आजकल कक्का जी लेखनी में कम, व्हाट्सअप पर ज्यादा व्यस्त हैं। अभी कल ही की बात ले लीजिए ,कवि संगोष्ठी का आयोजन हमारे नवाबों के शहर लख़नऊ के कैसरबाग प्रांगण में किया गया। बड़े-बड़े नामी-ग्रामी कवियों का जमावड़ा मंच पर शंखनाद करता नजर आ रहा था। गाये-बघाये मुझे भी उन धुरंधरों के बीच एक आसन मिल ही गया और संयोग से बगल में कक्का जी भी विराजमान थे। परन्तु आज कक्का जी कवि संगोष्ठी में बैठे अवश्य थे परन्तु उनका वो दिखावटी निश्च्छल मन कहीं और मन मार रहा था। तभी एक आवाज हुई, टुन-टुन ,टिन-टिन ! मैं जरा देर के लिए सकपका गया। मेरा सारा ध्यान कक्का जी के हाथ में नज़ाकत से पड़े उस दूरसंचार यंत्र पर गया। अरे वही ! ''कर लो दुनिया मुट्ठी में और आप बैठो छुट्टी पे'' ! मैंने कक्का जी से पूछा -अरे कक्का जी ! कहाँ लगे पड़े हुए हो ? कक्का जी ने हिमालय वाले बाबा के टूथपेस्ट के सहयोग से अपनी चमकती हुई बत्तीसी हमें अनायास ही दिखा दी और मुँह निपोर कर पुनः पूरे मनोयोग से अपने रचनात्मकता में तल्लीन हो गए। तभी मेरे टुटपुँजिया फोन के फेस पर एक तमतमाता और घनघनाता सन्देश तैरता हुआ,हाथ जोड़े खड़ा था। मैं भी कौतुहलवश उस सन्देश का अनावरण करने में जुट गया। सन्देश की तो पूछिए मत ! सन्देश कम, किसी राजनीतिक पार्टी का एजेंडा ज्यादा प्रतीत हो रहा था जिसमें उस पार्टी के द्वारा किये गए कामों की उपलब्धियों का ब्यौरा, चलचित्रों और कक्का जी के साहित्यिक धरपकड़ रचनाओं के साथ बड़ी ही सावधानी से अलंकृत किया गया था। यकीन मानिए, मैं तो दंग रह गया। कवि संगोष्ठी जैसे ही खत्म हुई मैं और कक्का जी गृह प्रस्थान को साथ हो लिए। अपने इस मोबाइल वाले वाट्सअप मैसेज के पीछे छिपे रहस्य को जानने की बड़ी उत्सुकता हो रही थी परन्तु एक झेंपने की मनोस्थिति न जाने क्यों इस उत्साह को दबाने में सफल हो रही थी। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने एक सनसनाता प्रश्न कक्का जी पर दाग दिया। अरे कक्का जी ! तनिक ई बताइये, ई कवि संगोष्ठी के दौरान आपने कौन सा रंगीला मैसेज भेज दिया था। ससुरके समझ ही नही पाए ई है का। एक तरफ तुम्हरा कविता और दूसरी तरफ उ चमचमाती राजनीतिक पार्टी का लाल-पीयर झंडा ! का था ई,तनिक एक्सप्लेन इट !
