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सोमवार, 14 जनवरी 2019

७४......क से कबूतर ,ख से खरगोश, ग से गदहा ...

से कबूतर ,ख से खरगोश, ग से गदहा ... अरे कलुआ ई का कर रहा है रे तू ? कछु नाही कक्का तनिक हिंदी ज्ञान को बढ़ा रहे हैं। पर तू तो इतना बड़ा साहित्यकार बन चुका है तो ई अक्षरमाला का क्या ज़रूरत है तुमका। अब तो तुमका सबही मनई सुपरस्टार मानकर पढ़ते हैं तो तू ई नया बवेला काहे फाने बैठे हो ? अरे कक्का तुम तो एकदम बौड़म हो। अरे ई अक्षरज्ञान अउर उहे मात्रा ही तो हिंदी साहित्य की नींव है। 
अब तुम अपने को ही ले लो !
हूँ को तुम हूं लिखते हो। 
चाँद को चांद का ई गलती नाही। 
पूर्णविराम ( । ) के जगह तुम पाश्चात्य भाषा का फूलिशताप ( . ) लिखते हो। तो कहो ! हो गया ना हिंदी भाषा का बेड़ा गरक ! अउर ऊपर से बताने पर ढिठाई दिखाते हो ! 
चल ! आया बड़ा ! हमका कौआ अपनी चाल बताने वाला। अरे ! सभई लिख रहे हैं तो हमऊ लिख दिया करत हैं। का रखा है ई मात्रा-सात्रा में। अउर वैसे भी हमरी इतनी उमर हो गई है , हम दो रुपल्ली वाली वर्णमाला लेकर अपने बचवा के सामने पढ़ने बैठूँगा तो हमरा लड़का हमरे बारे में का सोचेगा अरे यही न कि हमरे पिताजी को क,ख,ग .... ज्ञ नहीं आता। चल भाग यहाँ से ! बाकी सब ठीक बा। 
 'लोकतंत्र' संवाद मंच 
अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के इस कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत करता है।  

वक्ष में फोड़ा हुआ
पीठ पर सूरज बंधा
पेट बिलकुल खाली
कपकपाते हाथों से
बजती नहीं ताली--

उद्घोषणा 
 'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत 
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'एकव्य' 


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