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बुधवार, 6 मई 2020

८७..... कल हमरा धमाकेदार चप्पल टूट गया रहा!




दरणीय कक्का,
चरणों में प्रणाम स्वीकारिए!

हाल-चाल कुशल-मंगल है। हस्तिनापुर की गर्मी बड़ा पसीना बहा रही है। वैसे गांधारी काकी कुंती बहन के साथ मज़े में हैं। परंतु चार दिन पहले गांधारी काकी को एकठो सपना आया रहा और ऊ रतिया में उठकर चिल्लाय पड़ीं! 
"गो कोरोना जो!"
"गो कोरोना जो!"
"का बताएं!" 
"हम तो चौंधिया के उठ बैठे!"
हमने काकी को बहुत समझाया कि हमें कउनो ख़तरा नाही है ऊ कोरोना से। हम तो मंत्री जी के बँगले पर हैं। परंतु ऊ नाही मानीं और कहने लगीं कि उन्हें पटना जाना है कउनो क़ीमत पर। हम भी का करते भागे ससुर हस्तिनापुर रेलवे स्टेशन की तरफ़ मुफ़त वाले टिकट के लिए जहाँ पहुँचकर पता चला कि टिकट कउनो मुफ़त-वुफत में नाही मिल रहा बल्कि वहाँ तो धृतराष्ट्र बाबा का फ़रमान रहा कि ससुर एक-एक प्रजा से चवन्नी तक वसूला जाए मगध पहुँचने पर मगधनरेश से। औरे यदि मगधनरेश कउनो प्रजा के टिकट का पइसा न चुका पाए तो उस प्रजा का कच्छा तक नीलाम कर दिया जाए हस्तिनापुर के करनॉट प्लेस पर शाम के पहरे! अंत में हमरे बहुत समझाने पर गांधारी काकी मान गईं और अपना डेरा-तम्बू अभी तक हस्तिनापुर के कन्हैयापुर में गाड़े पड़ी हैं।                   
               आगे ख़बर बड़ा दुखद है! कल हमरा धमाकेदार चप्पल टूट गया रहा। ससुर मोची की सघन तलाश हस्तिनापुर के जंगलों में ढिबरी-बत्ती लेकर की गई परंतु सब बेकार गया। अंत में ले-देके एकठो मरियल-सा मोची दिखाई दिया जो टुकड़े-टुकड़े गैंग वाले विश्वविद्यालय के गेट पर बैठा रहा। ससुरा शक्ल से ही कम्युनिष्ट लग रहा था! 
और रह-रहकर समता मूलक समाज के नारे भी लगा रहा था। बात किया तो पता चला, जन्मेजय साहेब उसकी लड़ाई सत्तर बरस से कोरट मा लड़ रहे हैं। मसला कुछ ई रहा कि,

पिता धृतराष्ट्र पुत्रमोह में आकर पूरा हस्तिनापुर उजाड़ने पर तुले हुए हैं! बीच-बीच में वह मरियल मोची पुरानी बिसलेरी की बोतल से मुन्सिपलिटी के सौजन्य से लगाए गए टुटपुँजिया नल का पानी पी-पीकर मामा शकुनी को भी दस-पाँच गाली रशीद करता चला जा रहा था। 

     आइए! अब आपको सीधे ले चलते हैं हस्तिनापुर के झटपट दरबार में। बने रहिए मेरे साथ। 
नमस्कार! 
मैं राजा कवीश कुमार, 
       "सत्ता जब बहरी हो जाए तो भूखी-नंगी जनता का चिलचिलाती धूप में सड़कों पर इस महामारी के कठिन दौर में निकलना लाज़मी हो जाता है। जहाँ एक तरफ़ हस्तिनापुर राज्य में फल-सब्ज़ियों की दुकानें ठेलों,शॉपिंग मॉलों से उठकर मंदिरों और मस्ज़िदों में पलायन कर गईं! हमारे विशेष संवाददाता ने बताया है कि राष्ट्रहित में  फल और सब्ज़ियों की ख़रीद-फरोख़्त में अब ए.टी.एम. की जगह आधारकार्ड धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है और वहीं हस्तिनापुर के देशभक्त 'कोरोना प्यारी महामारी' के आतंक से सफ़ेदपोश मुँह पर  नक़ाब पहनकर राज्य के मैख़ानों में घूम रहे हैं! 