अरे कलुआ ! कछु नहीं, तैं पगला गए हो। जानता नहीं चुनावोत्सव आने वाला है अउर यही तो मौसम है हमारे इस कलम की स्याही के दाम निकालने का। और वैसे भी हमें करना ही क्या रहता है ये सब तो व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी का कमाल है बाकी सब बेहाल हैं। उधर से पार्टी का बना-बनाया पोस्टर अथवा वीडियो हमें प्रेषित कर दिया जाता है और हम उस चलचित्र अथवा चित्र के नीचे बढ़ा-चढ़ाकर अपने कलम का कमाल दिखा देते हैं बस। 'हर्रे लगे न फिटकरी ,और रंग भी चोखा' और मौके पर, ले चौके पर चौका। अरे कलुआ ! इ चुनाव का अचूक हथकंडा है। कुलहिन काला, बाकी सब सफेद ! हमरा का जाता है ? बस बनावटी शब्द न ,अउर इ बता !मुफत की कमाई किसे काटती है ? बस हमें उ राजनीतिक पार्टी का चुनावी एजेंडा ही तो अपने वाट्सअप ग्रुप में घुमाना है। इसमें हमरा का दोष ? अरे ! इ काम तो आजकल ब्लॉगजगत में अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे मुँहबोले कवि ,लेखक और व्यंगकार तक करने में लगे पड़े हैं और फिर हम तो केवल इ पार्टीव्यंजन वाट्सअप पर ही परोस रहे हैं। मैंने कक्का जी को डांटते हुए- अरे ! का बात करते हैं कक्का जी ,आप तो पूरे शेठिया गए हैं। तनिक इ बताइये।
घोटाला कौन करता है ?
कक्का जी - उ राजनीतिक पार्टी का मंत्री।
कलुआ -जनता के प्रति जवाबदेही किसकी ?
कक्का जी - उ पार्टी के मंत्री की।
कलुआ - तो संसद में कौन बैठा है ?
कक्का जी - उ पार्टी का सदस्य।
कलुआ - तो फिर उसके द्वारा किये गए उचित अथवा अनुचित कार्यों का ब्यौरा आप काहे देंगे ?
कक्का जी ( समझाते हुए ) - अरे कलुआ ! तू नाहक ही गुस्सा होता है अरे इसमें हमरी का गलती ! हमें तो ये वाट्सअप मैसेज और ब्लॉगों पर अमुक पार्टी के पक्ष में लेख अथवा कविता लिखने का पइसा मिलता है अउर का ! इसमें हर्ज़ ही का है। खैर बात करते-करते कक्का जी का घर कब आ गया पता ही नहीं चला। कक्का जी को उनके गेट तक छोड़कर मैं गुस्से में फनफनाते हुए वहाँ से जाने लगा। गोमती के तट पर बने ऊपरगामी पुल पर जैसे ही कदम रखा तभी मेरा वो टच-वच वाले स्क्रीन वाला फोन अपने पूरे दम-खम से मेरे पैंट के साइड वाले जेब को फाड़ने लगा। मैंने फोन झट से निकाला और देखा वाट्सअप यूनिवर्सिटी से एक सन्देश मेरी ओर लपलपा रहा था। मैंने सन्देश का अनावरण किया तो देखा कक्का जी का वो राजनीतिक पार्टी के एजेंडे से लबालब भरा सन्देश उनकी स्वरचित रचना के साथ मुझे मुँह चिढ़ा रहा था। मैं थोड़ा मुस्कराया और बोला - इ कक्का जी ! अबहीं न सुधरी। कहते हुए मैंने अपना टचस्क्रीन वाला वो जंतर-मंतर उसी गोमती में विसर्जित कर दिया और अपने कर्म का निर्वाह करते हुए अपने निवास स्थान की ओर चल दिया।
आदरणीया 'शशि' पुरवार जी
'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला की इस कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत करता है।
१.आँगन की धूप
धूप आँगन में खड़ी यूँ
लग रही कितनी अकेली
हो रही जर्जर दीवारें
धूर में लिपटी हवेली
शहर की तीखी चुभन में
नेह का आँगन नहीं है
गूँजती किलकारियों का
फूल सा बचपन नहीं है
शुष्क होते पात सारे
