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बुधवार, 20 मई 2020

८९...... जागते रहो!




जागते रहो!

ब चूहे मरे कैसे? ई तो साहेब जी और उनके पिट्ठू लोग जानें! बड़े नेकदिल थे बेचारे, कहते थे यदि अँगूर में सुई चुभो दी जाए तो किशमिश बन जाता है और वो भी दुइ हफ़्तों में। 

            ससुर हम भी सोचे कि ई तो अमीर बनने का बड़ा ही नायाब तरीक़ा है। बताइए, अस्सी रुपए किलो अँगूर से चार-सौ रुपए किलो किशमिश झटपट तैयार! गपागप हमने भी दस किलो अँगूर में भरी दुपहरी सुइयाँ चुभों डालीं और छोड़ दिए कड़ी धूप में कोयले को हीरा बनने ख़ातिर। अब जो होना था वो तो होकर रहेगा, सो गया दिनभर के लिए घोड़ा बेचकर। 
अब हमारे कान में थोड़े न आकाशवाणी हो रही थी "मौसम आज बड़ा बेईमान होगा कृपया अपने-अपने सामान की सुरक्षा स्वयं करें! अब बेईमान था तो था, दिखा दिया अपना बेईमानीपन! हमरे सारे अँगूर लँगूर की शक़्ल के दिखने लगे और तो और, दो-तीन दिन में उनसे बास भी आने लगी। 

व्यंग्यनामा से........  



   'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-३  में प्रवेश कर चुके हैं जो दिनांक ०१ /०४ /२०२० (बुधवार) से प्रभावी है।

'लोकतंत्र संवाद मंच' 
आप सभी पाठकों का स्वागत करता है। 

इस भाग में चयनित कुछ स्तरीय रचनाएं इस प्रकार हैं। 

१. ज़िन्दगीनामा

क बूढ़ा बामन और दूसरा बूढ़ा गंजा - दोनो सोशल मीडिया पे फेल थे और साहित्य जगत में चुके हुए कवि सिद्ध हो चुके थे, अब या तो ये नगदी पुरस्कार की राह देखते या कार से ला - ले जाने वाला कवि गोष्ठी का आयोजन तलाशते - बस दोनो को हाथ फेरने को कोई तो चाहिये था साथ ही जो इनके सड़े गले फ़ासीवादी विचारों को मंच पर बोल सकें या जाति, वर्ग संघर्ष के ख़िलाफ़ उगल सकें

 २. महानगर

 हानगर 
कोई गांव नहीं है कि
इसके हर नुक्कड़ पर हो
कोई पुराना पीपल या बरगद
जिसकी छांव के लिए

नहीं चुकाना पड़े किराया या किश्त।


३. अदृश्य कोरोना

  तुझे बाहर न देख कर ,
फिजाँ भी है खामोश ,ऐ इन्साँ
आये हैं परिन्दे बस्तिओं के करीब ,

तेरा दिल बहलाने को

दरणीय ज्योति खरे जी की कविता उनके ही स्वर में।  

उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी 
व्यक्ति यदि  हमारे विचारों से निजी तौर पर 
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए। 
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु 
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
 है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है । 
धन्यवाद। 
 टीपें
 अब 'लोकतंत्र'  संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार '
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

आज्ञा दें!



आप सभी गणमान्य पाठकजन  पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर  साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा। रचनाओं  के क्रम  सुविधानुसार लगाये गए हैं।   

7 टिप्‍पणियां:

  1. जागते रहो ,यथार्थ सार्थक चित्रण ....
    सभी चयनित रचनाएं श्रेष्ठ

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर हास्य व्यंग मिश्रित लघुकथा के साथ शानदार लोकतन्त्र संवाद ...सभी रचनाएं उत्कृष्ट।
    सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  3. हा..हा..हा..हा 😂
    बर्बाद हुए अंगूरों के प्रति हम खेद प्रकट करते हैं।
    बहुत खूब लिखा आपने आदरणीय सर और यह अंक और इसकी प्रस्तुति भी बेहद उम्दा। सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक। आदरणीय खरे सर की मार्मिक कविता भी सुनी। सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ। सादर प्रणाम 🙏

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. सटीक व्यंग प्रिय ध्रुव | आखिर बेकार से बेगार भली |पर इसमें भी थोड़ी सी मेहनत और बुद्धि तो दरकार है ही |अब इन कथित अक्लमंदों को राम जी ने अक्ल ही इतनी दी क्या करें ? इनकी इस अक्ल की बदौलत इनके अंगूर लंगूर की शक्ल के ना बने तो क्या बनें ???|सार्थक व्यंग के लिए शुभकामनाएं | ज्योति सर का वीडियो लाजवाब है | नायाब रचना उनके स्वर में बहुत बढिया रही | तीनों सम्मिलित लिंक बहुत रोचक और बढिया रहे | देरी से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | यूँ ही आगे बढ़ते रहो , मेरी बस यही दुआ है |

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आप सभी गणमान्य पाठकों व रचनाकारों के स्वतंत्र विचारों का ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग स्वागत करता है। आपके विचार अनमोल हैं। धन्यवाद