     उधर बाबा धृतराष्ट्र जहाँ एक तरफ़ इस विकट 'महामारी कोरोना प्यारी' की चोली खींच रहे हैं और अपनी भूखी-नंगी जनता को राजकोष ख़ाली हो जाने का हवाला देते नज़र आ रहे हैं वहीं दूसरी तरफ़ हस्तिनापुर का प्राचीन, भव्य-भवन मुगल-ए-आज़म द्वारा बनाए जाने की बात कह उसे ज़मीं-दोज़ कर नये मल्टीप्लेक्स राजभवन का निर्माण कराने का मसौदा बापू के तीनों बंदरों के बीच रखते नज़र आ रहे हैं। 

       चिंता की बात यह है कि, बापू के ये प्यारे तीनों बंदर आजकल थोबड़े की किताब पर मस्त हैं या तो ट्विटर हैंडल पर पस्त हैं। इतनी व्यस्तता के चलते ये बंदर बाबा धृतराष्ट्र के मसौदे की बारीकियाँ समझने में अक्षम से प्रतीत होते हैं जबकि परम-पूज्य बाबा धृतराष्ट्र ने अपने हर-फ़न-मौला ट्विटर हैंडल के माध्यम से बिना समय गँवाए साफ़तौर पर प्रजा को यह बताया है कि नया मल्टीप्लेक्स राजभवन को बनाने में बीस हज़ार करोड़ चिल्लर डॉलर राज्य के प्रजा की गाढ़ी कमाई का ख़र्च बैठेगा और दूसरी तरफ़ राजतंत्र के कुनबे के अर्धनग्न कर्मचारियों के विभिन्न मदों वाले भत्ते काटे जाएंगे। 

       प्रजा और राज्य का भार सँभालने वाले परम प्रतापी, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के सफ़ेदपोश वंशज सदृश,शास्त्री जी की खादी टोपी पहनने वाले और राज्य के भूखी-नंगी प्रजा को टोपी पहनाने वाले अतिविशिष्ट नागरिकों के वेतन-भत्ते में इज़ाफ़ा  किया जाएगा, और दुर्योधन के पाँच-सौ-दो पताका छाप जाँघिए का पैसा ग़रीब प्रजा के हित में डाला जाएगा!

 बाबा धृतराष्ट्र ने गोद लिए न्यूज़ चैनल को बताया-
"हम ग़रीब प्रजा का दर्द भली-भाँति समझते हैं इसलिए हमने इस 'महामारी कोरोना प्यारी' से निपटने का उपाय ढूँढ निकाला है!"
"अब हम रेड-जोन में आने वाले छोटे राज्यों में एक-एक तालाब खुदवाएंगे और उसमें गाँधी के डांडी-यात्रा वाला नमक स्वादानुसार मिलवाएंगे।"
"राज्य के प्रत्येक नागरिक को मिर्चा खाना मना होगा जिसके लिए हम 'रैपिड ऐक्शन बल' की दस हज़ार टुकड़ियाँ भेजेंगे ताकि पानी का समुचित बँटवारा किया जा सके!"
"अनाज से बनी दारू विदेशों में दवा के तौर पर भिजवाई जाएगी जिससे कि हमारे मित्र-राष्ट्रों की संख्या में दिनों-दिन इज़ाफ़ा हो सके।"

"अरे भइ!"
"चप्पल सिल गई कि पूरी महाभारत हमें यहीं सुना दोगे!"

"अरे साहब!"
"हम ग़रीब आपको क्या सुनाएँगे!"
"हम तो ई भूखमरी में अपने ही पेट की आवाज़ तक नहीं सुन पाते।"
"ससुर दिनभर गैस बना करती है!"
"लो बाबू जी!"
"हो गई तैयार तुम्हरी 'लोकतंत्र की चप्पल'!"
"घिसो इसे 'पाँच बरस' हस्तिनापुर के जनपथ पर!"      
      

                    'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-३  में प्रवेश कर चुके हैं जो दिनांक ०१ /०४ /२०२० (बुधवार) से प्रभावी है।

'लोकतंत्र संवाद मंच' 
आप सभी पाठकों का स्वागत करता है। 

इस भाग में चयनित कुछ स्तरीय रचनाएं इस प्रकार हैं। 

१. मरहमी स्पर्श

मुझे जुगनुओं के
द्वीप की तरह

हर बार,

२.साबरमती आश्रम 

 युवाओं में उनके प्रति जो रोष है,
उसका भी जिक्र हुआ. गांधीजी के बारे में आज
की पीढ़ी कितना कम जानती है, सुनी-सुनाई बातों से वे अपनी राय बना लेते हैं. 