बन रहें है इक पहेली
धूप आँगन में खड़ी, यूँ
लग रही कितनी अकेली
छोड़ आये गॉँव में हम
कहकहों के दिन सुहाने
गर्म शामें तप रहीं है
बंद कमरों के मुहाने
रेशमी अहसास सारे
झर गए चंपा चमेली
धूप आँगन में खड़ी यूँ
लग रही कितनी अकेली
गर्मियों में ढूँढ़ते है
वृक्ष की परछाइयों को
पत्थरों पर लिख गयी, वह
प्रेम की रुबाइयों को
मौन क्यों संवाद सारे
माँ वही है इक सहेली
धूप आँगन में खड़ी, यूँ
लग रही कितनी अकेली
.... शशि पुरवार
२. शूल वाले दिन
अब नहीं मिलते डगर में
फूल वाले दिन
आज खूँटी पर टंगे हैं
शूल वाले दिन
परिचयों की तितलियों ने
पंख जब खोले
साँस को चुभने लगे फिर
दंश के शोले
समय की रस धार में
तूल वाले दिन
मधुर रिश्तों में बिखरती
गंध नरफत की
रसविहीन होने लगी
बातें इबादत की
प्रीत का उपहास करते
भूल वाले दिन।
आँख से बहता नहीं
पिघला हुआ लावा
चरमराती कुर्सियों का
खोखला दावा
श्वेत वस्त्रों पर उभरते
धूल वाले दिन।
- शशि पुरवार
३
" गीतों में बहना "
कभी कभी, अच्छा लगता है,
कुछ तनहा रहना।
तन्हाई में भीतर का
सन्नाटा भी बोले
कथ्य वही जो बंद ह्रदय के
दरवाजे खोले।
अनुभूति के,अतल जलधि को
शब्द - शब्द कहना
कभी कभी, अच्छा लगता है,
कुछ तनहा रहना।
बंद पलक में अहसासों के
रंग बहुत बिखरे
शीशे जैसा शिल्प तराशा
बिम्ब तभी निखरे।
प्रबल वेग से भाव उड़ें जब
गीतों में बहना।
कभी कभी, अच्छा लगता है,
कुछ तनहा रहना।
गहन विचारों में आती, जब
भी कठिन हताशा
मन मंदिर में दिया जलाती
पथ की परिभाषा
तन -मन को रोमांचित करती
सुधियों को गहना
कभी कभी, अच्छा लगता है,
कुछ तनहा रहना।
-- शशि पुरवार
चलिए ! चलते हैं साहित्य समाज को गौरवान्वित करती उत्कृष्ठ रचनाओं की ओर
हाईकू
नभ तरसा
तरसे सरोबर
जल के लिए
आँचल में सीप
तुम्हारी पलकों ने करवट ली
दुआ में हाँथ उठा
बीज ने कुछ माँग लिया
मेघ बरसे,
बच्चों वाले खेल
लटटू ,कंचे ,चंग ,लगौरी
बीते कल के रंग
बचपन कैद हुआ कमरों में
मोबाइल के संग।
लौटने की मजबूरी
मजबूरी, फिर भी लौटतीं बहारें - -
जाते - जाते, बरगलाए मुझे।
उम्र, यूँ तो बीत गई ठीक
ईद मुबारक़
अब जो भी हो
प्रेम तो जिन्दा रखना है
अपन दोनों को ----
दो पग साथ चले
दो पग पथ पर तुम क्या मेरे साथ चले......
अमलतास से
जो कमज़ोर दिखते हैं,
उन्हें अपनी ख़ूबियों के बावज़ूद
पत्थर खाने ही पड़ते हैं.
स्मृति शेष पिताजी
उठा है जब से उनका साया -
किसी को हम पर नाज नहीं है
कल थे पिता पर आज नहीं है -
माँ का अब वो राज नहीं है!!!!!!!!!!!!!
आओ मेघा, बरसो ना !
झंकृत होने दो अब सस्वर,
अंबर भावुक - सा हो जाए
धाराएँ बरसें झर झर झर ।
जीत लिया है सकल जहान
गोली खाता रहे जवान, सूली चढ़ता रहे किसान,
किताबों की दुनिया - 181
मुझे चुप्पियों से न मार यूँ कोई बददुआ ही तू दे भले
तेरी गालियां भी अज़ीज़ हैं मैं इन्हें रखूंगा संभाल कर
दीपिका घिल्डियाल की कविताए
सीख लिया था छुपाना
माँ की दी हुई संदूकची में कंचे छुपाये
गुड़िया के कपड़ों के बीच सिक्के
टीपें
अब 'लोकतंत्र' संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार'
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आज्ञा दें !
