रचनाधर्मिता की 'स्वतंत्रता'
बड़ा अच्छा लगता है न,
सुनने में। क्यों सही कहा ना !
अब तनिक अपने आप से पूछिए !
क्या हम इस धर्म का ईमानदारी से निर्वाह
करते प्रतीत हो रहे हैं ? अथवा दूसरों के सुझाए
विषय पर अपने मूल उद्देश्यों से विमुख होते नज़र आ रहे हैं। सृजनशीलता किसी भी मानव के अपने विचार और स्वयं के अंतर्मन से प्रस्फुटित, निरंतर प्रवाहित होती वे लहरें हैं जिन्हें दूसरों के दिमाग़ पर आधारित विषयवस्तु पर आदेशानुसार प्रवाहित करना,
अपने भविष्य में श्रेष्ठ 'सृजन' के उद्गम पर स्वयं के द्वारा अंकुश लगाना है। न कि अपने श्रेष्ठता के 'मापदण्डों' को तय करना ! अब सोचना आपको है, मैं तो वही "लोकतंत्र" संवाद मंच वाला बड़बड़िया हूँ। हमेशा की तरह बड़बड़ाऊँगा और केवल आपको स्मरण दिलाऊँगा।
बड़ा अच्छा लगता है न,
सुनने में। क्यों सही कहा ना !
अब तनिक अपने आप से पूछिए !
क्या हम इस धर्म का ईमानदारी से निर्वाह
करते प्रतीत हो रहे हैं ? अथवा दूसरों के सुझाए
विषय पर अपने मूल उद्देश्यों से विमुख होते नज़र आ रहे हैं। सृजनशीलता किसी भी मानव के अपने विचार और स्वयं के अंतर्मन से प्रस्फुटित, निरंतर प्रवाहित होती वे लहरें हैं जिन्हें दूसरों के दिमाग़ पर आधारित विषयवस्तु पर आदेशानुसार प्रवाहित करना,
अपने भविष्य में श्रेष्ठ 'सृजन' के उद्गम पर स्वयं के द्वारा अंकुश लगाना है। न कि अपने श्रेष्ठता के 'मापदण्डों' को तय करना ! अब सोचना आपको है, मैं तो वही "लोकतंत्र" संवाद मंच वाला बड़बड़िया हूँ। हमेशा की तरह बड़बड़ाऊँगा और केवल आपको स्मरण दिलाऊँगा।
मत बाँधिए सृजन को !
उनके हल्के से लालच में
अंतर्मन जो हलचल उठती है
केवल सुनिए, उस आहट को
मैं तो ठहरा ! एक बड़बड़िया
एक रोज दिखाने आऊँगा
मैं पागल हूँ, है सत्य यही
तुझे 'सत्य' बताकर जाऊँगा !
"लोकतंत्र" संवाद मंच
साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में आपसभी का स्वागत करता है।
ईमानदारी का धंधा कोई गन्दा नहीं होता कभी,
ये भी एक रोजगार भर है , अब तो ये जान लो।
टीपें
अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार,
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आज्ञा दें !
"एकलव्य"
सभी छायाचित्र स्रोत : साभार गूगल
साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में आपसभी का स्वागत करता है।
हमारे इस सप्ताह की रचनायें हैं :
दिखेगें इन्द्रधनुषी रंग
बसारत कई खुश रंग की,
बसीरत की रंगों से
कपास के जंगल से उड़कर
असुंदर,रंगीन गुदगुदा गोला
युद्धरत आदमियों के बीच गिरा
असुंदर,रंगीन गुदगुदा गोला
युद्धरत आदमियों के बीच गिरा
मत टिकाओ
उम्मीद को अपनी
किसी लफ़्फ़ाज़ के सहारे,
उम्मीद को अपनी
किसी लफ़्फ़ाज़ के सहारे,
रंग बसन्ती छाया है
पुलकित उर हरषाया है
कन्त भी मेरे पास नहीं
मिलने की कोई आस नहीं
पुलकित उर हरषाया है
कन्त भी मेरे पास नहीं
मिलने की कोई आस नहीं
वहाँ न तो दिन होता है
न रात होती है,
न जश्न होता है
न बारात होती है..
न रात होती है,
न जश्न होता है
न बारात होती है..
ख़त में लिखा था घर आने का
मंसूबें गिनाया था छुट्टियां मनाने का
मन पसंद की सूची व्यंजन पकवान की
मंसूबें गिनाया था छुट्टियां मनाने का
मन पसंद की सूची व्यंजन पकवान की
र्थ अनर्थ है,अक्सर बेटा !
शब्द अर्थ,रूपान्तर बेटा !
शब्द अर्थ,रूपान्तर बेटा !
