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सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

३१..........दर्द के मायने

दर्द के मायने हमारे 
जीवन में विविध रूप लिए 
हुए विभिन्न दिशाओं में अपने -अपने 
स्वार्थ के लिए निरंतर गतिमान हैं। कल मुझे 
चोट लगी पड़ोसी देखकर ठहाके लगाता नजर 
आया। संभवतः उसे मेरे दर्द का एहसास नहीं था। 
परसों उसको चोट लगी चीख-चीखकर बवाल मचा दिया। 
परन्तु उसके पीड़ा का अनुभव मुझे हो रहा था। जाहिर है उस दौर से कल 
मैं भी गुजरा था। देश में सरकारें कायदे -कानून बनाती हैं। कुछ के लिए असहनीय ,पीड़ादायक।  कुछ के लिए, छोड़ो ! मेरा क्या जाता है। भूलिए नहीं आज जो आपको तकलीफदेह नहीं प्रतीत होता संभव है ! कल किसी न किसी रूप में आपके लिए अवश्य ही नुकसानदेह होगा। हाँ ! बात कुछ और है कुछ विलंब होगा ,पर अंधेर ही होगा। सरकारी बज़ट आया है हर लोगों की आम राय ! कुछ हताहत ,कुछ बेहद निराश और कुछ को मुझे क्या लेना इस मग्झ-मारी से ! मेरी तो दाल-रोटी चल ही रही है ,मुझे क्या लेना -देना। दूसरा बज़ट, अरे ! सरकार ने हमारे साथ बड़ा अन्याय किया हमारे मुँह का निवाला ही छीन लिया । याद रखिए ! आग अगर पड़ोस में लगी है निश्चित है ! लपटें आपके भी पर्दे जला देगी, हाँ यह जरूर है पड़ोसी के घर जलने के बाद। परन्तु पड़ोसी आपसे बेहतर होगा ,क्योंकि उसकी चींखे सुनने के लिए आप बगल वाले घर में मौज़ूद होंगे ! पर आपकी चींखे सुनने वाले पड़ोसी कब के कालकलवित हो चुके होंगे। अब आप स्वयं इतने ज्ञानी हैं कि विचारों के आशय भांप सकते हैं ! मैं तो मात्र बड़बड़िया हूँ। कल फिर मिलूँगा किसी चौराहे पर लगी चाय -पान की दुकान पर बक-बक करते हुए आपको ! नए टॉपिक के साथ।
"लोकतंत्र" संवाद मंच के साप्ताहिक 
सोमवारीय अंक में आप सभी गणमान्य 
रचनाकारों एवं पाठकों का हृदय से स्वागत है।

  •   रचनाओं की संख्या अधिक होने के कारण लिंक चार कड़ियों में  प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
 हमारे इस सप्ताह के रचनाकारों की प्रथम कड़ी :

  •  आदरणीय रविंद्र सिंह यादव 

 बसंत (हाइकु )
खिला बाग़ीचा
फूलों पे चढ़ा रंग
रंगी है भोर

  • आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा 
   खुदातर्स
 परनिन्दा, आत्मप्रशंसा, अहंकार से दूरी रखते है जो,
उद्भवन करते हों जो सद्गुण का,

  • आदरणीय लोकेश नदीश
  सुबकते रहते हैं

याद से बारहा तेरी उलझते रहते हैं
सिमटते रहते हैं या फिर बिखरते रहते हैं


  • आदरणीय राजीव जोशी
  फ़िज़ूल ग़ज़ल
 है मुहब्बत का अजब ढंग निराला कैसा
कोई आँखों से ही बस दिल में उतर जाता है।


  • आदरणीया अभिलाषा जी
  .वो अदा हो तुम 
  इतना आसां न था
ये सफ़र तय करना
तेरे बग़ैर ये जीवन 


  • आदरणीया  जयश्री वर्मा   
 हम करें तो गुस्ताखी
 आते-जाते मेरी राहों पर,
आपका वो नज़रें बिछाना,

  • आदरणीया शैल सिंह
  ऐसा मय पिला गईं दो आँखें चलते-चलते,
 हर्फ़ उल्फ़त के पढ़ लेना ग़ौर से
लफ्जों की पोशाक पेन्ही हैं ऑंखें


उसे रहूँ मैं याद 
किसी न किसी शक्ल में 

  • आदरणीया  जेन्नी शबनम
मरघट 
 ऐ उम्र! अब चली भी जाओ 
बदल न पाओगी दास्ताँ जीवन की।  


  • आदरणीया रश्मि शर्मा
  माघी पूर्णिमा का चंद्रग्रहण.....
देखा मैंने चाँद को 
बढ़ते-घटते