'एकलव्य'
आप सभी गणमान्य पाठकजन पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा।
सभी छायाचित्र : साभार गूगल भईया
अरे कलुआ ! कछु नहीं, तैं पगला गए हो। जानता नहीं चुनावोत्सव आने वाला है अउर यही तो मौसम है हमारे इस कलम की स्याही के दाम निकालने का। और वैसे भी हमें करना ही क्या रहता है ये सब तो व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी का कमाल है बाकी सब बेहाल हैं। उधर से पार्टी का बना-बनाया पोस्टर अथवा वीडियो हमें प्रेषित कर दिया जाता है और हम उस चलचित्र अथवा चित्र के नीचे बढ़ा-चढ़ाकर अपने कलम का कमाल दिखा देते हैं बस। 'हर्रे लगे न फिटकरी ,और रंग भी चोखा' और मौके पर, ले चौके पर चौका। अरे कलुआ ! इ चुनाव का अचूक हथकंडा है। कुलहिन काला, बाकी सब सफेद ! हमरा का जाता है ? बस बनावटी शब्द न ,अउर इ बता !मुफत की कमाई किसे काटती है ? बस हमें उ राजनीतिक पार्टी का चुनावी एजेंडा ही तो अपने वाट्सअप ग्रुप में घुमाना है। इसमें हमरा का दोष ? अरे ! इ काम तो आजकल ब्लॉगजगत में अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे मुँहबोले कवि ,लेखक और व्यंगकार तक करने में लगे पड़े हैं और फिर हम तो केवल इ पार्टीव्यंजन वाट्सअप पर ही परोस रहे हैं। मैंने कक्का जी को डांटते हुए- अरे ! का बात करते हैं कक्का जी ,आप तो पूरे शेठिया गए हैं। तनिक इ बताइये।
घोटाला कौन करता है ?
कक्का जी - उ राजनीतिक पार्टी का मंत्री।
कलुआ -जनता के प्रति जवाबदेही किसकी ?
कक्का जी - उ पार्टी के मंत्री की।
कलुआ - तो संसद में कौन बैठा है ?
कक्का जी - उ पार्टी का सदस्य।
कलुआ - तो फिर उसके द्वारा किये गए उचित अथवा अनुचित कार्यों का ब्यौरा आप काहे देंगे ?
कक्का जी ( समझाते हुए ) - अरे कलुआ ! तू नाहक ही गुस्सा होता है अरे इसमें हमरी का गलती ! हमें तो ये वाट्सअप मैसेज और ब्लॉगों पर अमुक पार्टी के पक्ष में लेख अथवा कविता लिखने का पइसा मिलता है अउर का ! इसमें हर्ज़ ही का है। खैर बात करते-करते कक्का जी का घर कब आ गया पता ही नहीं चला। कक्का जी को उनके गेट तक छोड़कर मैं गुस्से में फनफनाते हुए वहाँ से जाने लगा। गोमती के तट पर बने ऊपरगामी पुल पर जैसे ही कदम रखा तभी मेरा वो टच-वच वाले स्क्रीन वाला फोन अपने पूरे दम-खम से मेरे पैंट के साइड वाले जेब को फाड़ने लगा। मैंने फोन झट से निकाला और देखा वाट्सअप यूनिवर्सिटी से एक सन्देश मेरी ओर लपलपा रहा था। मैंने सन्देश का अनावरण किया तो देखा कक्का जी का वो राजनीतिक पार्टी के एजेंडे से लबालब भरा सन्देश उनकी स्वरचित रचना के साथ मुझे मुँह चिढ़ा रहा था। मैं थोड़ा मुस्कराया और बोला - इ कक्का जी ! अबहीं न सुधरी। कहते हुए मैंने अपना टचस्क्रीन वाला वो जंतर-मंतर उसी गोमती में विसर्जित कर दिया और अपने कर्म का निर्वाह करते हुए अपने निवास स्थान की ओर चल दिया।