३.लॉकडाउन  

 कतई ऐसा न था, जैसा मैं आज हूँ,
जैसे पहेली, या मैं इक राज हूँ,
बिल्कुल, अलग सा,
तन्हा, सर्वथा लाॅकडाउन हूँ,
बुत इक अलग , मैं बन गया हूँ !

४. अपने आसपास की बातें करती कहानियाँ

 गिरजा कुलश्रेष्ठ जी को उनके ब्लॉग के
माध्यम से कई साल पहले से जानती हूँ लेकिन उनसे पहली
मुलाकात इसी महीने फरवरी में इंदौर महिला साहित्य समागम में हुई।

५. कहानी : अनकहा दर्द

 निकेत स्वप्नलिखित सा
कहीं दूर क्षितिज में आकाश और धरा
को एक दूसरे में समाहित होते देख रहा था ..... 

६.आखिर कब तक ? (कहानी) 

 "पापा मैं दो घंटे में ज़रूर लौट आऊँगी। मेरी कुछ फ्रेंड्स मुझे
अलग से बर्थडे ट्रीट दे रही हैं। वहाँ से लौट कर मैं अपने घर के फंक्शन में शामिल हो जाऊँगी।
… प्लीज़ पापा!... मम्मी, पापा को बोलो न, मुझे परमिशन दे दें।" -धर्मिष्ठा ने आजिज़ी करते हुए कहा।

७.काला टीका,माँ और संयोग

 "अब मेरा बिटवा और अधिक मन लगाकर पढ़ेगा। पढ़-लिखकर गुरूजी बनेगा।"
"लेकिन अँग्रेज़ी माध्यम के विद्यालय का शुल्क वहन करने की हमारी क्षमता नहीं है।

८.   मैं श्रमिक --- कविता --

 इंसान हूँ मेहनतकश मैं -
नहीं लाचार या बेबस मैं !
किस्मत हाथ की रेखा मेरी
रखता मुट्ठी में कस मैं !!

९. माँ और उसकी कोख 

 दादा की बेरंग सोच,
दादी के बेढंग बोल,
पिता की अनकही वेदना,
काकी की नष्ट होती चेतना,
को देखकर ;

साहित्य विशेष कोना 
'साहित्य विशेष कोना' के अंतर्गत हम आपको सदैव अनोखी प्रतिभा से मिलवाते हैं।

'सवा दो अक्षर'  

मैंने कहानियाँ ज़्यादा नहीं लिखी हैं।


आदरणीय ज्योति खरे जी की कविता उन्हीं के स्वर में 

उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
व्यक्ति यदि  हमारे विचारों से निजी तौर पर 
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए। 
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु 
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
 है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है । 
धन्यवाद। 
 टीपें
 अब 'लोकतंत्र'  संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार '
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।


आज्ञा दें!



आप सभी गणमान्य पाठकजन  पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर  साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा। रचनाओं  के क्रम  सुविधानुसार लगाये गए हैं।   

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर संयोजन के लिए साधुवाद
    सभी रचनकारों को बधाई
    मेरे लिंक को सम्मिलित करने का आभार
    सादर

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  2. ज्योति खरे जी की आवाज से रूबरू कराने के लिये साधुवाद। सुन्दर अंक।

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  3. लोकतंत्र संवाद मंच को बहुत बहुत शुभकामनायें, पठनीय रचनाओं की खबर देने के लिए शुक्रिया, मुझे भी इस अंक में शामिल करने हेतु आभार !

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  4. इस मंच को नमन तथा इन चयनित रचनाओं की सूची में मुझे भी सहभागी बनाने हेतु हृदय से आभार ।

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  5. मंच को शुभकामनायें व साधुवाद!... सहलेखकों तथा पाठकों को नमस्कार! चयनित रचनाओं की सूची में मेरी रचना देख कर प्रसन्नता हुई। तदर्थ आभार व्यक्त करता हूँ।

