क से कबूतर ,ख से खरगोश, ग से गदहा ... अरे कलुआ ई का कर रहा है रे तू ? कछु नाही कक्का तनिक हिंदी ज्ञान को बढ़ा रहे हैं। पर तू तो इतना बड़ा साहित्यकार बन चुका है तो ई अक्षरमाला का क्या ज़रूरत है तुमका। अब तो तुमका सबही मनई सुपरस्टार मानकर पढ़ते हैं तो तू ई नया बवेला काहे फाने बैठे हो ? अरे कक्का तुम तो एकदम बौड़म हो। अरे ई अक्षरज्ञान अउर उहे मात्रा ही तो हिंदी साहित्य की नींव है।
अब तुम अपने को ही ले लो !
हूँ को तुम हूं लिखते हो।
चाँद को चांद का ई गलती नाही।
पूर्णविराम ( । ) के जगह तुम पाश्चात्य भाषा का फूलिशताप ( . ) लिखते हो। तो कहो ! हो गया ना हिंदी भाषा का बेड़ा गरक ! अउर ऊपर से बताने पर ढिठाई दिखाते हो !
चल ! आया बड़ा ! हमका कौआ अपनी चाल बताने वाला। अरे ! सभई लिख रहे हैं तो हमऊ लिख दिया करत हैं। का रखा है ई मात्रा-सात्रा में। अउर वैसे भी हमरी इतनी उमर हो गई है , हम दो रुपल्ली वाली वर्णमाला लेकर अपने बचवा के सामने पढ़ने बैठूँगा तो हमरा लड़का हमरे बारे में का सोचेगा अरे यही न कि हमरे पिताजी को क,ख,ग .... ज्ञ नहीं आता। चल भाग यहाँ से ! बाकी सब ठीक बा।
वक्ष में फोड़ा हुआ
पीठ पर सूरज बंधा
पेट बिलकुल खाली
कपकपाते हाथों से
बजती नहीं ताली--
'लोकतंत्र' संवाद मंच
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'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
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होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आज्ञा दें !
'एकलव्य'
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सभी छायाचित्र : साभार गूगल
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अक्षय गौरव त्रैमासिक ई-पत्रिका के प्रथम आगामी अंक ( जनवरी-मार्च 2019 ) हेतु हम सभी रचनाकारों से हिंदी साहित्य की सभी विधाओं में रचनाएँ आमंत्रित करते हैं। 31 जनवरी 2019 तक रचनाएँ हमें प्रेषित की जा सकती हैं। रचनाएँ नीचे दिए गये ई-मेल पर प्रेषित करें- editor.akshayagaurav@gmail.com
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