आदरणीया 'शशि' पुरवार जी
'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला की इस कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत करता है।
परिचय
नाम : आदरणीया 'शशि' पुरवार ( महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी जी द्वारा सम्मानित १०० महिला अचीवर्स सम्मान,२०१६ )
जन्म तिथि : 22 जून 1973 ई0 ।
जन्म स्थान : इंदौर, मध्य प्रदेश ।
शिक्षा : स्नातक- बी.एस-सी.विज्ञान।
स्नातकोत्तर- एम.ए.राजनीति, ( देवीअहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर ), तीन वर्षीय हानर्स डिप्लोमा इन कम्प्यूटर साफ्टवेयर एंड मैनेजमेंट,
भाषा ज्ञान - हिंदी, मराठी, अंग्रेजी
सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन
लेखन विधाएँ :
देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं में आलेख, व्यंग्य, गीत नवगीत,
ग़ज़ल, दोहे, कुण्डलियाँ, छंदमुक्त कविताएँ, तांका, चोका, माहिया, हाइकु , आलेख,
लघुकथा, कविताओं का सतत् लेखन एवं प्रकाशन।
प्रमुख प्रकाशन :
सार्थक पत्रिका, दैनिक भास्कर, बाबूजी का भारत मित्र, अपना भारत , समाज कल्याण
पत्रिका, हिमप्रस्थ, साहित्य दस्तक, लोकमत समाचार , नारी जागृति , गीत गागर,
वीणा, अविराम, हाइकु लोक, अभिनव इमरोज, दैनिक जागरण, निर्झर टाइम्स, दरभंगा
टाइम्स, रूबरू दुनियां, उदंती, उत्तर प्रदेश साहित्य संस्थान पत्रिका, भारत भारती - ऑस्ट्रेलिया
हरिगंधा, हिंदी चेतना, युग गरिमा, उत्कर्ष प्रकाशन, मधुरिमा, विधान केसरी, वृत
मित्र, उत्तरायण, जागरूक मेल समाचार पत्र झाँसी, सरिता, अट्ठहास पत्रिका,
शब्द सरिता, नेवा- नेपाल की पत्रिका, सरस्वती सुमन, उर्वशी, शब्द सरिता,
हस्ताक्षर, मधुराक्षर, सृजनलोक, हिंदी हाइकु, अनुभूति, त्रिवेणी, कवि मन,
परिकल्पना, प्रयास पत्रिका, सहज साहित्य, साहित्य शिल्पी, गद्य कोष, कविता
कोष, साहित्य रागिनी, युवा सुघोष, भारत मित्र, .........इत्यादि। अन्तर्जाल पत्रिकाओं में भी
रचनाएँ प्रकाशित। ब्लॉग सपने नाम से अंतरजाल पर लेखन।
समवेत संकलन : जिनमें रचनाएँ प्रकाशित हुईं -
1. 'नारी विमर्श के अर्थ' निबंध संग्रह। संपादन - रश्मि प्रभा
2. 'उजास साथ रखना' चोखा संग्रह। -- रामेश्वर कम्बोज
3. 'त्रिसुगंधी' गीत-नवगीत संग्रह।
4. 'आधी आबादी' हाइकु संग्रह।
5. 'स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता दशा और दिशा' हाइकु आलेख संग्रह।
6 . नयी सदी के नवगीत - गीत संग्रह संपादन - ओम प्रकाश सिंह रायबरेली
7 . सहयात्री समय के - गीत संग्रह संपादन - रणजीत पटेल
८. कविता अनवरत - गजल प्रकाशन अयन प्रकाशन
९.लेडीज डाट कॉम - व्यंग्य संग्रह
10. आधी आबादी दोहा संग्रह - संपादन रघुवेंद्र यादव
11. स्त्री का आकाश भाग 1 व भाग_2__पर्यावरण संरक्षण कविताएँ - ग्रीन अर्थ संगठन
