हम पत्थरों पर सिर झुकाते चले,कुछ करम थे हमारे
पाखंडी हैं हम कहते-कहते,वे बताते चले।
मरने लगे अब शर्म से,पी लो गंगा जल थोड़ा !
गटर के पानी को भी शुद्ध अमृत-सा बनाते चले।
मानव तो मानव ही है चाहे वह इस देश का हो अथवा दूसरे देश का। तनिक विचार कीजिए यदि सम्पूर्ण विश्व ही हमारा देश होता और हम इस सम्पूर्ण विश्व के वासी ! न वीज़ा और न ही कोई पासपोर्ट। सभी स्थानों पर स्वतंत्र रूप से विचरण करने की स्वतंत्रता। तब क्या भारत और क्या अमेरिका, न ही कोई लंदन। न ही कोई संसाधनों की ख़ातिर युद्ध करता और न ही गज़-भर ज़मीन के लिए सीमाओं पर रक्तपात होता। हमारे चाचा अमेरिका में और मौसी लन्दन में। न ही कोई ज़ात-पात और न ही कोई धर्म ! न ही हम सिंह होते और न ही आप बिलारी और कोई बादव नहीं और न ही कोई मौतम। न ही वो मंदिर में समय बिताते और न हम मस्जिद में। सब मिलकर विकास और प्रगति की बातें करते। डिनर भी साथ-साथ और लंच भी दबा के। उधर वाइन की बोतल खुलती, इधर ठंडी-ठंडी लस्सी बंटती। गाहे-ब-गाहे कतरबाल और सुप्त जी, जान-लगान, सत्तू-खैयर भी साथ हो ही लेते ! सभी केवल नाम से सम्बोधित किए जाते। अरे हाँ ! टाइटल के एवज में "जी" अवश्य लगा सकते थे। न कोई राजा और न ही कोई प्रजा, सभी समान। तब सच्चे अर्थों में हम बराबरी की बातें करते। एक देश सर्वश्रेष्ठ देश ! क्यों सही है न ! चलिए यदि मेरा सोचना ग़लत भी है तो क्या करना। बझे रहिए इसी "टाइटल" के मायाजाल में और मिथ्या ही रट लगाए रहिए। एक भारत, सर्वश्रेष्ठ भारत ! मेरा क्या है, कल फिर मज़दूरी पर जाना है और शाम को कढ़ी-चावल खाना है तथा उसी फटी टाट पर टाँग पसारकर सोना है। हा .... हा। ....... क्या रखा है टाइटल में !
'लोकतंत्र' संवाद मंच
अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के इस कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत करता है।
चलते हैं इस सप्ताह की कुछ श्रेष्ठ रचनाओं की ओर ........
तुम संग..
नभ अम्बर के पृष्ठ भाग पर, सात वर्ण का विक्षेपन हो।
हरयाली का हरा आवरण, और फूलों का हो अभिनन्दन,
"षड़यंत्र"
बगल के कमरे में बैठी निम्मी सब
सुन रही थी और यह सब सुनकर वह सावधान
हो गयी और अकस्मात उसने अपनी अटैची तैयार की
द्वंद की पीड़ा
व्यथित हूँ
अंतर्मन में झेल रही हूँ।
दावत ए फ़िक्र1
सोचो सीधे शरीफ़ इंसानों!
शख़्सी२ आज़ादी ए तबअ३ क्या है?
यह तुम्हारी अजीब फ़ितरत है,
अपने अंदर के नर्म गोशों में,
सोच सकते हैं पा नहीं सकते
ऐसी कुछ शै हैं जैसे तू है जिन्हें
सोच सकते हैं पा नहीं सकते
मित्र मिला हो तो बताना
दुनिया में सबसे ज्यादा अजमाया जाने
वाला नुस्खा है – मित्रता। एलोपेथी, आयुर्वेद,
होम्योपेथी, झाड़-फूंक आदि-आदि के इतर एक
नुस्खा जरूर आजमाया जाता है वह है विश्वास का नुस्खा। हर आदमी कहता है
मैं. ....
कुछ सिल्वटे चादर की ना जाने क्यों...!!
उन्हें छूने को हाथ बढ़ाया
पर कांप उठा....!
निर्बल चितवन सारा..!!
महज़ ख्वाब ही तो था
पढ़ के बनना था उसे भी डॉक्टर,
क्या हुआ जो बिखर गया
परिस्थितयों की चोट से
महज़ ख्वाब ही तो था...
चल बैजयंती कंधे पर ....
ले चल बैजयंती कन्धों पर
अपनी हार देखता हूँ -
जीते नेता हारी जनता
मैं हर-बार देखता हूँ
बंदी,
ये पहरेदार जो सो रहे हैं,
दरअसल सो नहीं रहे हैं,
सोने का नाटक कर रहे हैं-
नील गगन में उड़ने वाले -
ओ ! नटखट आवारा बादल ,
मुक्त हवा संग मस्त हो तुम-
किसकी धुन में पड़े निकल !
भानू पंडितजीने काले बादलों को देखा,
अपनी उंगलियों पर कुछ गणना की, पत्रा के
दो-चार पन्ने पलटे, फिर इत्मीनान से अपने
मुहं में गुटके की एक बड़ी डोज़ डाल कर बोले
मानवी-झुण्ड
अपने स्वार्थों की रक्षार्थ
गूढ़ मंसूबे लक्षित रख
एक संघ का
निर्माण करता है
उद्घोषणा
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
धन्यवाद।
टीपें
अब 'लोकतंत्र' संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार'
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आज्ञा दें !
'एकलव्य'
अब 'लोकतंत्र' संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार'
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आज्ञा दें !
'एकलव्य'
आप सभी गणमान्य पाठकजन पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा।
सभी छायाचित्र : साभार गूगल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आप सभी गणमान्य पाठकों व रचनाकारों के स्वतंत्र विचारों का ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग स्वागत करता है। आपके विचार अनमोल हैं। धन्यवाद