैं हमेशा ! कउनो सौ और कउनो दुई सौ अउर कहीं-कहीं तो हजार ! सभी बड़े भावुक मन वाले मनई हुई गवे हैं लागत हैं दुष्यंत अउर निराला जी पीछे छूट जहियें इ पकड़म-पकड़ाई में। एक दिन में कम से कम तीन रचनाएं और सप्ताह के बेर बिसवत-बिसवत इक्कीस रचनाएं ! तोहि अंदाजा लगावा ! महीना भर में सतक पार ! अब इ बतावा एमना से शीर्षकवा कउने क याद रही ? अउर सच त बोले क हिम्मत कउनो महाशय में बा नाही ! पर का करि ब्लॉगिंग त करहि के हौ सो हमउ झंडा गाड़ेका प्रयास में लागल हई ! कुछ नाही त तीस त पार कराही देब महीने के अंत में ! इ त हौ आजकल के कवियन क हालत !अउर त बाकी सब ठीक बा। 
'लोकतंत्र' संवाद मंच 
अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के इस कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत करता है।  
 

इस कड़ी में सार्थक और साहित्यिक रचनाओं का समावेश है। 


 गर हुस्न को बुतों में उतारा तो ठीक था,
पत्थर में आस्था को तराशा तो ठीक था.

यहाँ शब्द नहीं अनुभूति है 
अनुभव से सब कुछ पाया है
अनुभूति जितनी गहरी हो 
ठहरी उतनी ही काया है

 "ये शोख़ी यह अदा यह बाँकपन यह
सुरो संगीत ये मीठे तराने
करेगा क्या तू इतनी इश्रतों का
मेरे हिस्से की मुझको दे ज़माने"


  इक बड़ाकवि अटल नामक इस जगत से टल गया ।। 

 एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने वाले 
ज़माने में वो नेताओं की जमात में एक 
ऐसे नेता थे जिन्हें अपने अनुयायियों का ही नहीं, 
अपितु अपने विरोधियों का भी प्यार और सम्मान मिला था.

 दीमक चाट गयी
डगमगाया है 
काग़ज़ से 


उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
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धन्यवाद।
 टीपें
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होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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'एकव्य' 

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सभी छायाचित्र : साभार  गूगल

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