लक्ष्य भी हमें साधता है
जब हम हताश हो
उम्मीद की परिधि से हट जाते हैं
जब हम हताश हो
उम्मीद की परिधि से हट जाते हैं
कैसे कहूँ उस डगर की बात
चलना छोड़ दिया जिस पर
अब याद नहीं
चलना छोड़ दिया जिस पर
अब याद नहीं
तुम्हारे गुस्से भरे
बनते-बिगड़ते चेहरे की ओर
देख पाने का साहस नहीं कर पाती हूँ
बनते-बिगड़ते चेहरे की ओर
देख पाने का साहस नहीं कर पाती हूँ
यह दिन में भी
दिखता है ।
फर्क बस इतना है
रात वाला चाँद,
दिखता है ।
फर्क बस इतना है
रात वाला चाँद,
हर कोई
सुकून की तलाश में
भटक रहा है
नई पुस्तक मिली
हमारी नयी किताब आयी है |
कहानियों की पहली किताब |
हिन्दी-साहित्य में सेना और सैनिक
हमेशा से एक अछूता विषय रहा है |
गिनी-चुनी कहानियाँ हैं सैन्य-जीवन पर...
गिने-चुने उपन्यास हैं | एक अदनी सी कोशिश है
उसी कमी को थोड़ा कम करने की | कुछ कहानियाँ
आपलोग इस ब्लौग पर पहले ही पढ़ चुके हैं | कुल
इक्कीस कहानियाँ हैं....कुछ छोटी और कुछ बड़ी, जिनमें से
चंद पहले ही हंस, वागर्थ, पाखी, परिकथा, कथादेश, लमही, जनसत्ता, अहा ज़िन्दगी जैसी पत्रिकाओं में आ चुकी हैं | अब ये सब की सब संकलित होकर राजपाल प्रकाशन से किताब के रूप में आप सब के सामने है :-
कभी पसारो
बाहें नभ-सी तुम,
मुझे भर लो
बाहें नभ-सी तुम,
मुझे भर लो
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी
में एक वर्कशॉप के सिलसिले में वहां
15 दिन रहने का मौक़ा मिला. वहां उर्दू
प्रेमियों से मिलकर बहुत अच्छा लगा. ज़ुबान
की मिठास, शायिस्तगी और नफ़ासत में तो वो लखनऊ वालों को भी मात करते थे.
जाने प्रियतम कब आ जाएँ,
खोले रखना द्वार !
खोले रखना द्वार !
निर्मल, अविकारी सी ,
कहीं जन्मती कहीं मिल जाती -
नियति की मारी सी !!
कहीं जन्मती कहीं मिल जाती -
नियति की मारी सी !!
नयनाभिराम सुलोचना थी वो,
शब्दों में मुखरित विवेचना थी वो!
नयनों से वो अन्तर्धान हुई!
शब्दों में मुखरित विवेचना थी वो!
नयनों से वो अन्तर्धान हुई!
साहब ... यही किलेबंदी है ....
शह है ... मात है .... !!
शह है ... मात है .... !!
बहुत दिन हो गये
सफेद पन्ने
को छेड़े हुऐ
चलो आज फिर से
सफेद पन्ने
को छेड़े हुऐ
चलो आज फिर से
ईमानदारी का धंधा कोई गन्दा नहीं होता कभी,
ये भी एक रोजगार भर है , अब तो ये जान लो।
अपने ही ख्यालों में गुम मीनू चौंक उठी, घर के
भीतर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, सूना आंगन उसके मन को कचोट रहा था,
विचारधारा के इस कथित
झगड़े में फायदा सरकार और
विपक्ष के आलावा आजकल अपराधियों
को भी हो रहा है | कोई नीजि दुश्मनी हो, खुन्नस हो ,
चर्चा में आना हो , अपनी राजनीति चमकानी हो या
कोई नीजि पूर्वाग्रह हो | अपराधी आराम से अपने अपराध
को विचारधारा का चोला पहना अपराध कर लेता है
प्रजातंत्र के मन्त्र से ...
जनता है बेहाल !
खाल पहिन के शेर की...
चालें चले श्रगाल !
जनता है बेहाल !
खाल पहिन के शेर की...
चालें चले श्रगाल !
काश !!!
तुम्हारी ख्वाहिश का,
मैं कुछ कर पाता.
तुम्हारी ख्वाहिश का,
मैं कुछ कर पाता.
रखे व्यर्थ ही भींच के, मुट्ठी भाग्य लकीर।
कर ले दो दो हाथ तो, बदल जाय तकदीर।।
कर ले दो दो हाथ तो, बदल जाय तकदीर।।
आदरणीया शुभा मेहता
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