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  6. अब तो कोरोना से अधिक धृतराष्ट्र और उनके भोले भाले मंत्रीयों से डर लगता है। अच्छी बात यह है कि चप्पल बन गयी नही तो काम कैसे चलता?
    आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
    वाह! एक के बाद एक लोकतंत्र संवाद का यह मंच लाजवाब रचनाओं और शानदार प्रस्तुति से सुसज्जित होकर एक नए ही आयाम पर जा रहा है। इतनी शानदार रचनाओं को पढ़ने का अवसर मिलना वह भी सब एक से बढ़कर एक और हर अंक में यह जानने की भी उत्सुकता रहती है कि आज यूट्यूब से आप क्या लाए होंगे?आदरणीय खरे सर की मज़दूरों पर लिखी यह मार्मिक कविता हृदय को छू गयी,आंखें नम कर गयी। ' साहित्य विशेष कोना ' के अनूठे प्रयोग हेतु आपको ढेरों शुभकामनाएँ। वास्तव में आदरणीय अनूप सर सराहना तो बनती है। और आपकी भूमिका जो हर बार थोड़ा गुदगुदाते कुछ अहम सवाल उठा जाती है। आप जिस निष्ठा से साहित्य सेवा में लगे हैं आदरणीय सर यह मंच उसका प्रमाण है। आपकी यह लगन हम सबको प्रेरित करती है।
    लोकतंत्र संवाद मंच यूँ ही आगे बढ़ता रहे इसी कामना के संग हार्दिक बधाई सादर प्रणाम 🙏

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  7. वाह बेहतरीन प्रस्तुति 👌👌👌👌

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  8. व्यंग्य-लेखन की उम्दा बानगी पेश करता शानदार व्यंग्य। यह व्यंग्य आपको समर्थ व्यंग्यकार की श्रेणी में स्थापित करता है अतः व्यक्तिगत हमलों और खिल्ली उड़ाने की ओछी प्रवृत्ति से ख़ुद को दूर रखते हुए साहित्य-सृजन में आगे बढ़ना श्रेयस्कर होगा।



    हस्तिनापुर की हलचल को गांधारी के सपने के माध्यम ऐसी कल्पना के साथ प्रस्तुत किया है जो आज भारत की हक़ीक़त है। व्यंग्य में सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में छाए ज्वलंत मुद्दों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर भी तीखा कटाक्ष एवं धारदार चिंतन उभरकर पाठक के मन-मस्तिष्क में हलचल पैदा करता है।



    व्यंग्य-लेखन साहित्य की एक विशिष्ट कला है जहाँ विनम्रतापूर्वक विसंगतियों की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए चिंतन प्रस्तुत किया जाता है जो रीति-नीति की निर्माण प्रक्रिया का आधार बनता है। व्यक्ति का हँसकर सचाई स्वीकार लेना व्यंग्य की सफलता माना जाता है। व्यवस्था के पोर-पोर में धुन लग जाय तब व्यंग्य ही उसका इलाज करने में सक्षम है।

    मन प्रसन्न और खिन्न होना व्यंग्य के प्रभावी पक्ष हैं।

    बधाई एवं शुभकामनाएँ। लिखते रहिए।



    इस अंक में बेहतरीन रचनाओं का संकलन किया गया है। मेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु बहुत-बहुत आभार ध्रुव जी।

    आदरणीय ज्योति खरे साहब के स्वर में वीडियो के माध्यम से बेहतरीन रचना पाठ।

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  9. प्रिय ध्रुव , आज ज्यादा लिखने में समर्थ नही, पर इस रोचक व्यंग ने साबित कर दिया कि व्यंग लेखन साहित्य को एक समर्थ विचारशील व्यंगकार मिल गया है। एक टिकट के लिए भुगतभोगियो का कच्छा तक नीलाम करवाने वाले सत्ताधारी, जनता को कब तक मुर्ख बनाकर ,अपना उल्लू कब तक सिद्ध करते रहेंगे , समझ नही आता। सभी रचनाएँ शानदार चयनित की गयी हैं।
    ज्योति सर की भावपूर्ण रचना वीडियो में सुनकर अच्छा लगा ।बहुत ही चिंतनपरक रचना है ।हार्दिक बधाई इस लाजवाब अंक के लिए

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  10. समस्त आदरणीय/आदरणीया रचनाकारों को मेरा सादर नमस्कार ।
    लोकतंत्र संवाद मंच को युवा(नवागन्तुक)/अनुभवी रचनाकारों की रचनाओं को एक साहित्यिक मंच प्रदान करने लिए साधुवाद । मेरी तरफ से सादर धन्यवाद जो आपने मेरी रचना मां और उसकी कोख को भी इस अंक में शामिल करने हेतु ।

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आप सभी गणमान्य पाठकों व रचनाकारों के स्वतंत्र विचारों का ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग स्वागत करता है। आपके विचार अनमोल हैं। धन्यवाद