बड़े दिन से सोच रहा था आजकल कड़की बहुत है लेखनी से भी कोई आमदनी नहीं ! आज जुगनू मियाँ का घर आना हुआ। अरे भई ! कैसे हो कल्लु कवि ? मैंने जवाब दिया। कट रही है जुगनू मियाँ और क्या बताऊँ ! इस लेखनी के चक्कर में कउनो काम में मन ही नहीं लगता। सो तंगी का जिन्न पाँव पसारे घर में लेटे हुए है। अरे क्या बात करते हो कलुआ ! हमारे कक्का जी तो इसी लेखनी के बल पर चारो खाने मक्खन में डूबे हुए हैं और तुम इस लेखनी को कोसने में लगे हुए हो, अच्छा ये सब छोड़ो ! अगले वर्ष चुनाव आने वाले हैं कक्का जी अपनी कविता लिखी होर्डिंग राजनीतिक पार्टियों को सौंपने लगे हैं जिससे वो अच्छा पैसा कमा लेते हैं। मेरी मानों कक्का जी की शरण में जाओ और एक-दो तख़्तियाँ लिखने का ठेका तुम्हे भी मिल जायेगा। मरता क्या न करता ! मैं जल्दी-जल्दी डग भरते हुए कक्का जी के दरवाजे पहुँचा ! ये क्या ? कक्का जी के गेट पर इतनी भीड़ ! और पुलिस भी। आस-पास पता किया तो पता चला, कुछ महीनों पहले कक्का जी ने जिस पार्टी के लिए बैनर पोस्टर लिखे थे वो पार्टी चुनाव हार गई और उस पार्टी के गुर्गे कक्का जी को स्लोगन लिखने के लिए दिए गए पैसों की वसूली करने आये थे। पैसे वापस देने में आना-कानी करने पर उस पार्टी के गुर्गों ने कक्का जी की जमकर तुड़ाई की है। फिर क्या था इतना सुनते ही मैंने उलटे पाँव घर की सुध ली और करता भी क्या ! लिखने का यह पुरस्कार
'लोकतंत्र' संवाद मंच
अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक में आपसभी सुधीजनों का हार्दिक स्वागत करता है।
बढ़ाते हैं आज का अपना कारवां। .........
वो कविता सी स्वच्छंद सदा
मैं ग़ज़लों सा लयबद्ध रहूँ
वो प्रेम त्याग की परिभाषा
मैं उसके लिये निबंध रहूँ
मेरी जेबों में
तुम्हारा इतिहास पड़ा है
कितना बेतरतीब था;
तुम्हारा भूत.....
गरमी के मारे सबई
भुट्टा घाईं भुन रए
‘वर्षा’ खों टेर- टेर
बदरा खों रोय हैं।
बावरे पंछी
जानती हूँ
तेरी प्यास अनंत है
और नियति निर्मम अत्यंत है !
तुम मेरे प्रश्न का जवाब न दे पाओ।
ऐसा कहते हुवे वह अपनी सीट से
उठता हैं, तभी उसकी नजर अपने सीट
के सामने बैठे हुये एक बुजुर्ग दंपत्ति पर पड़ती हैं।
दोनों की चाहतों में
दुनियां बचाने की
चाहते हैं------
ग्यारह बजे हैं सुबह के. जून नये घर में हैं.
काम शुरू हो गया है. मिस्त्री, प्लम्बर, बढ़ई सभी आ गये हैं।
कभी शेर, कभी भालू, तो कभी खुद को चीता समझते हैं
मगर अफसोस ..
बिच्छू देखकर ... वो बंदर से उछलते हैं !
मेरी मानो,
कंक्रीट की छत हटा दो,
टीन की डाल लो,
इतनी ग़रीबी में भी क्या जीना
कि बारिश की आवाज़ भी न सुने.
जब चाँद नहीं उतरा खिड़की मे,
तो फिर किसका चेहरा उभरा
हाथ को हाथ
दिखाई नहीं देता।
वक्त रहे सम्भल जाओ..
पेट्रोल , पानी और पेड़ बचाओ ...
सायकल से सेहत बनाओ ,
अंधभक्तों पे कृपा, इतनी ज़रा, बरसा दे,
रेवड़ी बाँट का. ठेका तो मुझे , दिलवा दे.
अँजुरी भर
सुख की छाँव मिली
वह भी छूटी
बच गया है अब
तपता ये जीवन।
सत्य की खोज में
निकल जाना आसान है।
अन्याय होगा तो प्रतिरोध भी होगा
प्रतिरोध का अपना ढब भी होगा
शोर भी मचेगा
निकलेगा जुलूस भी
मैं क्या हूँ , कैसा हूँ,
मानव ने तेरा घर नष्ट किया |
इन दिनों एक आदमी
नींद में बड़बड़ा रहा है
एक आदमी
हल चलाते हुए घनघना रहा है
एक आदमी
यात्रा करते हुए बुदबुदा रहा है
आंधियों का दौर है , है गर्द ओढ़े आसमां ।
चातक को गागर नीर हम पिला नहीं सकते ।।
उस दिन घंटों की बातें भी मिनटों में कैसे निपट गयीं
मिलने के क्षण में जाने क्यों,मनचाहे शब्द नहीं मिलते
चलो कहीं नदिया के तीरे
पांव भिगो बतियाएँ
हाथों से लहरों को ठेलें
काग़जी नाव तिराएँ
पानी के दर्पण में झाँक के
कश पे कश छल्लों पे छल्ले उफ़ वो दिन
विल्स की सिगरेट पिलाओ साब जी
मैस की पतली दाल रोटी, पेट फुल
पान कलकत्ति खिलाओ साब जी
बनते हैं महल
सुन्दर सपनों के
चुनकर
उम्मीदों के
नाज़ुक तिनके
लाता है वक़्त
बेरहम तूफ़ान
जाते हैं बिखर
तिनके-तिनके।
गौरैया,
ले रे बलैया,
मोर अँगनैया.
चप चप कंचुकी
चिपक गयी अँगिया.
थाम तूलिका आकाश निहारे
सपने बचपन के न्यारे
आँखों में झलकते प्रश्न अबोध
क्या रंग मिलेंगे सारे?
आदरणीया शुभा मेहता जी
टीपें
अब 'लोकतंत्र' संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार'
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
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'एकलव्य'
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उद्घोषणा
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
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धन्यवाद।
आप सभी गणमान्य पाठकजन पूर्ण विश्वास रखें आपको इस मंच पर साहित्यसमाज से सरोकार रखने वाली सुन्दर रचनाओं का संगम ही मिलेगा। यही हमारा सदैव प्रयास रहेगा।
सभी छायाचित्र : साभार गूगल
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