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बुधवार, 27 मई 2020

९०.. जब बुद्धिजीवी लेखक गधे को गधा कहना छोड़ दे!





"जब बुद्धिजीवी लेखक गधे को गधा कहना छोड़ दे और भेड़िए को मेमना बताना प्रारंभ कर दे, तब समझ लीजिए साहित्य के बुरे दिन चल पड़े हैं।"
'लोकतंत्र संवाद मंच'
'नई प्रतिभाओं की खोज' 
के अंतर्गत आज हम दो नये रचनाकारों का इस प्रायोगिक मंच पर तहेदिल से स्वागत करते हैं।

 आप दोनों रचनाकारों का 'लोकतंत्र संवाद मंच' हार्दिक अभिनंदन करता है।


१. आदरणीय अनिल यादव जी 

अनिल यादव जी की एक रचना उनके ही फेसबुक वाल से 

ब नहीं करता मैं मुहब्बत की बातें
सामने एक मजनूँ फटेहाल आ रहा है

ऐ ज़िंदगी अब छोड़ दे तू सपने देखना
इधर-उधर से अब बवाल आ रहा है

वादे उसके, उसको कैसे याद दिलाऊँ मैं
जवाबों के बदले अब सवाल आ रहा है

ख़ामोशी से गया था वो रक़ीब के पास
मगर अब लौटकर वो बेहाल आ रहा है

इस जाड़े में सूरज भी छुप गया है कहीं
जिसे देखिए, वो पस्त चाल आ रहा है

न करो सियासत की बातें मेरे यारों अब
नाज़नीनों के दिल में उबाल आ रहा है

ख़ुशियाँ उसके मुकद्दर में है, ये माना मैंने
यहाँ भी हर ग़म नज़र ख़ुशहाल आ रहा है

बचकर रहना इस बार वक़्त से ऐ अनिल
सुना है कि साथ उसके बेताल आ रहा है
                                                                                (आदरणीय अनिल यादव जी की कलम से) 

 वांकुर और प्रतिभा संपन्न लेखिका  


२. आदरणीया प्रियंका पांडेय 'नंदिनी' जी,

प्रियंका जी की एक रचना 


कितना अच्छा है न... 
ये शांत वातावरण
न गाड़ियों की पीं-पीं
न वो सरदर्द बढ़ा देने वाले हॉर्न
आज लोगों की 
चहल-पहल भी नहीं
एकदम शांत.... उन्मुक्त। 
बाहर बैठने पर आज 
हवा की सरसराहट 
महसूस हो रही है। 
सुनाई दे रहा है 
वो पत्तियों का झड़ना। 
अच्छा हाँ, पतझड़ आ गया शायद। 
देखो तो..., 
                                                     (प्रियंका जी की कलम से )


   'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-३  में प्रवेश कर चुके हैं जो दिनांक ०१ /०४ /२०२० (बुधवार) से प्रभावी है।

के अंतर्गत प्रस्तुत है ये रचनाएँ,


  
 (पर्दा उठता है )
सूत्रधार -   एक जोगन राजस्थानी 
              और बृज की है ये कहानी
               कृष्णा के गुण गाती आई  
          मीरा प्रेम दीवानी।




 जिन्हें अहंकार था सर्वेसर्वा होने का 
वे एक वायरस की चुनौती के समक्ष 
मजबूरन नत-मस्तक हुए हैं
दंभी,मक्कार, झूठे-फ़रेबी 
आज हमारे समक्ष बस मुए-से हैं।


साहित्य विशेष कोना 
'साहित्य विशेष कोना' के अंतर्गत हम आपको सदैव अनोखी प्रतिभा से मिलवाते हैं।

 वीना की कविताएँ


हुजनों को
अंबानियों-अडानियों,
टूंटपूंजिए ब्राहमण, ठाकुर,
संघियों का गुलाम बनाने के
षड़यंत्र नहीं रचता


नदियां, पहाड़, खेत-खलिहान
जंगल, खदान नहीं डकार जाता

दरणीय ज्योति खरे जी की कविता  

उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
व्यक्ति यदि  हमारे विचारों से निजी तौर पर 
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए। 
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु 
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
 है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है । 
धन्यवाद। 
 टीपें
 अब 'लोकतंत्र'  संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार '
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।


आज्ञा दें!



आप सभी गणमान्य पाठकजन  पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर  साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा। रचनाओं  के क्रम  सुविधानुसार लगाये गए हैं।   

17 टिप्‍पणियां:

  1. अनिल भैया आपको यहाँँ पाकर अत्यंत प्रसन्नता हुई।

    जवाब देंहटाएं
  2. लेकिन आपको नई प्रतिभा कहना मेरे विचार से अनुचित है; क्योंकि वर्षों से हमारे मिर्जापुर में आपकी विशेष पहचान है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शशि भैया , अनिल भैया हमारे लिए नये ही हैं | उनका अभिनन्दन है इस मंच पर |

