अरे ओ कक्का ! बार-बार यूँ अन्नदाता पर लेख और कविताएं लिखना बंद करो !
क्यूँ रे कलुआ तेरे पेट में काहे आग लग रही है अरे लैटेस्ट सेलेबस रचनाओं का तो यही चल रहा है। रामपीठ ,श्यामपीठ अउर जोन-तोन पीठ साहित्य पुरस्कार इन्हीं विषयों पर लिखने वालों को तो मिल रहे हैं इतना मज़ेदार टॉपिक अउर कउन हो सकत है। ज़मीन पर कभी पैर न रखन वाले साहित्यकार तो आज लासा के टुटपुँजिये सैटेलाईट की सहायता से कीचड़ भरे खेतों में उतर-उतरकर साहित्य में जो गर्दा मचाय पड़े हैं उ तुमका नाही दिखत ! अउर जब हम उनके दुख-दर्द बांटने चलत हैं तो तुम फ़जीहत मचाय पड़े हो।
हाँ-हाँ कक्का तुमहो धूल चाटो ! हमार कौन सी भैसिया मरी जा रही है। बाकी सब ठीक बा !
'लोकतंत्र' संवाद मंच
दर्द को गीत में बदलो,
व्यथा को तान में बदलो !
जमाना साथ ना रोएगा
खोल न लब, आज़ाद नहीं तू
फ़ैज़ की नज़्म – ‘बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे’, इमरजेंसी का ‘अनुशासन पर्व’, जॉर्ज ओर्वेल के उपन्यास – ‘नाईन्टीन एटी फ़ोर’ का अधिनायक – ‘बिग ब्रदर’, और साहिर का नग्मा – ‘हमने तो जब कलियाँ मांगीं, काटों का हार मिला’, ये सब एक साथ याद आ गए तो कुछ पंक्तियाँ मेरे दिल में उतरीं, जिन्हें अब मैं आपके साथ साझा कर रहा हूँ -
'लोकतंत्र' संवाद मंच
अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के इस कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत करता है।
चलते हैं इस सप्ताह की कुछ श्रेष्ठ रचनाओं की ओर ........
जनम की ख़ातिर नहीं उचित है, भारत का माहौल अभी,
कुछ सदियों तक रुके रहो, जनम पे हो लाहौल अभी .
जोइ बिटप परपंथि हुँत होत उदारू चेत |
साख बियोजित होइ सो उपरे मूर समेत || २ ||
कुछ क़िस्से उड़ते बादल के,
कुछ क़िस्से आधे पागल के I
हाँ मगर ये है मुझे ख़्वाब सुहाना आया
एल्बम के पन्नों में कहीं,
दबी छुपी सी है वो
हंसी,
सफल दुआ जीवन की कोई -
स्नेह की शीतल पुरवाई है ;
कूदना तैयार हो जो सौ प्रतीशत
भूल जाना की नया अवसर मिलेगा
जय बजरंगबली!
आपकी जाति पर खलबली!!
मुस्कान में बदलो !!!दर्द को गीत में बदलो,
व्यथा को तान में बदलो !
जमाना साथ ना रोएगा
खोल न लब, आज़ाद नहीं तू
फ़ैज़ की नज़्म – ‘बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे’, इमरजेंसी का ‘अनुशासन पर्व’, जॉर्ज ओर्वेल के उपन्यास – ‘नाईन्टीन एटी फ़ोर’ का अधिनायक – ‘बिग ब्रदर’, और साहिर का नग्मा – ‘हमने तो जब कलियाँ मांगीं, काटों का हार मिला’, ये सब एक साथ याद आ गए तो कुछ पंक्तियाँ मेरे दिल में उतरीं, जिन्हें अब मैं आपके साथ साझा कर रहा हूँ -
उद्घोषणा
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
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विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
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है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
धन्यवाद।
टीपें
अब 'लोकतंत्र' संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार'
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आज्ञा दें !
'एकलव्य'
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आवश्यक सूचना :
अक्षय गौरव त्रैमासिक ई-पत्रिका के प्रथम आगामी अंक ( जनवरी-मार्च 2019 ) हेतु हम सभी रचनाकारों से हिंदी साहित्य की सभी विधाओं में रचनाएँ आमंत्रित करते हैं। 31 जनवरी 2019 तक रचनाएँ हमें प्रेषित की जा सकती हैं। रचनाएँ नीचे दिए गये ई-मेल पर प्रेषित करें- editor.akshayagaurav@gmail.com
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