फ़ॉलोअर

सोमवार, 7 जनवरी 2019

७३..........अउर ऊ रॉकेट नासफिटा ! अउरो कामचोर !

सोचता हूँ आज मस्त नहा-धो कर तनिक कक्का जी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामना देता आऊँ ! 
कलुआ अपने घर से कक्का जी के निवास स्थान हेतु चौपटिया डग भरता है। सत्तर वर्ष बीत गए परन्तु ई बगल वाली नाली जस की तस ! अउर ई रोड में गड़हा है कि पाटने का नाम नहीं लेता ई म्युनिसिपल्टी वाला ! ख़ैर, रास्ते भर उलाहना देता हुआ कलुआ कक्का जी के घर फेरे तीन करता है। दृश्य कुछ इस प्रकार 
कक्का जी चारपाई पर उलटे हुए अउरो भाभी सिर पकड़कर एक तरफ बड़बड़ा रहीं थीं। 
कलुआ- कैसी हो भौजी ,सब ठीक-ठाक तो है ? 
रसीली - का ठीक-ठाक रही देवर जी ! ई तोहरे कक्का न जउने करा दें ! 
कलुआ - का बात हुई गवा ? 
रसीली - होई का ऊ मुआं पड़ोसी ने तो नाक में दम कर रखा है। 
कलुआ - अरे हुआ का ज़रा ठीक से बताओ। 
रसीली - अरे होई का ! परसों हमरे चौधरी पार्टी बदल दिए अउर पुरानी वाली छोड़ दूसरी पकड़ लिए। नई पार्टी के नेता जी ने तुम्हरे कक्का के हाथ कुछ मिठाई अउरो कुछ पटाखे पकड़ा दीन। बस होना का था अपना डबलूआ उम्मे से एकठो रॉकेट धरा दीस, अउर ऊ रॉकेट नासफिटा ! अउरो कामचोर !  जाकर ऊ पड़ोस वाले झुल्लन महतो के घर मा पर्दे में आग लगा दिया। इसी खुन्नस में महतो जी डबलू को दो झापड़ रख दीन। बीच-बचाव करने में तोहार कक्का भी पीट गए। बस अउर का ऊ नेता जी के चक्कर में हम लोगन का नया साल कुछ ज्यादा ही अच्छा हो गवा ! 
कलुआ - कोई बात नहीं भाभी नव वर्ष मंगलमय हो ! बाकी सब ठीक बा। 
'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !   
  'लोकतंत्र' संवाद मंच 
अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के इस कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत करता है।  

चलते हैं इस सप्ताह की कुछ श्रेष्ठ रचनाओं की ओर .....

मेरा पहला उपन्यास 'पहाड़ की सिमटती शाम' आ रहा है। 
इसमें गाथा है, सम्मोहित करते, धैर्य पूर्वक खड़े प्रतीक्षारत उस पहाड़ की जो नैसर्गिक सौंदर्य से दमकता है, 

 हो नवीन वर्ष पर सोच नई
 हो नवीन वर्ष पर सोच नई अनुभूति पीड़ा गई गई
तृप्ति भी हर मन को छू ले जो गमगीन थे पल वे भूले

 घडी और वक़्त 
 फुटपाथ पर पुरानी किताबें बेचने वाले
इस शख्श की किताबी जानकारी और ज्ञान को देखकर अगर
उसने तराशा ना होता, तो आज भी सर्द राते उसी फुटपाथ पर गुजरती।

 इमारत है ये
 झूठ,फरेब,मक्कारी से दूर
स्वार्थ,अज्ञानता,तिरस्कार को भूल
सबकी सुनें,किसी से कुछ ना कहे
इमारत हैं ये,

 आरक्षण
 आरक्षण का चलता आरा,  मचा हुआ है हाहाकारा,
तर्क बुद्धि से किया किनारा,  मूल मन्त्र, केवल बटवारा.

 यह विदाई है या स्वागत...?
 नया साल मुबारक हो तुम्हें ओ मेरे महबूब मुल्क !   

 नमन आपको
 सदा विराजे,मृदु मुस्कान चेहरे पे,
दूरी रहे कायम,कष्ट,रोग,शोक से ,

 चुनावी दौर
अपनी गाड़ी ज़ंग खायी खटारा
पैने हो रहे हैं
सवालों के तीखे तीर
कोई दोहरायेगा
जवाबों की पिटी लकीर



उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
व्यक्ति यदि  हमारे विचारों से निजी तौर पर 
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए। 
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु 
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
 है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है । 
धन्यवाद।

 टीपें
 अब 'लोकतंत्र'  संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार'
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

आज्ञा दें  !


'एकव्य' 


आप सभी गणमान्य पाठकजन  पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर  साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा।
                                                                                              
                                                                                     सभी छायाचित्र : साभार  गूगल


आवश्यक सूचना :
अक्षय गौरव त्रैमासिक ई-पत्रिका के प्रथम आगामी अंक ( जनवरी-मार्च 2019 ) हेतु हम सभी रचनाकारों से हिंदी साहित्य की सभी विधाओं में रचनाएँ आमंत्रित करते हैं। 31 जनवरी 2019  तक रचनाएँ हमें प्रेषित की जा सकती हैं। रचनाएँ नीचे दिए गये ई-मेल पर प्रेषित करें- editor.akshayagaurav@gmail.com 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आप सभी गणमान्य पाठकों व रचनाकारों के स्वतंत्र विचारों का ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग स्वागत करता है। आपके विचार अनमोल हैं। धन्यवाद