      हटाएं
  3. बेहतरीन रचनाओं संग
    विचारणीय प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर सूत्र संयोजन
    सम्मिलित रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मिलित करने का आभार
    आपको साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रिय ध्रुव , आज की सौम्य प्रस्तुति से बहुत संतोष हुआ | भूमिका मात्र एक वाक्य में ही , आज के साहित्य की गहन विकट परिस्थिति की और इंगित कर रही है |
    "जब बुद्धिजीवी लेखक गधे को गधा कहना छोड़ दे और भेड़िए को मेमना बताना प्रारंभ कर दे, तब समझ लीजिए साहित्य के बुरे दिन चल पड़े हैं।"------
    बस यही है जो सबके लिए विचारणीय है | आखिर सच कहने की शाश्वत परम्परा का लोप क्यों होता जा रहा है ? सब वाह -- वाह ही क्यों सुनना चाहते हैं अथवा सुन रहे हैं ? आलोचना का महत्व क्यों नहीं रहा | सच कहें तो भेड़िये को मेमना कहने की कुप्रवृति से ही साहित्य की दुर्गति प्रारंभ होती है | समाज में व्याप्त सभी चीजों का सटीक आकलन ही एक साहित्यकार की ईमानदारी का परिचायक है | और नये रचनाकार के रूप में आदरणीय भैया अनिल यादव जी का हार्दिक अभिनन्दन है | उनकी रचनाएँ फेसबुक पर पढ़ती रहती हूँ--- जीवन की वेदना जनित उनकी रचनाएँ बहुत भावपूर्ण और मार्मिक हैं | उनसे आग्रह है कि वे ब्लॉग के रूप में अगर अपनी रचनाएँ संग्रहित कर सकें तो बहुत अच्छा रहेगा |ये उनकी थाती का संग्रह होगा | उनको बहुत बहुत बधाई आज के विशेष अतिथि रचनाकार बनने के लिए | और सुश्री प्रियंका पण्डे की रचनाएँ आज की व्यवस्था के अनीतिपूर्ण उद्योग की खीज से पैदा हुआ करुणक्रंदन हैं | एक युवा रचनाकार का साथ एक विरल चिन्तक होना , साहित्य के लिए शुभ शकुन है | उनके उज्जवल भविष्य की कामना करती हूँ | आदरणीय ज्योति सर की ईद मुबारक की प्रस्तुति बहुत भावपूर्ण रही , उन्हें भी मेरी शुभकामनाएं| आजकी प्रस्तुती के सभी सहभागी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं| प्रिय आंचल को उनके काव्य नाटिका के अभिनव प्रयोग के लिए बहुत शुभकामनाएं| ऐसे समर्पित रचनाकारों को खोजकर प्रोत्साहित करना बहुत जरूरी है विदित रहे -- पंजाबी के सुप्रसिद्ध रचनाकार 'शिव कुमार बटालवी' जी ने भी इसी शैली में पूरण भगत और लुणा की कथा लिखी थी, जिसे संयोगवश हिंदी पंजाबी के सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर आदरणीय करतार सिंह दुग्गल जी ने पढ़ा और बाद में साहित्य एकादमी पुरस्कार के लिए इसकी सिफारिश की , जिसकी बदौलत मात्र 27 साल की उम्र शिव कुमार जी को ये प्रसिद्ध पुरस्कार , 1967 में पंजाबी के लिए मिला | रेडियो रूपक के रूप में मीरा और जीव गोस्वामी बहुत ही सुंदर प्रस्तुती है | सभी कलाकार बधाई के पात्र हैं | आज के लिंक संयोजन के लिए आपको बहुत- बहुत बधाई और शुभकामनाएं| यूँ ही आगे बढ़ते रहिये | सस्नेह

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  6. आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
    आज भूमिका के माध्यम से आपने अत्यंत विचारणीय संदेश दिया है। सत्य ही कहा आपने जब अनुचित को अनुचित कहने की क्षमता लेखनी खो दे तो समझिए साहित्य का पतन वही से आरंभ। साहित्य का उद्देश्य मात्र मनोरंजन नही अपितु समाज का सत्य से परिचय करना,देश और समाज को उचित विचारों की ओर ले जाना भी लेखनी का ही धर्म है। अब यदि लेखनी ही भेड़िए को मेमना कहने लगी तब तो हो गया कल्याण।
    खैर....इससे आगे बढ़ती हूँ और आपकी शानदार प्रस्तुति पर आती हूँ। मंच पर आपके नित नए प्रयोग और साहित्य उत्थान हेतु किए गए आपके प्रयास सदा ही साहित्य का गौरव बढ़ाते हैं। आदरणीय अनिल सर से मिलकर और उनकी भावपूर्ण रचना पढ़कर अच्छा लगा। आदरणीया प्रियंका जी को भी यहाँ देखकर हर्ष हुआ। एकांकी में यह हमारा प्रथम प्रयास था जिसे आपने लोकतंत्र जैसे बड़े मंच पर साझा कर मेरा खूब उत्साहवर्धन किया इस हेतु आपका हार्दिक आभार। आदरणीय रवीन्द्र सर की रचना तो जैसे दर्पण हो जिसमें झाँक कर इस देश को इस समाज को अपनी वास्तविकता निश्चित ही बोध हो जाएगा।
    ' साहित्य विशेष कोना ' में प्रस्तुत आज की यह रचना भी लाजवाब है। आदरणीय खरे सर की ' ईद मुबारक ' भी सुनी हमने जो बेहद उम्दा रही।
    हर बार की तरह नए रंग और नए संदेश के संग यह अंक भी शानदार रहा। पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। अगले अंक इंतज़ार के साथ पुनः प्रणाम 🙏 साभार शुभ रात्रि 🙏

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  7. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई

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  8. लाजवाब रचनाएँ। सभी चयनित रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई।

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  9. रचनाकारों को हार्दिक बधाई...बढ़िया संकलन

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आप सभी गणमान्य पाठकों व रचनाकारों के स्वतंत्र विचारों का ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग स्वागत करता है। आपके विचार अनमोल हैं। धन्यवाद