 रचनाकारों की दूसरी कड़ी :

  • आदरणीया मधुलिका पटेल 
  • आदरणीया शालिनी रस्तोगी 
  • आदरणीय विजय बोहरा 
  • आदरणीया अनिता निहलानी 
  • आदरणीया श्वेता सिन्हा 
  • आदरणीया मीना भारद्वाज 
  • आदरणीया अनिता ललित 
  • आदरणीया प्रतिभा कटियार 
  • आदरणीया 'रेवा' जी 
  • आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी
 अजनबी अजनबी
 यह जीवन जब
भीड़ में गुम हो जाने के बाद
धीरे - धीरे तन्हा होता है


 समर्पण 
तुम ही कहो ,अब मेरे देवता 

 ईगो
अजीब सी बात है 
समझ नहीं पाता मैं 

  कल जो चाहा आज मिला है


मंजिल की है चाह जिन्हें भी
कदमों को किसने रोका है,


 कोमल मन हूँ मैं 
 ज्योति मैं पूजा की पावन
गीतिका की छंद हूँ मैं


  "भड़ास"  
  भौगोलिक परिवेश में
धरती की हलचल ।


 डस्टबिन -लघुकथा 


 पुकार लेना बारिश 

 कई बार चाहा अपना नाम बदल लूं, 
नदी रख लूं अपना नाम. कभी जी करता 
कोई बारिश कहकर पुकारे तो एक बार. बहुत 
दिल चाहता कोई गुलमोहर कहता कभी. कभी मौसम  

   डर

मन में एक अजीब 
सी हलचल 

 दिल में कोई लहर उठी सी है
 देखता  जा  रहा  हूँ  मुद्दत   से ।
सुर्ख  होठों पे  तिश्नगी  सी  है ।।




 रचनाकारों की तीसरी कड़ी :

 आदरणीया मीना शर्मा 
आदरणीया रेणु बाला 
आदरणीया किरण मिश्रा 
आदरणीय ओंकार जी 
आदरणीय ज्योति खरे 
आदरणीया रिंकी राउत 
आदरणीया निभा चौधरी 
आदरणीया महिमा श्री 
आदरणीय विश्वमोहन जी 
आदरणीया साधना वैद 
आदरणीया अपर्णा त्रिपाठी

 देखो
अप्रतिम सौंदर्य के साथ
सम्पूर्ण क्षितिज पर

 भरी बदरी में बंसवारी के भीतर
भुवन के भव्य भीत महल में,

  आदमी यूँ हो रहा बदनाम है।
मर रही संवेदना हर गाम है।

मुरली वाले तू सुनले पुकार
नैया मेरी, फंस गई मजधार

 बहुत दिनों से हूँ
मैं पतझड़ के
इंतजार में

अपराधियों की दादागिरी
साजिशों का दरबार
वक्त का जालिम करिश्मा
अंधी है सरकार

 अगर यह भी संभव नहीं,
तो आओ, ख़ुदा से कहें 

 घनघोर अंधेरे में जो दिखती है,
वो उम्मीद है जीवन की

 ये कौन   तूलिका  है ऐसी -
जो  ज़रा नजर नहीं आई है ?
पर  पल भर में ही देखो   

 प्रेम नहीं, शैय्या का सुमन,
वह पावन पुष्प देवघर का !


सुनो जी  
अपना सामान बांध लो  !

  रचनाकारों की चौथी कड़ी :

आदरणीया रेखा जोशी 
आदरणीया नीतू ठाकुर
आदरणीय नीरज 'नीर'
आदरणीया पूनम जी 
आदरणीया आशा सक्सेना 
आदरणीया रक्षा सिंह "ज्योति"
आदरणीया कविता रावत 
आदरणीय राकेश कुमार श्रीवास्तव 'राही'

 खिले खिले  रंगों ने महकाया उपवन
नन्ही ओस की बूँदों से नहाया उपवन

सूरज की प्यासी  किरणे जब 
बारिश से मिलने जाती है 

सूर्य वही चाँद वही 

होठों को भींच लेने से क्या होगा 
तुम्हारा नाम जो 

  सर्दी का मौसम लगता बड़ा प्यारा
इसी प्रलोभन ने मुझे मारा

माँ इंतज़ार है मुझे 
तेरी दुनिया में आने का 
तेरी गोद में सोने का 
  देख तेरी प्यार भरी निगाहें
दिल तुझमें डूबने लगता
इतना प्यार भरा है दिल में
 बादल छटें,
निकला है सूरज,
ठंड भी गई। 


टीपें
 अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, 
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित 
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

आज्ञा दें !


सभी छायाचित्र : साभार गूगल 

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