१२. शब्द साधना - गीत संग्रह , - हिंदुस्तानी भाषा अकादमी
१३. समकालीन गीतकोष - गीत संग्रह - संपादन नचिकेता
१४. कविता कोष गीत
व्यंग्य संग्रह - व्यंग्य की घुड़दौड़ शीघ्र प्रकाशीय , अन्य काव्य संग्रह प्रकाशनार्थ
* विशेष *- फिल्म डायरेक्टर दर्शन दरवेश द्वारा कुछ कविताओं का पंजाबी
अनुवाद
सम्मान/ पुरस्कार :
1. हिंदी विश्व संस्थान और कनाडा से प्रकाशित होने वाली 'प्रयास' के सयुंक्त
तत्वाधान में आयोजित देशभक्ति प्रतियोगिता में 2013 की विजेता।
2.'अनहद कृति' काव्य प्रतिष्ठा सम्मान - 2014-15।
3. 'राष्ट्रभाषा सेवी सम्मान' अकोला- 2015।
4. हिंदी विद्यापीठ भागलपुर : 'विद्यावाचस्पति सम्मान' -2016।
5. 'मिनिस्ट्री ऑफ़ वूमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट' द्वारा भारत की 100 women's
Achievers of India 2016 सम्मान। महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी जी
द्वारा सम्मानित १०० महिला अचीवर्स सम्मान
6.'हरिशंकर परसाई स्मृति सम्मान' 2016 ।
७. *वुमन इन एनवायरमेंट: बालिका सर्वोदय और पर्यावरण **संवर्द्धन के
अंतर्गत *राष्ट्र स्तरीय महिला कविता प्रतियोगिता *2017 की विजेता .*
८. अखिल भारतीय पोरवाल महासंघ दिल्ली द्वारा प्रतिभा सम्मान २०१८
९. हिंदुस्तानी भाषा काव्य प्रतिभा सम्मान २०१८ - हिंदुस्तानी भाषा अकादमी दिल्ली
ब्लॉग - http://sapne-shashi.blogspot.com,
Email : shashipurwar@gmail.com
एक अनोखा साक्षात्कार : आदरणीया 'शशि' पुरवार जी
कृपया नीचे दिए गये लिंक पर जायें।
आदरणीया 'शशि पुरवार' जी की कुछ रचानाएं
धूप आँगन में खड़ी यूँ
लग रही कितनी अकेली
हो रही जर्जर दीवारें
धूर में लिपटी हवेली
शहर की तीखी चुभन में
नेह का आँगन नहीं है
गूँजती किलकारियों का
फूल सा बचपन नहीं है
शुष्क होते पात सारे
बन रहें है इक पहेली
धूप आँगन में खड़ी, यूँ
लग रही कितनी अकेली
छोड़ आये गॉँव में हम
कहकहों के दिन सुहाने
गर्म शामें तप रहीं है
बंद कमरों के मुहाने
रेशमी अहसास सारे
झर गए चंपा चमेली
धूप आँगन में खड़ी यूँ
लग रही कितनी अकेली
गर्मियों में ढूँढ़ते है
वृक्ष की परछाइयों को
पत्थरों पर लिख गयी, वह
प्रेम की रुबाइयों को
मौन क्यों संवाद सारे
माँ वही है इक सहेली
धूप आँगन में खड़ी, यूँ
लग रही कितनी अकेली
.... शशि पुरवार
२. शूल वाले दिन
अब नहीं मिलते डगर में
फूल वाले दिन
आज खूँटी पर टंगे हैं
शूल वाले दिन
परिचयों की तितलियों ने
पंख जब खोले
साँस को चुभने लगे फिर
दंश के शोले
समय की रस धार में
तूल वाले दिन
मधुर रिश्तों में बिखरती
गंध नरफत की
रसविहीन होने लगी
बातें इबादत की
प्रीत का उपहास करते
भूल वाले दिन।
आँख से बहता नहीं
पिघला हुआ लावा
चरमराती कुर्सियों का
खोखला दावा
श्वेत वस्त्रों पर उभरते
धूल वाले दिन।
- शशि पुरवार
३
" गीतों में बहना "
कभी कभी, अच्छा लगता है,
