हम नव वर्ष की प्रतीक्षा में हैं।
ज़ाहिर है होना भी चाहिए परन्तु प्रश्न यह है वह कौन व्यक्ति है ?
जिसे नया हो या पुराना, ख़ुशी हो या ग़म
कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
महलों में रहने वाले वे धनाढ्य लोग !
जिन्हें पटाखा जलाने से फुर्सत नहीं
अथवा
वे जिन्हें नया वर्ष मंगलमय टाईप करने से परहेज़ नहीं !
अथवा वे
अरे ! सुनती हो आज सौ रुपये मिल ही गए ,
मंडी में सामान ढोने का काम मिल गया। और सुनो !
आज रोटी के साथ तरकारी भी बना लेना।
बहुत दिन हो गए,दर्शन नहीं किये इन दोनों के।
चलिए अच्छा हुआ !
मैं भी कुछ बनाने जा रहा हूँ।
आप भी आनंद उठाइये तंगी का !
स्वागत है आपका
''लोकतंत्र'' संवाद
पर
( आदरणीय राकेश श्रीवास्तव 'राही' जी की प्रेरणा से )
आज के विशिष्ठ रचनाकार हैं :
- आदरणीया शशि पुरवार
- आदरणीया आशा सक्सेना
- आदरणीय रविकर जी
- आदरणीया प्रीति सुराना
- आदरणीया अनीता लागुरी ( नवोदित कवित्री )
- आदरणीय सुशील जोशी
नव पीढ़ी ने रच दिया ,यह कैसा इतिहास
बूढ़ी साँसें काटतीं ,घर में ही वनवास
हरदम सुरक्षित वह रही सानिध्य में परिवार के।
घूमी अकेले कब कहीं वह वस्त्र गहने धार के।
मैं बहती ही रही हूँ ,जल सी सदा
पत्थरों ने निभाई,अपनी भूमिका।
कुछ अनचाहा था....
उठा अंधेरे का फ़ाएदा
बना गुनाहों की गठ्ठरी
क्योंकर कोई फेंक गया था..?
हिमालय में अब सफेद बर्फ
दूर से भी नजर नहीं आती है
काले पड़ चुके पहाडों को
शायद रात भर अब
नींद नहीं आती है
निकल पड़ा
एक कवि
हिमालयों से
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पत्थरों ने निभाई,अपनी भूमिका।
कुछ अनचाहा था....
उठा अंधेरे का फ़ाएदा
बना गुनाहों की गठ्ठरी
क्योंकर कोई फेंक गया था..?
हिमालय में अब सफेद बर्फ
दूर से भी नजर नहीं आती है
काले पड़ चुके पहाडों को
शायद रात भर अब
नींद नहीं आती है
कविता
करते करते निकल पड़ा
एक कवि
हिमालयों से
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