कुछ तनहा रहना।
तन्हाई में भीतर का
सन्नाटा भी बोले
कथ्य वही जो बंद ह्रदय के
दरवाजे खोले।
अनुभूति के,अतल जलधि को
शब्द - शब्द कहना
कभी कभी, अच्छा लगता है,
कुछ तनहा रहना।
बंद पलक में अहसासों के
रंग बहुत बिखरे
शीशे जैसा शिल्प तराशा
बिम्ब तभी निखरे।
प्रबल वेग से भाव उड़ें जब
गीतों में बहना।
कभी कभी, अच्छा लगता है,
कुछ तनहा रहना।
गहन विचारों में आती, जब
भी कठिन हताशा
मन मंदिर में दिया जलाती
पथ की परिभाषा
तन -मन को रोमांचित करती
सुधियों को गहना
कभी कभी, अच्छा लगता है,
कुछ तनहा रहना।
-- शशि पुरवार
चलिए ! चलते हैं साहित्य समाज को गौरवान्वित करती उत्कृष्ठ रचनाओं की ओर
हाईकू
नभ तरसा
तरसे सरोबर
जल के लिए
आँचल में सीप
तुम्हारी पलकों ने करवट ली
दुआ में हाँथ उठा
बीज ने कुछ माँग लिया
मेघ बरसे,
बच्चों वाले खेल
लटटू ,कंचे ,चंग ,लगौरी
बीते कल के रंग
बचपन कैद हुआ कमरों में
मोबाइल के संग।
लौटने की मजबूरी
मजबूरी, फिर भी लौटतीं बहारें - -
जाते - जाते, बरगलाए मुझे।
उम्र, यूँ तो बीत गई ठीक
ईद मुबारक़
अब जो भी हो
प्रेम तो जिन्दा रखना है
अपन दोनों को ----
दो पग साथ चले
दो पग पथ पर तुम क्या मेरे साथ चले......
अमलतास से
जो कमज़ोर दिखते हैं,
उन्हें अपनी ख़ूबियों के बावज़ूद
पत्थर खाने ही पड़ते हैं.
स्मृति शेष पिताजी
उठा है जब से उनका साया -
किसी को हम पर नाज नहीं है
कल थे पिता पर आज नहीं है -
माँ का अब वो राज नहीं है!!!!!!!!!!!!!
आओ मेघा, बरसो ना !
झंकृत होने दो अब सस्वर,
अंबर भावुक - सा हो जाए
धाराएँ बरसें झर झर झर ।
जीत लिया है सकल जहान
गोली खाता रहे जवान, सूली चढ़ता रहे किसान,
किताबों की दुनिया - 181
मुझे चुप्पियों से न मार यूँ कोई बददुआ ही तू दे भले
तेरी गालियां भी अज़ीज़ हैं मैं इन्हें रखूंगा संभाल कर
दीपिका घिल्डियाल की कविताए
सीख लिया था छुपाना
माँ की दी हुई संदूकची में कंचे छुपाये
गुड़िया के कपड़ों के बीच सिक्के
औरों की बात करो मत तुम , सब अपनी अपनी करते हैं ।
रूठने और मनाने के दिन खो गए
आपसी रिश्ता मानो जहर हो गया
जब सफर होता है तन्हा
और मंज़िलें होती गुम
नयन से तीर चलाये,उसे अदा कहिये
मीलों वॉक करके लौटतीं
भारत की बेटियों को
देखा है.....
आदरणीया 'अपर्णा' वाजपेई जी
आदरणीया 'अपर्णा' वाजपेई जी
टीपें
अब 'लोकतंत्र' संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार'
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आज्ञा दें !
'एकलव्य'
उद्घोषणा
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
धन्यवाद।
सभी छायाचित्र : साभार गूगल भईया
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आप सभी गणमान्य पाठकों व रचनाकारों के स्वतंत्र विचारों का ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग स्वागत करता है। आपके विचार अनमोल हैं। धन्यवाद